आतंकवाद की बढ़ रही चुनौती

जम्मू-कश्मीर में कई दशकों से चल रही गम्भीर गड़बड़ में अब तक जहां हज़ारों ही आम लोग मारे जा चुके हैं, वहीं बड़ी संख्या में जवान भी शहीद हुए हैं और सैकड़ों ही आतंकवादी भी मारे जा चुके हैं। गत दिनों सेना ने दक्षिण कश्मीर में एक ज़बरदस्त कार्रवाई करते हुए तीन मुठभेड़ों में 13 आतंकवादियों को मार गिराया है। इन मुठभेड़ों में तीन जवान भी शहीद हुए हैं। भड़काहट में आए और पत्थरबाज़ी कर रहे चार नागरिक भी मारे गए। सैन्य प्रवक्ता ने इसको इस वर्ष की सबसे बड़ी कार्रवाई बताया है। इससे यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तैय्यबा, जैश-ए-मोहम्मद तथा हिज़्बुल मुजाहिद्दीन आदि ने कश्मीर में अब अपनी पूरी शक्ति झोंक दी है। 13 फरवरी को श्रीनगर के करण नगर क्षेत्र के निकट स्थित सी.आर.पी.एफ. कैम्प पर जो हमला किया गया था, उसमें 6 जवान शहीद हो गए थे, तब घिरे हुए आतंकवादियों से 32 घंटे तक मुकाबला चला था, उसके बाद श्रीनगर में लैफ्टिनेंट जनरल देवराज अम्बू ने यह खुलासा किया था कि इसमें पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में लांचिंग पैडों पर 300 के लगभग प्रशिक्षण प्राप्त आतंकवादी घुसपैठ करने की ताक में बैठे हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि अब जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैय्यबा और हिज़्बुल मुजाहिद्दीन संगठन कश्मीर में छेड़ी अपनी लड़ाई में एकजुट हो गए हैं और उनका निशाना सैन्य शिविरों और सुरक्षा बलों को नुक्सान पहुंचाना है। उन्होंने इस बात पर चिन्ता अवश्य प्रकट की थी कि आतंकवादियों के प्रचार से प्रभावित होकर बहुत सारे स्थानीय युवक उनके साथ मिलते जा रहे हैं। इससे पहले श्रीनगर से नवीद जट्ट नाम के आतंकवादी को इन संगठनों के सदस्यों ने जबरदस्ती पुलिस से रिहा करवा लिया था। उसके बाद लगातार आतंकवादियों के हमले बढ़ते गए। जवान शहीद होते रहे और आतंकवादी भी बड़ी संख्या में मारे जाते रहे। उनसे राइफलें, पिस्तौल, ग्रेनेड तथा अन्य हथियार बरामद होते रहे हैं। वह बहुत दिलेरी से पुलिस तथा सेना के कैम्पों पर भी हमले करते रहे हैं। गत दिनों ही कुपवाड़ा में हुए एक मुकाबले में जहां पांच आतंकवादी मारे गए, वहीं पांच सुरक्षा जवान भी शहीद हो गए थे। मारे गए आतंकवादी विदेशी थे। अब भी यह पुष्ट समाचार मिल रहे हैं कि इस समय उत्तर कश्मीर में 200 से अधिक आतंकवादी सक्रिय हैं, जिनमें से अधिकतर विदेशी हैं। इसके अलावा सैकड़ों ही अन्य आतंकवादी कश्मीर में घुसपैठ करने की ताक में बैठे हैं। गर्मियां शुरू होने से पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित 28 लांचिंग पैडों से 100 के लगभग आतंकवादी घुसपैठ करने की ताक में हैं। इसके साथ एक और बड़ी चिन्ता की बात यह है कि जून महीने के अंत में अमरनाथ यात्रा शुरू हो रही है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। गत वर्ष भी आतंकवादियों ने श्रद्धालुओं की एक बस पर हमला किया था। परन्तु जिस तरह अब सेना ने अपनी कार्रवाई तेज़ की है, उससे कुछ विश्वास अवश्य पैदा होता है। गत दिनों जो 13 आतंकवादी मारे गए, उनमें इश्फाक और ठोकर नाम के वह आतंकवादी भी शामिल हैं, जिन्होंने गत वर्ष पुलगांव के एक गांव में विवाह में शामिल होने आए लैफ्टिनेंट उमर फैयाज़ का अपहरण करके हत्या कर दी थी। भड़की हुई भीड़ द्वारा श्रीनगर में एक अयूब पंडित नाम के पुलिस कर्मी की भी हत्या कर दी गई थी। यह बात सुनिश्चित है कि पाकिस्तान अपने नापाक इरादों से पीछे हटने वाला नहीं है और न ही सक्रिय आतंकवादी संगठन भारत के विरुद्ध अपनी गतिविधियों से बाज आने वाले हैं। परन्तु सेना की कड़ी कार्रवाई से पाकिस्तान की सेना को और जम्मू-कश्मीर में बैठे उनके समर्थकों को यह अवश्य एहसास हो गया है कि कश्मीर को भारत से अलग नहीं किया जा सकता। इसलिए वह जहां आम लोगों का खून बहा रहे हैं, वहीं अपना भी बड़ा नुक्सान करवाने के भागीदार बन रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में हिंसा में लगे अलगाववादियों को यह बात भी समझ लेनी चाहिए कि दुनिया भर में बदनाम हुए पाकिस्तान के साथ मिलकर वह कुछ भी हासिल नहीं कर सकेंगे? आखिर मामले का हल सरकार के साथ बातचीत द्वारा ही निकलेगा।  

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द