पटियाला में पोलो खेल का आ़गाज़ कैसे हुआ ?

शाही राजघराने धौलपुर के स्वर्गीय श्री महाराणा साहिब 1889 ई.वी. में शाही पटियाला रियासत के दौरे के समय पहली बार पोलो खेल से संबंधित खिलाड़ियों और छोटे घोड़ों को पटियाला शाही शहर में लेकर आए। धौलपुर राज घराने के श्री महाराणा सिंह के इस दौरे से पहले पोलो खेल के बारे में यहां कोई भी नहीं जानता था। पटियाला में धौलपुर की पोलो टीम अपने थोड़े समय के ठहराव में केवल अभ्यास ही करती थी। पटियाला रियासत को छोड़ने के कारण धौलपुर शाही घराने के महाराणा साहिब श्री अमरायो सिंह और श्री इंद्रबीर सिंह को पटियाला रियासत में पोलो खेल की तरक्की के लिए यहां ही छोड़ गए।यह तो शाही राज घराने के महाराज अधिराज रजिंदर सिंह ने स्वर्गीय राजा गुरदत्त सिंह को पटियाला में पहली बार पोलो खेल के प्रबंधन के लिए अधिकार दिए। इस तरह राज घराने के स्वर्गीय राजा गुरदत्त सिंह और धौलपुर रियासत से श्री अमरायो  सिंह और श्री इंद्रबीर सिंह जैसे पोलो-खेल के प्रेमियों की ओर से यह खेल पटियाला में शुरू करवाया गया, जिसमें जनरल प्रीतम सिंह, जनरल हीरा सिंह, जनरल सरूप सिंह, जमशेर सिंह, सेवा सिंह और जनरल चंदा सिंह भी शामिल हुए। पोलो मैच पटियाला राज घराने के महाराजा साहिब के संरक्षण में लाहौर में 1894 ई. में खेला गया। इस पोलो टीम मैच में राजघराने के स्वर्गीय राजा गुरदत्त सिंह और धौलपुर शाही राज घराने के उपरोक्त बताए गए नामों ने लाहौर में इस खेल की नींव रखी। 1895 ई. में लाहौर में ही पटियाला पोलो टीम की ओर से पोलो का मैच फिर खेला गया। उपरोक्त दर्शाए धौलपुर के खिलाड़ियों को जनरल हीरा सिंह और श्री बख्शी प्रीतम सिंह के साथ बदल दिया गया। पटियाला की प्रतिभावान पोलो टीम 1900 ई. तक अपनी उच्चतम स्थिति में कायम रही। 1900 ई. में शाही राज-घराने के स्वर्गीय राजा गुरदत्त सिंह को शाही पटियाला शहर का उच्चाधिकारी, जिसको वीजियर कहा जाता था, नियुक्त किया गया। पटियाला की पोलो टीम में जनरल चंदा सिंह ने स्वर्गीय राजा गुरदत्त सिंह का स्थान उस समय तक ले लिया जब तक राज-घराने के महाराज धिराज सर राजिन्द्र सिंह का निधन नहीं हुआ था। राज घराने के महाराजा धिराज सर रजिंदर सिंह के इस दुनिया को अलविदा कहने के बाद पटियाला पोलो टीम की स्थिति डावांडोल हो गई। पटियाला पोलो टीम में केवल दो पोलो खिलाड़ी जनरल चंदा सिंह और कप्तान ठाकरा सिंह ही रह गए और शेष खिलाड़ी तो पुराने और घिसे-पीटे ही थे।यह पटियाला पोलो टीम की खुश किस्मती थी कि इसमें जवान और गतिशील खिलाड़ियों जैसे कि जनरल जोगिन्द्र सिंह और कर्नल जसवंत सिंह शामिल हो गए। इन जवान और शक्तिशाली पोलो खिलाड़ियों के शामिल होने से पटियाला पोलो टीम फिर से तंदरुस्त और ताकतवर टीम बन गई। 