बेईमानी बनाम बेशर्मी

धन और फैशन की चमक-दमक का ज़माना है। जिनके पास धन है, वे इसकी चमक-दमक साथ में धमक दिखाकर दूसरों पर अपना रौब जमाना चाहते हैं। जो नए-नए अमीर बने हैं, वे धन की चमक-दमक का प्रदर्शन करने में पूरी बेशर्मी के साथ लगे हुए हैं। वे भूल चुके हैं कि कभी वे भी गरीब थे। उनके बाप-दादा कंगाल थे। अपनी खानदानी मुफ्लिसी (गरीबी) भुलाकर नए अमीर कुछ ज्यादा ही हवा में ऊंचा उड़ रहे हैं और अपने-अपने खानदान को कई पीढ़ियों के ऊंचे व सम्पन्न खानदान बता रहे हैं। वे बेहयाई के साथ निर्धनों का मज़ाक उड़ा रहे हैं। मगर वे भूल रहे हैं कि जिनके पांव हकीकत की ठोस ज़मीन पर टिके नहीं रहते, वे औंधे-मुंह गिर पड़ते हैं। पर-कटे पंछियों की तरह। वे फिर इधर-उधर बगलें झांकने लगते हैं। सही एवं नैतिक पूर्ण ढंगों द्वारा धन अर्जित करने पर भला किसी को क्या एतराज़ हो सकता है? मगर जिन पर रातों-रात अमीर बनने का भूत सवार है, वे लोग काली रातों के काले अंधेरे जैसे काले धंधे करने से भी नहीं डरते हैं। कोई दलाल या सलाहकार बनकर अवैध रूप से ज़मीन के प्लाट काट-काटकर बेच रहा है और करंसी नोटों की फसल दोनों हाथों से काट रहा है। जहां पर कभी लहलहाती फसलें उगा करती थीं, वहां पर अब गैर-मंजूरशुदा और गैर-कानूनी बस्तियां, जिन्हें अंग्रेज़ी में कॉलोनीज़ कहा जाता है, वे उग यानि बन रही हैं। है कोई शासक व प्रशासक पूछने, रोकने, टोकने वाला? ओ, हो.. अच्छा तो यह बात है कि कई शासक व प्रशासक भी रातों-रात अमीर बनने की तमन्ना पाले बैठे हैं तथा उन्हें उनका ‘हिस्सा’, ‘चाय नाश्ता’ बैठे-बैठाए मिल जाता है। फिर वे किसी के विरुद्ध कार्रवाई क्यों करें? जो लोग कसम खा चुके हैं कि जीवन में कभी कोई काम-धंधा सही ढंग से, ईमानदारी के साथ नहीं करना है तथा अमीर भी जल्दी बनना है, उनमें से कई लोग दो नंबर के यानि फज़र्ी ट्रैवल-एजेंट्स बनकर अनेक बेरोज़गार नौजवानों को विदेशों को अवैध रूप से भेजने वाले काले धंधे में लग जाते हैं। वे नौजवानों एवं अन्य लोगों को विदेशों में सुनहरी व सुरक्षित भविष्य के स्वप्नों के ट्रेलर दिखाकर अपने शब्द-जाल में फांस लेते हैं। कई लाख रुपए लेकर उन्हें दो नंबर के ढंग से फु..र..र..र्र बेगाने देशों की ओर उड़ा देते हैं। अपनी मंज़िलें-मकसूद तक कोई-कोई सही-सलामत पहुंच पाता है। बहुतेरे बीच-रास्ते में भटकते रहते हैं या फिर मौत के मुंह में चले जाते हैं। फज़र्ी ट्रैवल-एजेंट्स बहाने बनाकर पल्ला छुड़ा लेते हैं या फिर ढेर सारा धन ऐंठकर रफूचक्कर हो जाते हैं... नई जगह पर और ज्यादा धन इकट्ठा करने का चक्कर चलाने के लिए। लोगों के घर-परिवार बर्बाद होते हैं, तो हों। अपने घर-परिवार खुशहाल सम्पन्न होने चाहिए। यही सोचकर कई लोग कई तरह के नशीले पदार्थ बेचने लगते हैं। अफीम, गांजा, चरस, स्मैक, हेरोइन, पोस्त-डोडों आदि की तस्करी में लगे गई तस्कर करोड़ों-अरबों रुपए की सम्पत्ति के मालिक अल्प समय में ही बन बैठे।
ईमानदारी, नैतिकता, सदाचार, सच्चाई को ‘मारो गोली’ कहते हुए कई लोग घूसखोरी, घोटालेबाज़ी, ठगी, बेईमानी द्वारा, जमाखोरी, मुनाफाखोरी, कई चीज़ों की कालाबाज़ारी द्वारा, कर चोरी द्वारा दिन-दुगुनी रात चौगुनी तरक्की की सीढ़िया चढ़ते जा रहे हैं। एक नंबर के वैध कारोबार, काम-धंधे करने वालों को बहुत दूर, बहुत नीचे छोड़ते जा रहे हैं। ईमानदारी, नैतिकता, सच्चाई बगैरह अपनाकर भरपेट-भोजन, बेशक रूखा-सूखा ही सही मिल जाए, तो गनीमत समझो। परंतु बात पते की यह है कि नेक कमाई करने वाले सुख व चैन की नींद सोते हैं। उन्हें नींद की आगोश में जाने के लिए भ्रष्ट व बेईमान, नैतिकताविहीन लोगों की तरह नींद की दवा नहीं खानी पड़ती। गलत और टेढ़े ढंगों से बने अमीर लोग चाहे सुबह-शाम पूजा-अर्चना करें, ज़ोर-ज़ोर से भगवान का नाम जपें, लंगरों-भण्डारों का प्रबंध करें, दिखावे की समाज-सेवा भी खूब करें, दान-पुण्य करें, तीर्थ-स्थानों की यात्राएं करें तथा अन्य कई तरह के आडम्बर रचें, मगर उन्हें आत्मिक संतोष व संतुष्टि, शांति, सच्चा सुख, परमानंद कभी नहीं मिल सकता। चैन की नींद पाने को वे तरस जाते हैं। वे मूर्ख समझ नहीं पाते कि अवैध, अनैतिक, गलत व भ्रष्ट तरीकों से अर्जित किया गया धन कभी सच्चा सुख नहीं देता।