वंदे मातरम् हाल में लिखी जानी थी 1919 के कत्लेआम की गाथा

अमृतसर, 9 अप्रैल : 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में करवाए जाने वाले जलसे के लिए पहले अमृतसर के वंदे मातरम् हाल का चुनाव किया गया था। उन्हीं दिनों यह हाल क्रांतिकारी गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ था। वर्णनीय है कि 12 अप्रैल को शहर के हिन्दू सभा स्कूल में हुई बैठक में सर्वसम्मति के साथ 13 अप्रैल को सायं 4:30 बजे जलियांवाला बाग में जलसा और उसके बाद वंदे मातरम् हाल में अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध विरोध सभा करने की योजना बनाई गई। बैठक के दौरान अंग्रेज़ों के मुखबर हंस राज ने जलसा और विरोध सभा दोनों जलियांवाला बाग में करवाने की सलाह दी। जिसके चलते उक्त बैठक के बाद उसी दिन सायं को और अगली सुबह बाज़ारों में ढोल बजा कर जलियांवाला बाग में विरोध सभा होने की मुनादी करवाई गई। यह भी वर्णनीय है कि 13 अप्रैल 1919 से पहले जलियाांला बाग में केवल दो ही सभाएं हुई थीं और 30 मार्च से पहले जलियांवाला बाग में कभी कोई जलसा या समारोह नहीं हुआ था। उन्हीं दिनों जलियांवाला बाग एक 229 मीटर लम्बा और 183 मीटर चौड़ा एक बेतरतीब भूमी का टुकड़ा था, जो कि महाराजा रणजीत सिंह के वकील राजा जसवंत सिंह नाभा के कर्मचारी और फिर महाराजा के वकील बने भाई हिम्मत सिंह जल्ला की जायदाद था। उसके नाम पर इसको जल्लेवाला बाग कहा जाना लगा।
कन्हैया लाल की कोठी की गई वंदे मातरम् हाल में तबदील : सन् 1905 में स्वदेशी लहर और बायकाट के आंदोलन में अमृतसर अग्रणी शहर था। उसी दौरान क्रांतिकारी बाबू कन्हैया लाल भाटिया ने देश की आज़ादी के लिए की जाने वाली पब्लिक बैठकों के लिए अपनी कोठी को वंदे मातरम् हाल में तबदील कर दिया। बाबू सुरेन्द्र नाथ बैनज़र्ी ने अमृतसर पहुंचने पर इस हाल का उद्घाटन किया। मौजूदा समय शहर की कटड़ा शेर सिंह आबादी में मौजूद यह हाल रीजैंट सिनेमा में तबदील हो चुका है। अंग्रेज़ों ने भी की थी 1919 के कत्लेआम की निंदा : विश्व के इतिहास में सन् 1857 की बगावत के बाद किसी विद्रोह को दबाने के लिए जलियांवाला बाग के कत्लेआम जैसी निंदनीय कार्रवाई शायद ही पहले कभी किसी ने की होगी। इस कत्लेआम की ज़ोरदार निंदा करने वालों में भारी संख्या में अंग्रेज़ भी शामिल थे। डोनाल्ड के. नामक अंग्रेज़ ने सन् 1938 में जलियांवाला बाग स्मारक की दर्शक पुस्तक में लिखा कि इस स्थान को देखने के बाद मुझे अपनी कौम पर शर्म महसूस होती है। मुझे लगता है जैसे गली में मेरी तरफ देखने वाला प्रत्येक व्यक्ति मुझे हत्यारों के समुदाय का सदस्य समझ रहा हो। मुझे सभ्यता के नाम पर किए गए नरसंहार के कारण अपने आप को अंग्रेज़ कहलाते हुए शर्म महसूस होती है। मुझे कट्टड़ कहलाने की तुलना में काफर कहलाना अधिक अच्छा लगता है।