आंदोलन के तौर-तरीकों को बदलना ज़रूरी

देश को आज़ादी तो मिली पर आज तक किसी ने इसे अपना नहीं समझा। सभी इसे आज तक अपने-अपने तरीके से स्वहित में कमजोर बनाने में लगे हैं। आज तक आंदोलन के तौर-तरीके पूर्व की भांति ही देखे जा सकते हैं जहां तोड़ -फ ोड़, आगजनी, रेल पटरी उखाड़ने जैसी अहितकारी घटनाएं आज भी जारी हैं, जिनमें सबसे ज्यादा सार्वजनिक एवं राष्ट्रीय सम्पत्ति का नुक्सान ही होता है जिसकी भरपाई किसी और को नहीं , अपने को ही करनी पड़ती है। आज यह देश किसी और का नहीं , अपनों का ही देश है जिसे समझना बहुत जरूरी है। इस तथ्य को नहीं समझने के कारण आज भी लुटेरे इस देश को लूट रहे हैं। देश में सब कुछ रहते हुए भी विकास के कदम से कई कदम हम पीछे खड़े हैं। बाजारवाद में कभी अग्रणी रहा हमारा देश आज पीछे खड़ा है जहां विदेशी सामानों की भरमार है। सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के तहत लगे देश में बड़े उद्योग बंदी की कगार पर  है। आंदोलन के तहत देश की करोड़ों की सम्पदा का आज तक नुक्सान पहुंचा चुके हैं। स्वतंत्रता उपरान्त ही भाषा, क्षेत्र, जाति आदि के नाम स्वयंभू तत्वों द्वारा अपने हित में देश को बांटने की साजिश यहां सदा चलती रही है। वह आज भी जारी है । देश में आज भी  जारी गतिविधियां इसी तरह के परिवेश का ही प्रमुख भाग हैं ,जहां भाषा, जाति के नाम स्वहित की राजनीति में देश को अलग-थलग करने की सोची-समझी राजनीति क्रियाशील है जहां के विकास में सभी हिन्दोस्तानियों का योगदान है। इसीलिये उनमें आज वर्ग विभेद कर अलग-थलग करने की राजनीति करना सर्वदा अनुचित कदम है। पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका , नेपाल, भूटान जो कभी इसी देश के प्रमुख अंग रहे हैं, वे आज  अलग- थलग दिखाई दे रहे हैं, तथा इस अलगाव का विदेशी हकूमतें किस तरह फायदा उठा रहीं, सभी भली-भांति परिचित हैं। स्वहित की राजनीति कभी भी राष्ट्र का भला नहीं कर पाई है। इस परिवेश से उभरे हालात चारों ओर अशांत वतावरण पैदा करने के साथ -साथ आपस की दूरियां भी बढ़ाते एवं नफ रत को बढ़ाते हैं। इससे कभी भी किसी का भला नहीं हुआ है। आज यह देश किसी एक का नहीं, सभी का है। देश के किसी भी भाग में जाने, रहने एवं काम करने का अधिकार सभी भारतवासियों को है, जिससे वंचित करना संवैधानिक अपराध के तहत माना जा सकता है। पर स्वहित की राजनीति के तहत क्षेत्रवाद की बू पैदा कर देश को बांटने की प्रकिया आज भी जारी है। पूर्व के इतिहास पर नजर डालें जहां सियासती राज्य अपने अस्तित्व में थे। एक दूसरे को नीचा दिखाने एवं अपने अधीन किये जाने की जो कूटनीतिक चालें चली जाती थीं, सभी भली-भांति परिचित हैं। इस तरह के परिवेश से जुड़े लोग आज भी हैं जो समय-समय पर यहां क्षेत्रवाद ,भाषावाद ,जातिवाद का विषैला ज़हर फैलाकर अपने स्वार्थ की रोटी सेंकने में विभिन्न रूप में  अपनी गतिविधियां जारी किये हुए हैं, जिनसे राष्ट्र की एकता को सदा खतरा बना हुआ है। पूर्व के अलग-अलग सियासती राज्यों को खत्म कर एक देश का स्वरूप देकर ही यहां अंग्रेज वर्षों तक राज करने में सफ ल रहे, जिन्हें भगाकर स्वाधीन भारत का स्वरूप हासिल करने में देश के सभी भागों के लोगों का अमूल्य योगदान रहा है, जिसे किसी भी कीमत पर भुलाया नहीं जा सकता। आज़ादी के साथ ही स्वहित से जुड़े कुछ लोगों के चलते भारत के टूटने के असहनीय दर्द का जो अहसास हमें हुआ है उसे आज तक नहीं भूल पाये हैं तथा समय-समय पर यह टीस किसी न किसी रूप में अभी भी मिल रही है। यदि सियासती राज्यों का पूर्व में अलग-अलग स्वरूप कायम नहीं हुआ होता तो विदेशी यहां अपना पैर जमाने में कभी भी सफ ल नहीं हो पाते। इसी तरह स्वाधीनता उपरान्त यदि पाक नहीं बना होता तो आज अखंड भारत विश्व पटल पर सर्वोपरि शक्ति उभर कर सभी के सामने आता। आज भारत से पाक के अलग होने से जो विषम विपरीत परिस्थितियां उभर कर सामने आ रही हैं, जिसे भली-भांति देखा व परखा जा सकता है। इसी कारण आज देश में अलगाववादी प्रवृत्तियां, अहितकारी गतिविधियां सबसे ज्यादा  पनाह पा रही है, जिससे देश की एकता और अखंडता को खतरा बना हुआ है। इस तरह के हालात से हम सभी को सबक लेना चाहिए।  इस देश की भाषा सीखने का अधिकार सभी को है। यदि कोई किसी प्रांत की भाषा जानने या सीखने का प्रयास करता है, तो उस प्रांत वासी को तो विशेष खुशी होनी ही नहीं चाहिए, बल्कि इस प्रयास में उसे भी बढ़-चढ़ कर भाग लेकर उसकी पूरी मदद करनी चाहिए। देश की प्रचलित भाषाओं को सभी भारतवासियों को सीखना ही चाहिए, जिससे एक-दूसरे सें संवाद स्थापित करने में सुविधा हो सके। खान-पान , पहनावा में भी एकरूपता झलके तो बहुत ही अच्छी बात है। इससे देश की एकता स्थापित करने में काफी हद तक सहयोग मिल सकता है। तब कोई विदेशी ताकत हमारे लिए कभी घातक नहीं बन सकेगी।आज इस देश को स्वाधीनता हज़ारों कुर्बानियों के बाद बहुत मुश्किल से मिली है जिसमें सभी का सहयोग है। जिसे जाति, भाषा, क्षेत्र के नाम अलग-थलग करने का प्रयास कतई नहीं करना चाहिए  एवं जो इस तरह की प्रकिया में शामिल है उसका विरोध हर पैमाने में किया जाना चाहिए। लोकतंत्र में विरोध जताने का अधिकार सभी को है पर इसके पुराने तौर तरीके को बदला जान चाहिए जिससे देश  को नुक्सान किसी भी तरीके से नहीं पहुंचे । यह देश अपना है किसी और का नहीं, इस तथ्य को सही मायने में समझना राष्ट्रहित में जरूरी है। (संवाद)