राष्ट्रकुल खेल-2018 क्या हैं भारत की संभावनाएं ?

इस समय ऑस्ट्रेलिया बॉल-टेम्परिंग विवाद में घिरा हुआ है कि उसने अपने दो श्रेष्ठ बल्लेबाजों स्टीव स्मिथ व डेविड वार्नर को अंतर्राष्ट्रीय व घरेलू क्रिकेट में हिस्सा लेने से एक साल तक के लिए रोक लगा दी है क्योंकि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में गेंद से छेड़छाड़ करना स्वीकार किया है, लेकिन ऐसा लगता नहीं कि इस विवाद का कोई प्रभाव 21 वें राष्ट्रकुल खेलों पर पड़ेगा। राष्ट्रकुल खेल-2018 ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट, क्वींसलैंड में 4 से 15 अप्रैल तक होंगे। इन खेलों में कड़े मुकाबले होते हैं, इसलिए कुछ भी आसान नहीं है, फिर भी भारत के लिए शानदार अवसर है कि वह बेहतर प्रदर्शन करे। भारत राष्ट्रकुल खेलों में अपने 2010 के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को तो शायद न दोहरा पाए, जब उसने 101 पदक हासिल किये थे, लेकिन उससे कुश्ती, बैडमिंटन व शूटिंग में बहुत उम्मीदें हैं, जिससे प्रदर्शन कम से कम यादगार तो बन ही सकता है।
राष्ट्रकुल खेलों में शुरू में तो इंग्लैंड हावी रहा लेकिन बाद में ऑस्ट्रेलिया का दबदबा ही कायम रहा है। जिसने अब तक इन खेलों में 2218 पदक जीते हैं। 2008 पदकों के साथ इंग्लैंड दूसरे स्थान पर है और कनाडा (1473 पदक) व न्यूजीलैण्ड (609 पदक) क्रमश: तीसरे व चौथे स्थान पर हैं। भारत ने अब तक कुल 16 राष्ट्रकुल खेलों में हिस्सा लेकर 436 पदक जीते हैं। ध्यान रहे कि भारत ने 1930, 1950, 1962 व 1986 के राष्ट्रकुल खेलों में विभिन्न कारणों से हिस्सा नहीं लिया था। 1982 तक राष्ट्रकुल खेलों के 9 सत्रों में भारत के पास मात्र 72 पदक थे, लेकिन 1990 के बाद जिन सात सत्र में भारत ने हिस्सा लिया है उनमें उसने 364 पदक हासिल किये हैं। भारत की तरफ  से राष्ट्रकुल खेलों में सबसे सफल खिलाड़ी शूटर समरेश जंग रहे हैं, जिन्होंने तीन सत्रों में हिस्सा लिया और कुल 14 पदक जीते, जिनमें सात स्वर्ण, पांच रजत और दो कांस्य पदक हैं। बहरहाल, इस बार गोल्ड कोस्ट जाने वाले भारतीय दल में 222 एथलीट हैं जो 15 प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेंगे। यह कितने पदक लेकर घर लौटेंगे, यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि किन-किन खेलों में भारत का प्रदर्शन बेहतर होने की आशा है। लेकिन इससे पहले यह जान लीजिए कि राष्ट्रकुल खेलों को टॉप ग्लोबल प्रतियोगिता के रूप में प्रचारित किये जाने के बावजूद इनका आकर्षण व स्तर ओलंपिक के बराबर नहीं बन सका है इसलिए संसार के टॉप एथलीट इन्हें खास महत्व नहीं देते हैं। इस तथ्य को एक मिसाल से समझा जा सकता है। 