नई कक्षाएं और माता-पिता की ज़िम्मेदारी

मार्च महीने के अंत तक स्कूल स्तर की लगभग सारी कक्षाओं के परिणाम आ जाते हैं। बच्चे अगली कक्षाओं में जाने के लिए उत्साहित हो रहे होते हैं। नई कक्षाओं में जाने का चाव बच्चों के साथ-साथ माता-पिता को भी होता है। स्कूल में बच्चे अच्छी कारगुजारी दे सकें, इसके लिए स्कूल के साथ-साथ माता-पिता की भी अहम और प्राथमिक ज़िम्मेदारी होती है। बचपन से ही स्कूली शिक्षा को लेकर बच्चे और माता-पिता दोनों सजग हों तो ही बच्चा किसी लक्ष्य पर पहुंच सकता है और ज़िंदगी अच्छे ढंग से जी सकता है। ज्यादातर माता-पिता नई किताबें, कापियां, स्टेशनरी और वर्दी लेकर देने में ही संतुष्टि महसूस करते हैं, लेकिन इसके आगे भी माता-पिता की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी होती है। आधुनिक समय में नैतिक मूल्यों में बड़ी गिरावट आ रही है। यह माता-पिता का फज़र् है कि वे बच्चों को अच्छे संस्कार सिखाएं। अध्यापकों का सम्मान करना, अपने साथियों के साथ मिलजुल कर रहना, स्कूल में हर छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक सबका सम्मान करना ज़रूरी है। 
हर रोज़ का काम घर आकर दोहराएं ताकि परीक्षा में तनाव से बचा जा सके।घर का माहौल पढ़ाई-लिखाई के लिए बनाना भी माता-पिता का कर्त्तव्य है। बच्चे को पढ़ाई बोझ न लगे, वह सहजता से इसको करता रहे, यह बहुत ज़रूरी है।
* पढ़ाई के साथ-साथ स्कूल में हो रही अन्य गतिविधियों के लिए बच्चे को उसके शौक के मुताबिक ज़रूर हिस्सा लेना चाहिए। इससे बच्चे का बहुमुखी विकास होता है।
* बच्चे को समय-सारिणी बनाने के लिए प्रेरित करें और वर्ष भर उसको समय-सारिणी के मुताबिक चलाने के लिए कहें।
* आज की पीढ़ी मोबाइल और इंटरनेट पर बहुत ज्यादा निर्भर है। इससे बच्चे की सोचने-समझने, पढ़ने की और सीखने की समर्था बहुत प्रभावित होती है।
* सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने बच्चों की तुलना कभी भी अन्य बच्चों से न करें। परमात्मा ने हर एक जीव को विलक्षण गुण प्रदान किए हैं। उन गुणों के द्वारा ही बच्चे का मार्गदर्शन करें।
अपने बच्चे को सिर्फ अंकों के पीछे दौड़ने की आदत न डालें, बल्कि उसकी समर्था के मुताबिक उसका आत्मविश्वास बढ़ाएं। बच्चों की शख्सियत में माता-पिता की परवरिश साफ दिखाई देती है।     

 —नरिन्द्रपाल कौर