खालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य

   वर्ष 1699 की बैसाखी का दिन दशम पातशाह साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा स्थापित खालसा पंथ के कारण दुनिया के इतिहास में एक अद्भुत अध्याय रचा गया। यह गुरु साहिब की एक निराली याद के तौर पर सिख इतिहास में हमेशा ताज़ा है। गुरु साहिब द्वारा खालसा स्थापना के अद्वितीय कारनामे ने सदियों से शोषित, गुलामी वाला जीवन जी रहे लोगों को आत्म-विश्वासी बना कर अर्श पर पहुंचा दिया है। यदि यह कह लें कि आनंद की पुरी श्री आनंदपुर साहिब में 1699 की बैसाखी का दिन जुल्म, अन्याय, पक्षपात, झूठ, पाखंड आदि के विरुद्ध एक संघर्ष का बिगुल बना तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। खालसा का अर्थ शुद्ध, निर्मल और बिना मिलावट से है। खालसा झूठ, बेईमानी, छल-कपट से दूर मानवता का हमदर्द है। खालसा एक अकाल पुरुख का पुजारी है। पांच ककारी रहित रखना, पांचों वाणियों का पाठ करना, हमेशा ही सच्चा और धर्मी जीवन जीना खालसा का नियम है। ऊंची, सच्ची जीवनशैली का अनुसरण करना ही खालसा का परम कर्त्तव्य है। 
खालसा स्थापना के इतिहास पर दृष्टि डालें तो इस कार्य की सम्पूर्णता के लिए दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने समय की राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक पड़ताल के बाद 1699 ई. की बैसाखी को बड़े जनसमूह के लिए संगत को विशेष निमंत्रण भेजे। आप जी के इस निमंत्रण पर भारी संख्या में संगत श्रीआनंदपुर साहिब पहुंची, जहां संगत के भारी जनसमूह में पातशाह जी ने खालसा की स्थापना की। आप जी ने बारी-बारी पांच शीश मांगे, जिस पर खरा उतरते हुए पांच योद्धाओं ने अपने शीश भेंट किए। सत्गुरु जी ने इन पांचों को अमृतपान करवा पांच प्यारों की उपाधि प्रदान की। यह पांच प्यारे अलग-अलग क्षेत्रों, सम्प्रदायों से संबंधित थे। गुरु साहिब ने इनके नाम के साथ ‘सिंह’ लगाया और वचन किया कि आज से आपका नया जन्म हुआ है। आपकी पिछली जातियां, गौत्र सभी खत्म और आज से आप वाहेगुरु जी का खालसा हो। इस तरह खालसा पंथ की स्थापना आत्मिक एकता, सामाजिक समानता और सद्भावना की प्रतीक मानी जाती है। खालसा की स्थापना श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का एक महान कार्य था, जिसको विद्वानों ने एक क्रांतिकारी और ऐतिहासिक कदम बताया। डा. गंडा सिंह के अनुसार ‘गाय शेर बन गईं और शिकारी जानवरों का अब कोई खतरा न रहा।’इसलिए खालसा स्थापना दिवस गुरु के दर्शाये मार्ग के अनुसार चल कर जीवन जीने की प्रेरणा है। इस ऐतिहासिक अवसर पर मैं संगत को मुबारकबाद देते हुए अपील करता हूं कि आओ, साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह द्वारा बख्शिश की गई खंडे-बाटे की पाहुल छक्क कर गुरमत के धारणी बनें और ‘धर्म का जयकार’ के मिशन को साकार करते हुए अपना जीवन सफल करें। भविष्य की नई पीढ़ी को ऐसी गौरवशाली विरासत से जोड़ने के लिए गुरमत विचारधारा के धारणी बनाने के लिए माता-पिता का बड़ा योगदान होता है। इस कार्य के लिए हर गुर सिख को व्यक्तिगत रूप में और हर संस्था को संस्थागत रूप में प्रयास करने चाहिएं। समूह संगत को अपने महान और अमीर विरासत को पहचानते हुए वाणी और बाणे के धारणी होकर दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की खुशियों के पात्र बनना चाहिए। 

-प्रधान, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, 
श्री अमृतसर साहिब