लोकतंत्र की रक्षा हेतु लोकपाल के मसौदे पर अमल ज़रूरी

भारतीय लोकतंत्र में देश की संसद सर्वोपरि होती है, जिसके सम्माननीय सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं। उनके हाथों में प्रशासन से लेकर देश की सुरक्षा, अस्मिता, विकास एवं समस्त प्रकार की कार्यप्रणाली संभली गई है। यदि इस व्यवस्था में किसी भी तरह की अनियमितताएं पाई जाएं तो इस पर अंकुश लगाने के लिये भरतीय लोकतंत्र में संसद से बढ़कर कोई और फि लहाल सुप्रीम पॉवर नहीं है। वैसे  लोकतंत्र के चार जागरूक स्तंभ न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका एवं पत्रकारिता तो यहां पर है जिसका प्रारूप  एक दूसरे के सहयोग, नियंत्रण  की प्रक्रिया अपनाते हुए देश को सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करने के लिये निर्धारित है। इसके बावजूद देश को पूर्णरूप से संचालित करने वाली विधायिका एवं कार्यपालिका का जो स्वरूप परिलक्षित हो रहा है, सभी के सामने है।  देश का कोई विभाग ऐसा नहीं है जहां भ्रष्टाचार नहीं है। आज लोकतंत्र के जागरूक दो स्तंभ न्यायपालिका एवं पत्रकारिता पर भी अंगुलियां उठने लगी हैं। इस व्यवस्था से दु:खी होकर लोग अब दूसरी आज़ादी की बात करने लगे हैं। आज अपने चुने जनप्रतिनिधि पर ही विश्वास नहीं रहा । जनप्रतिनिधि जन सेवक की भावना छोड़ राजनेता से भी ऊपर उठ चले हैं। अब तो वे वेतन भोगी भी हो चले हैं। अपने हर कार्य की मनमानी कीमत वसूल भी करने लगे हैं। जब चाहे अपना वेतन, भत्ते आदि जितना चाहें स्वयं ही बढ़ा लें , कोई रोकने वाला नहीं। क्योंकि ये जन प्रतिनिधि हैं, जनता के मालिक हैं, देश की जनता ने बड़े शौक से इनके सिर ताज जो रख दिया है। ये जो चाहे सो कर सकते हैं। इनकी कार्य प्रणाली में कोई दखलंदाज़ी दे, इन्हें कतई स्वीकार नहीं । अन्ना हज़ारे, की इस दिशा में फि र से मांग उठी है। जब देश के राजनेताओं को अपने पर खतरा मंडराता है तो लोकतंत्र पर खतरा बताने लग जाते हैं, जैसा कि आजकल इनके बयानों से साफ - साफ  झलकता है। इनके ऊपर कोई आकर बैठ जाये , इन्हें कतई स्वीकार नहीं । इन्हें चिंता हो गई कि लोकपाल विधेयक इनके गले की फांस न बन जाये इसी कारण ऐन केन प्रकारेण इसे टालने की आज तक हर कोशिश जारी रही है। इस दिशा में आवाज उठाने वाले को ही लोकतंत्र का दुश्मन बताकर इस प्रक्रिया से छुटकारा पाने का हर संभव प्रयास जारी है। इस तरह के उभरते हालात देश एवं लोकतंत्र के लिये अंतत: घातक साबित होंगे। राष्ट्रहित में लोकतंत्र की रक्षा हेतु केन्द्र एवं राज्य स्तर पर एक ऐसी सुप्रीम पॉवर वाली स्वतंत्र व्यवस्था का होना बहुत जरूरी है जो लोकतंत्र के चारों स्तंभ पर निगरानी रखते हुए लोकतंत्र प्रणाली को सही दिशा देने में अपनी अह््म भूमिका निभा सके । अभी तक हमारे देश में लोकतंत्र के सर्वोच्य पद पर आसीन किसी भी व्यक्ति का चुनाव सीधे तौर पर जनता द्वारा नहीं किया जाता। यहां राष्ट्रपति का चुनाव जनता के चुने प्रतिनिधियों एवं प्रधानमंत्री का चुनाव जनता के द्वारा चुने बहुमत दल के प्रतिनिधियों  के माध्यम से किये जाने का प्रावधान है। राज्यों में सर्वोपरि पद राज्यपाल का चुनाव मनोनयन प्रक्रिया के माध्यम से है जिसमें केन्द्र की सत्ता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इस पृष्ठिभूमि से बने राज्यपाल पारदर्शी न हो पाने के कारण प्राय: विवादों में उलझे रहे हैं।  