100 मीटर में उसैन बोल्ट के पास ओलंपिक (9.63 सेकंड) व विश्व (9.58 सेकंड) रिकॉर्ड है, लेकिन इसी स्पर्धा में राष्ट्रकुल खेलों का रिकॉर्ड 9.88 सेकंड है, जिसे 1998 में ट्रिनीडाड एंड टोबागो के एटो बोलडॉन ने स्थापित किया था। अपने 16 वर्ष के करियर में बोल्ट ने चार ओलंपिक में हिस्सा लिया, लेकिन राष्ट्रकुल खेलों में वह केवल एक बार ‘ग्लासगो-2014’ ही आये और उसमें भी सिर्फ 4/400 रिले में ही हिस्सा लिया व स्वर्ण पदक जीता। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि टॉप स्टार राष्ट्रकुल खेलों को महत्व नहीं देते हैं और इनमें हिस्सा नहीं लेते हैं। राष्ट्रकुल खेलों का आरम्भ 1930 में हुआ था। अब अपने 88 वर्ष के अस्तित्व के बाद इनकी प्रासंगिकता पर प्रश्न उठने लगे हैं; क्योंकि इनमें मुकाबले बहुत ही निम्न स्तर के होते हैं। राष्ट्रकुल खेलों के अब तक कुल 20 सत्र हो चुके हैं। 1942 व 1946 में दूसरे विश्व युद्ध के कारण यह खेल नहीं हुए थे। भारत ने राष्ट्रकुल खेलों में अपनी हिस्सेदारी बहुत ही निराशाजनक अंदाज में की थी। 1934 में उसने केवल एक कांस्य पदक जीता और फिर 1938 व 1954 में वह अपना खाता तक नहीं खोल सका। लेकिन इसके बाद से उसके प्रदर्शन में सुधार आने लगा। भारत ने ओलंपिक की परम्परागत स्पर्धाओं जैसे कुश्ती, वेटलिफ्टिंग व मुक्केबाजी में अच्छा प्रदर्शन किया है। 1990 के ऑकलैंड राष्ट्रकुल खेलों में जब अशोक पंडित ने शूटिंग में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता तो उसके बाद के तीन दशक में भारत के अधिकतर पदक शूटिंग में ही आये हैं। शुरुआती सत्रों में भारत के निराशाजनक प्रदर्शन का एक कारण यह था कि स्पर्धाएं सीमित थीं और उनमें अधिकतर में भारत कमजोर था। फिर जब इस सदी में नई स्पर्धाओं को शामिल किया गया तो भारत की किस्मत ने भी सकारात्मक पलटा खाया।
2002 के मैनचेस्टर राष्ट्रकुल खेलों में भारत ने 69 पदक हासिल किये (30 स्वर्ण, 22 रजत व 17 कांस्य)। 2006 मेलबोर्न में भारत को 49 पदक (22-17-10) मिले और फिर 2010 नई दिल्ली में भारत ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, 101 पदक (39-26-36) हासिल किये और ऑस्ट्रेलिया के पीछे दूसरे स्थान पर रहा। अब बहुत उम्मीदों के साथ भारत गोल्ड कोस्ट जा रहा है। लेकिन अनुमान यह है कि वह मैनचेस्टर जितने पदक हासिल नहीं कर सकेगा और 2010 की सफलता को दोहराना लगभग असंभव है। 2010 के बाद से शूटिंग, कुश्ती व मुक्केबाजी की स्पर्धाओं में कमी कर दी गई है और इसका नुकसान भारत को अधिक हुआ है। इसके बावजूद भारत की शूटिंग, कुश्ती, वेटलिफ्टिंग, मुक्केबाजी, बैडमिंटन, स्क्वैश, हॉकी व टेबल टेनिस में दावेदारी बहुत मजबूत है।गोल्ड कोस्ट-2018 भारतीय एथलीटों को कठिन चुनौतियों के लिए भी तैयार करेंगे जैसे एशियन गेम्स, चैंपियंस ट्राफी और हॉकी विश्व कप। इसलिए राष्ट्रकुल खेलों में हिस्सा लेना एक्सपोजर पाने के लिए बेहतरीन अवसर है, खासकर नीरज चोपड़ा (भाला फेंक), तेजस्विन शंकर (हाई जम्प) आदि उभरते हुए खिलाड़ियों के लिए। -इमेज रिफ्लेक्शन