सिर्फ कॉमेडियन नहीं थे चार्ली चैपलिन

चार्ली स्पेंसर चैपलिन को आमतौर पर लोग महान कॉमेडियन के रूप में ही जानते हैं। लेकिन उनकी प्रतिभा फिल्मों तक ही सीमित नहीं थी। चार्ली की बहुमुखी प्रतिभा, संगीत, लेखन और खेल के क्षेत्र में भी बाखूबी प्रतिबिंबित होती है। उन्होंने कम से कम चार किताबें लिखीं जो बहुत चर्चित रहीं। ये किताबें हैं अकॉमेडियन सीज द वर्ल्ड, माइ ट्रिप अब्रोड, माइ आटोबायोग्राफी और माइ लाइफ इन पिक्चर्स। इसके अलावा उन्होंने स्क्रिप्ट भी खूब लिखी। बिना किसी संगीत शिक्षा के एक स्थापित संगीतज्ञ के रूप में वे विविध संगीत वाद्यों को पूर्ण दक्षता के साथ बजाया करते थे। वे वायलिन और सेलो बाएं हाथ से बजाया करते थे। एक कुशल कंपोजर के तौर पर उन्होंने बहुत से गीत लिखे। चार्ली चैपलिन का जन्म 16 अप्रैल, 1889 में वाल्वार्थ लंदन में हुआ था। उनके पिता बहुमुखी प्रतिभा वाले गायक और अभिनेता थे। तो मां भी एक अदाकारा और गायिका थी। दोनों ही लाइट औपेरा क्षेत्र में विख्यात थे। पिता की आसामयिक मृत्यु और मां की बीमारी के चलते बहुत कम उम्र में ही चार्ली और उसके भाई सिडनो को आजीविका के लिए संघर्ष करना पड़ा। चार्ली ने लॉक होम्स और कैसीज कोर्ट सर्कस में छोटा-मोटा काम किया। इस दौरान चार्ली के भाई सिडनो ने प्रख्यात कम्पनी फ्रैंड कार्नो में काम किया। उसने ही चार्ली को अपने यहां शामिल करवाया और चार्ली कार्नो स्टार बन गया। 
1914 में चार्ली को पहली फिल्म मिली निर्देशक हेनरी लेहरमान की मेकिंग ए लिविंग उन्होंने नेवल नोमेड के साथ कई फिल्में कीं। निर्देशन का पहला स्वाद उन्होंने ‘ट्वंटी मिनट्स ऑफ लव’ से चखा, इसमें उन्होंने खुद को निर्देशित किया और यही उनकी आगे की कार्यप्रणाली बन गई। चार्ली को इस कदर सफलता मिली कि एक कम्पनी से दूसरी कम्पनी में जाना उनके लिए खेल बन गया। 1935 में 35 फिल्मों के बाद वे एमेनी चले आये। इस दौरान उनकी उल्लेखनीय फिल्में थीं। ‘द चैंपियन’, ‘द ट्रैप एंड द बैक’। 1919 में चार्ली ने अपने दो दोस्तों के साथ यूनाइटिड आर्टिस्ट की स्थापना की और गोल्ड रश, द सर्कस, सिटी लाइट्स जैसी फिल्में बनाईं। 1940 में उन्होंने अपनी पहली मजाक फिल्म ‘द ग्रेट डिकटेर’ बनाई। 1952 में अमरीका में उनकी बनाई गई अंतिम फिल्म थी, ‘लाइमलाइट’। 1972 में उन्हें स्पैशल अकेडमी अवार्ड मिला। 
इस बीच वे अपनी पत्नी ओना ओ नील तथा बच्चों के साथ स्विट्ज़रलैंड आ गये। यहां उन्होंने दो फिल्में ‘ए किंग इन न्यूयॉर्क’ और ‘अकाउटेंस फ्राम हांगकांग’ बनाई। अंतिम साल उन्होंने अपने परिवार के साथ तथा अपनी फिल्मों के लिए संगीत तैयार करने में बिताए। 1977 में क्रिसमस के दिन उनका देहांत हो गया।
—जी.के. खत्री