संसद के कामकाज में अवरोध ज़िम्मेदारी से काम लें राजनीतिक दल

भारतीय लोकतंत्र के लिए यह बेहद अफसोसनाक बात कही जा सकती है कि तीन सप्ताह के लिए संसद के बजट के दूसरे चरण में कोई भी कार्य नहीं होगा। हैरानी तो उस समय हुई जब गत दिनों राज्यसभा की कार्रवाई को शोरगुल के कारण 11 बार रोकना पड़ा।  20 लाख करोड़ का बजट बिना किसी बहस और शोरगुल में ही पास हो गया। देश को अन्य समस्याएं दरपेश हैं। यह समस्याएं चर्चा की मांग करती थी। भ्रष्टाचार संबंधी महत्वपूर्ण संशोधन बिल भी इसी शोरगुल की भेंट चढ़ गया। आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने की मांग को लेकर प्रदेश के सांसद गत लम्बे समय से लगातार शोरगुल करते रहे और उन्होंने पूरा ज़ोर लगाया कि संसद की कार्यवाही न चले। कावेरी जल विवाद को लेकर तमिलनाडु की पार्टियां भी बड़े स्तर पर शोरगुल करती रहीं। अक्सर इन पार्टियों के सांसद राज्यसभा या लोकसभा में स्पीकर के सामने आकर नारेबाज़ी करते रहे। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की पार्टियों ने कांग्रेस के नेतृत्व में दस वर्ष शासन किया परन्तु उस समय भी भाजपा तथा अन्य विरोधी पार्टियां रुकावटें डालती रहीं। परन्तु फिर भी संसद के दोनों सदनों में कार्य काफी सीमा तक चलता रहा था। दर्जन भर विरोधी पार्टियों ने यह ठान ही लिया था कि वह कार्य चलने नहीं देंगी। कुछ पार्टियां सरकार के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास लाने पर ज़ोर देती रही और हर कार्यवाही के समय इस मांग के लिए शोरगुल मचाती रहीं। राज्यसभा में पिछले बुधवार को जब 11 बार कार्यवाही रोकनी पड़ी तो चेयरमैन वेंकैया नायडू ने सांसदों को विचार-विमर्श में हिस्सा लेने की अपील करते हुए कहा कि उन्होंने हर विषय पर चर्चा करने की अनुमति दी है, परन्तु कोई भी बिल पास नहीं किया जा सका। देश विकास चाहता है। सांसद लोगों के संयम की परीक्षा ले रहे हैं। नि:संदेह यह लोकतंत्र की हत्या है। लोकसभा में अलग-अलग पार्टियों के प्रतिनिधि शोरगुल करके सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कर रहे थे, तो स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कहा कि जब तक सदन की कार्यवाही सही ढंग से नहीं चलती तब तक ऐसे दिए नोटिसों पर कैसे विचार किया जा सकता है? नि:संदेह पार्टियों द्वारा लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अलग-अलग तरह की ड्रामेबाज़ी की जाती रही है। कुछ नेता छत पर जा चढ़े। सोनिया गांधी जैसी नेता धरने और प्रदर्शन करने को प्राथमिकता देती रही परन्तु किसी ने भी इतने लम्बे समय तक संसद में कार्य न होने पर पश्चाताप नहीं किया। जब संसद का सत्र समाप्त होना था तो कुछ विरोधी पार्टियों के सदस्यों ने इसको कुछ और दिन बढ़ाने की मांग करनी शुरू कर दी। सवाल यह उठता है कि यदि तीन सप्ताह में भी संसद का कोई कार्य नहीं चलाया जा सका हो, तो इसके लिए अन्य दिनों की मांग करना कितना जायज़ है? संसद विचार-विमर्श या बहस करने के लिए सदस्यों द्वारा विचार रखने के लिए होती है, न कि शोरगुल के लिए। यदि नीयत साफ न हो तो शोरगुल तो किसी भी मामले को लेकर किया जा सकता है। नि:संदेह हमारे सांसद लोगों के प्रति इस बात के लिए जवाबदेह हैं। आने वाले समय में इस बात की व्यवस्था अवश्य की जानी चाहिए कि हर हाल में चाहे एक सीमित और निश्चित समय के लिए ही महत्वपूर्ण बिलों और विषयों पर उचित ढंग से बहस को सुनिश्चित बनाया जाए, यदि इस सत्र में महत्वपूर्ण बिल पास होने से रह गए हैं, तो इसके लिए अकेली सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए बड़ी दोषी विरोधी पार्टियां भी हैं, जिन्होंने पहले दिन से ही अपनी नकारात्मक कार्रवाइयों से संसद के कामकाज़ में अवरोध डाले रखा है और कार्य वाले समय का बड़ा नुक्सान किया

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—बरजिन्दर सिंह हमदर्द