वर्तमान लोकतंत्र में यहां देश के सर्वोपरि पद पर विराजमान राष्ट्रपति एवं राज्यपाल दोनों पद पर अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दलों का प्रभाव देखा जा सकता है जिसके कारण नियंत्रण की भूमिका सही रूप से उजागर नहीं हो पाती । इसी कारण इस दिशा में लोकपाल जैसी व्यवस्था का होना आज के परिवेश के अनुसार नितांत जरूरी है। लोकपाल प्रणाली के तहत सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति का चुनाव राज्य एवं केन्द्र स्तर पर सीधे जनता के द्वारा होना चाहिए। इस पद पर आसीन व्यक्ति का संबंध न तो किसी राजनीतिक दल से हो न किसी तरह के विवादों के बीच उलझा हो। जो अपनी कार्यशैली से देशभर / राज्यों में अपनी पहचान रखता हो। जिस तरह कभी टी. एन. शेशन ने अपने निष्पक्ष कार्यशैली मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में अपनी विशेष पहचान बनाई पर देश के राष्ट्रपति का चुनाव राजनीतिज्ञों के अप्रिय होने के कारण नहीं जीत पाये। यदि इस तरह के व्यक्ति का चुनाव सीधे तौर पर देश की जनता द्वारा होता तो जीत निश्चित थी। निष्पक्ष कार्यशैली में कभी किरण बेदी का भी नाम चर्चित रहा है। इस तरह की कार्यशैली से जुड़े ईमानदार व्यक्तित्व वाले देश में मिल ही जायेंगे जिन्हें देश हित में लोकतंत्र की रक्षा हेतु आगे करना होगा। पूर्व में लोकपाल के स्वरूप में सिविल सोसाइटी का वर्तमान पक्ष स्वागत योग्य तो है पर इस मसौदे में सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति का चुनाव मनोनयन न होकर सीधे तौर पर देश की आवाम द्वारा किया जाना चाहिये। साथ ही इस पद पर आसीन व्यक्ति गैर राजनीतिज्ञ हो।  लोकपाल के साथ हर वर्ग को प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधि भी शामिल किये जाएं जिनकी कार्यशैली निष्पक्ष एवं विवाद रहित हो। इस समिति को हर क्षेत्र में निगरानी रखने , राष्ट्रहित में सुझाव देने, गलत कार्य को रोकने एवं भ्रष्ट आचरण वाले पर उचित कार्यवाही कर दंडित करने का निर्णय लेने का अधिकार  हो । इस समिति  का भी कार्यकाल निश्चित हो। इस समिति में  ऐसे लोगों को शामिल किया जाना चाहिए जिनकी कार्यशैली में देश प्रेम की भावना सर्वोपरि झलकती हो। आज देश में भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर है। महंगाई दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। देश प्रेम की भावना नगण्य होती जा रही है। लोकतंत्र के जागरूक स्तंभ में इस तरह के लोग आज ज्यादा पनाह ले रहे , आगे बढ़ रहे हैं, जिनकी कार्यशैली अनेक प्रकार के विवादों से उलझी पड़ी है, जिनमें स्वहित की भावना सर्वोपरि है। इस तरह के परिवेश में राष्ट्र का कल्याण हो पाना कतई संभव नहीं दिखाई देता, जिसके कारण राष्ट्रहित से जुड़े लोकपाल मसौदे पर निर्णय हो पाना आज कठिन हो गया है। पर लोकतंत्र की रक्षा हेतु लोकपाल के स्वरूप पर अमल होना नितांत जरूरी है। (संवाद)