दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम

देश में बढ़ रहे जातिवाद के प्रभाव ने जहां भिन्न-भिन्न वर्गों के लोगों को बड़ी सीमा तक प्रभावित किया है, वहीं देश के भविष्य के लिए भी चिंता उत्पन्न की है। देश की स्वतंत्रता के बाद चाहिये तो यह था कि जातिवाद कम होता तथा सभी वर्गों के लोगों को प्रत्येक क्षेत्र में एक समान अवसर प्रदान किए जाते। आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों के लिए विशेष योजनाएं बनाई जातीं जिनसे उनका जीवन स्तर ऊपर उठाया जा सकता, परन्तु इसके विपरीत जहां जातिवाद बढ़ा, वहीं देश भर में गरीबी का प्रसार भी हुआ। आज भी करोड़ों लोग दयनीय दशा में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनके रैन-बसेरे झुग्गी-झोंपड़ियां हैं। खाने-पीने की स्थितियां अनिश्चित हैं। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि देश विपरीत गति से चलने लगा है। इसके साथ ही तेजी से फैल रहा सोशल मीडिया भी हर प्रकार की उत्तेजना एवं देश को अग्नि में झोंकने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा। नि:संदेह ऐसे देश में रहने वाले आम आदमी का दम घुटने लगता है। इस महीने 2 अप्रैल को दलित भाईचारे की ओर से भारत बंद का आह्वान किया गया था जिसका कारण देश की सर्वोच्च अदालत की ओर से अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित-जन-जातियों के संबंध में बने कानून में यह संशोधन करना था कि किसी व्यक्ति को दूसरे की ओर से अपशब्द बोलने का आरोप लगा कर उस पर एकदम मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता, अपितु किसी पुलिस अफसर की ओर से पहले उसकी जांच की जानी चाहिए। इस जांच को आधार बना कर ही आगामी कानूनी पग उठाया जाना चाहिए। इस बात को इस सीमा तक हवा दी गई जिससे यह लगे कि ऐसा करके समूचे आरक्षण की नीति पर ही बड़ा प्रहार किया गया हो। इस संबंध में सर्वोच्च अदालत ने यह भी बताया था कि इस फैसले का आरक्षण के कानून के साथ कोई संबंध नहीं है, परन्तु इसे लेकर 2 अप्रैल को दलित भाईचारे की ओर से किए गए बंद से देश भर में जिस प्रकार की अराजकता दिखाई दी, स्थान-स्थान पर अग्निकांड हुए, सम्पत्तियों का भारी नुक्सान किया गया, व्यापक स्तर पर हिंसक घटनाएं घटित हुईं तथा लगभग एक दर्जन लोग विभिन्न झड़पों में मारे गए। नि:संदेह इस घटनाक्रम ने समूचे रूप में देश के बदन को आह्त किया है जिसकी पीड़ा आगामी समय में शीघ्रता से मिटने वाली नहीं है। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप आम श्रेणियों के लोगों में भी रोष उत्पन्न हुआ जिसका लाभ सोशल मीडिया ने उठाया तथा व्यापक स्तर पर 10 अप्रैल को आम वर्ग की ओर से देश भर में बंद के आह्वान की खबरें फैलाई गईं। चाहे इस संबंध में किसी भी संगठन की ओर से किसी प्रकार का समर्थन नहीं मिला था परन्तु इसके बावजूद देश के कई भागों में इस बंद का प्रभाव देखने को मिला। उदाहरण के लिए बिहार के कुछ ज़िलों से वाहनों को आग लगाये जाने तथा गोलियां चलाने के समाचार मिले हैं। बहुत से लोग इन झड़पों में घायल भी हुए हैं। अनेक स्थानों पर रेलगाड़ियां रोकी गईं तथा पटरियों पर बैठ कर नारेबाज़ी भी की गई। कई स्थानों पर इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं तथा अनेक स्थानों पर किसी किस्म की असुखद घटनाओं को घटित होने से रोकने के लिए व्यापक स्तर पर पुलिस एवं सुरक्षा बलों को भी तैनात किया गया था।  पंजाब में इस बंद को चाहे कोई बड़ा समर्थन नहीं मिला परन्तु कुछ शहरों में प्रदर्शन अवश्य किए गए तथा बाज़ार बंद रखे गए। फिरोज़पुर में कुछ भाईचारों का आपस में हुआ टकराव हिंसक रूप धारण कर गया। वहां लाठियां एवं कृपाणें भी चलीं तथा कुछ लोग घायल भी हुए। उत्पन्न हो रही यह स्थिति देश के अच्छे भविष्य की निशानी नहीं है। यदि देश के भिन्न-भिन्न   समुदायों एवं जातियों के लोग वर्गों में बंट गए तो इससे बड़ा नुक्सान हो सकता है। इससे घृणा का माहौल अधिक बढ़ सकता है। पहले से पड़े अनेक प्रकार के बटवारों ने देश को छिन्न-भिन्न कर दिया है। नि:संदेह बढ़ती हुई ऐसी भावना जहां देश के हर प्रकार के विकास में बड़ी बाधा बन सकती है, वहीं बोये जा रहे नफरत के ये बीज भविष्य में विशाल वृक्ष बन कर कभी ऋषि-मुनियों की धरती कहलाने वाली इस धरा को पूर्णतया बंजर एवं वीरान बना देने की सामर्थ्य रखते हैं। इस संबंध में समाज को एवं समय की सरकारों को पूर्णतया सचेत होने की आवश्यकता होगी। सख्त एवं प्रभावशाली कदमों तथा कार्रवाइयों से ही बढ़ रहे ऐसे नकारात्मक क्रिया-कलापों को पराजित किया जा सकता है।

बरजिन्दर सिंह हमदर्द