1910 ई.वी. में शिमला में पहला पोलो मैच हुआ, जिसमें पटियाला की टीम विजयी रही। उस समय अंग्रेज़ी शासन के समय गर्मियों में भारत की राजधानी शिमला होती थी, शिमला में पोलो टीम की जीत एक प्रसिद्ध के.डी.जी. टीम के विरुद्ध थी, जिसने अच्छा प्रदर्शन किया था। 1910 ई. के शिमला पोलो मैच में पटियाला पोलो टीम में कर्नल जसवंत सिंह, जनरल जोगिन्द्र सिंह, कैप्टन ठाकरा सिंह और जनरल चंदा सिंह मौजूद थे। 1912 और 1913 ई. में कलकत्ता के टूर्नामैंट में पटियाला की पोलो टीम को मौसम की कड़ाके ठंड, और जवान बढ़िया घोड़ों की ़गैर-उपलब्धता के कारण मुश्किल समय से जूझना पड़ा। सैमीफाइनल में पांचवें चरण तक 17वीं लांसर्ज के विरुद्ध पटियाला पोलो टीम दो गोल से आगे थी। कनाट के ड्यूक की यात्रा के शुभ मौके पर पटियाला पोलो टीम में उपरोक्त दिए खिलाड़ी जोधपुर राज घराने के विरुद्ध भिड़े थे। यह कनाट के ड्यूक का कप टूर्नामैंट था। पटियाला पोलो टीम ने इस खेल मुकाबले में बड़े आराम से सफलता प्राप्त की थी। यह 1921 ई.वी. की बात है, जब पटियाला पोलो टीम के उपरोक्त चर्चित खिलाड़ियों ने राज घराना वेल्ज़ के शहज़ादे के तौर पर दिल्ली के खेलों में भाग लिया। पटियाला पोलो टीम के सभी खिलाड़ी सदस्यों की स्थिति ज्यादा अच्छी और मज़बूत थी लेकिन बद-किस्मती से पटियाला पोलो टीम के एक खिलाड़ी की मांसपेशियों में चोट  के कारण दाएं कंधे में दर्द शुरू हो गया। पटियाला पोलो खिलाड़ी को यह चोट दिल्ली में खेल पोलो मैच से केवल एक सप्ताह पहले ही लगी थी। जोधपुर, अल्वर और रतलाम के मुकाबले पटियाला पोलो टीम के घोड़े दूसरे दर्जे के और ज्यादा उम्र के थे। पोलो खेल का आरम्भ वेल्ज़ के शहज़ादे के शाही राज-घराने से दिल्ली में हुआ था, जोकि गेंद की पहली उछाल से लेकर अंत के बिगुल की आवाज़ तक चला था। पटियाला पोलो के खिलाड़ियों ने इसमें स्पष्ट ज़ोर अजमाइश और सही मोड़-तोड़ का प्रदर्शन किया था। खिलाड़ी से खिलाड़ी तक की बढ़िया स्टिकिंग और गति का ऐसा बेहतरीन प्रदर्शन भारतीय पोलो टीम ने इससे पहले कभी भी नहीं किया था। पोलो अनुभवियों के विचार के अनुसार, पांचवें चरण तक पटियाला पोलो टीम के विरुद्ध कुछ भी नहीं था। लेकिन चरण के अंतिम आधे मिनट में उनको खेल में हार का मुंह देखना पड़ा, क्योंकि पोलो खिलाड़ियों को घटिया किस्म के घोड़ों का प्रयोग करना पड़ा था। इस तरह यह पुरातन कालीन जोधपुर के शाही राज-घराने के लिए जोशीले और प्रगतिशील खेल के लिए एक आशाजनक केन्द्र था।

लेखक पटियाला शाही शहर के भूतपूर्व दीवान परिवार के पारिवारिक सदस्य हैं।
मो. 093165-20136