क्या ज्यादा अंक पाना सफ लता की गारंटी है ?

येअंकों का खेल है, जहां हम सब उलझ कर रह गए हैं। 90 फीसदी से ऊपर ही सबको अंक चाहिएं और ये अंक कहीं न कहीं आगे चलकर बच्चों का भविष्य भी तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। हर अभिभावक को ज्यादा से ज्यादा अंक चाहिएं तो प्रत्येक विद्यार्थी को अच्छे अंकों की दरकार है,जरूरत से ज्यादा अंक हासिल करने का जबरदस्त दबाव भी है। पर क्या सर्वोच्च अंक प्राप्त करना ही सफ लता की एकमात्र गारंटी है? सीबीएससी के पिछले दिनों पेपर लीक हो जाने से एक बार फि र से सोचे जाने की जरूरत महसूस होने लगी है कि क्या मौजूदा शिक्षा व्यवस्था अपने आप में पर्याप्त सुरक्षित,पारदर्शी और निष्पक्ष रूप में सामने है।  क्या मौजूदा शिक्षा प्रणाली में कुछ सुधार की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सिर्फ  और सिर्फ  नंबर अर्जित कर लेना क्या  सफ ल हो जाने की गारंटी है? प्राचीन काल से ही हम शिक्षा संस्थानों से भली-भांति परिचित हैं। तब भी गुरुकुल जाकर विद्या अर्जित की जाती थी, जहां योग्य गुरु विद्यार्थियों को विद्या का ज्ञान देते थे। उस समय परीक्षा तो होती थी परंतु आज की तरह होती नहीं थी, न ही इतना जबरदस्त दबाव की विद्यार्थियों के साथ-साथ अभिभावक भी तनाव में आ जाएं। कुछ दशक पहले तक यह सब नहीं था। परीक्षाओं को जीवन-मरण का पहलू नहीं माना जाता था और न ही इस बड़े पैमाने पर शोरगुल होता था। परंतु शिक्षा के व्यवसायीकरण हो जाने से सब कुछ व्यवसाय बनता जा रहा है। शिक्षा के नाम पर बड़े-बड़े ग्रुप्स सामने आ रहे है विद्या के मंदिरों की जगह दुकानें खुल गयी हैं , जहां सब कुछ बिक रहा है,  किताबें, ड्रेस, स्कूल बैग्स, जूते,टाई, बेल्ट आदि-आदि। इन सबके बीच शिक्षा का स्तर नीचे गिरता जा रहा है।  छोटी उम्र में ही बच्चे नशा, लूट, और गंभीर अपराधों की ओर बढ़ते जा रहे हैं। 16-17 साल के बच्चे सिर्फ  इसलिए कि स्कूल बंद हो जाये किसी मासूम बच्चे का कत्ल तक कर रहे हैं। ये सब क्या है, एक दबाव ही तो है जो बच्चों को मानसिक रोगी बना रहा है । नंबर न आने के कारण आत्महत्या के मामले भी तीव्र गति से बढ़ रहे हैं। बिहार में टॉप करने वाले विद्यार्थी को जब मूल प्रश्नों के उत्तर भी नहीं आते हैं तो ये किसका दोष है? क्या विद्यार्थी का या इस सिस्टम का जो उन्हें नम्बर की होड़ में उलझा रहा है ।  इस सबके बीच सीबीएससी जैसी संस्था पर कई प्रश्न-चिन्ह लगे हैं जिनका उत्तर देने के साथ-साथ  इस संस्था को भविष्य में इसकी पुनरावृति न हो इस पर ज्यादा सोचने की जरूरत है । क्यों और किस लालच में ये प्रश्न-पत्र लीक हुए? कौन-कौन इनमें शामिल थे? इन सबके उत्तर खोजने के साथ संस्था को अपनी छवि भी साफ  करनी है । इस दौर में कई प्रश्न सीबीएससी के सम्मुख मुंह बाए खड़े हैं जिनके ठोस उत्तर उसे देने ही होंगे। पेपर लीक होने के कारण कितने विद्यार्थियों का नुक्सान हुआ यह सोचना ही होगा। शारीरिक थकान के साथ बच्चे मानसिक तौर पर भी थकान का अनुभव करने लगे हैं। 12वीं के बच्चों को तो कई परीक्षाएं भी देनी हैं, परंतु 12वीं का एग्जाम दूसरी बार फि र से देना उनको परेशान कर रहा है । बिना गलती किए उन्हें सज़ा मिल रही है। शिक्षा में अमूलचूल परिवर्तन की जरूरत महसूस की जाने लगी है। दिन-प्रतिदिन महंगी होती जा रही शिक्षा वैसे भी अपने आप में चुनौती से कम नहीं है । अभिभावकों को अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा पढ़ाई के लिए खर्च करना पड़ रहा है। उस पर से ट्यूशन का खर्चा अलग । दरअसल सीबीएससी जैसी संस्था आज अपनी दी हुई गाइड लाइंस को अनदेखा कर रही है, निजी स्कूलों में चल रही मनमानी को रोकने में पूरी तरह नाकाम हो रही है। आज भी इन स्कूलों में महंगी किताबें बिक रही हैं, मनमाने प्रकाशन की किताबें हैं पाठ्यक्रम में और इतने से भी इनका पेट शायद नहीं भर पा रहा है तभी तो हर दूसरे साल पूरे का पूरा पाठ्यक्रम ही बदल दिया जाता है, जिससे कि हर अभिभावक नई किताबें खरीद सके। ऐसे में सीबीएससी पर सवाल क्यों न खड़ें हों। दिन-प्रतिदिन हो रही महंगी शिक्षा वैसे भी गरीबों से दूर होती जा रही है। शिक्षा का स्तर जल्दी ही सुधारने की ज़रूरत है । बच्चों को बचपन से ही मूल्यपरक शिक्षा देने की जरूरत है, जहां वह यह तय कर सकें कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत। उनको नैतिक शिक्षा का ज्ञान देने अनिवार्य होना चाहिए जिससे उनका आचरण इतना मज़बूत और स्वावलंबी हो कि वो अपनी मेहनत पर विश्वास कर सके ताकि भविष्य में पेपर पहले से जानने की उनकी उत्सुकता ही न रहे और फि र से गुरुकुल जैसी सुदृढ़, मज़बूत और ईमानदार प्रणाली की जरूरत है । जहां विद्यार्थियों को भरोसा हो कि वो एक ऐसे सिस्टम से जुड़े हैं जो पूरी तरह पारदर्शी और ईमानदार हो, और सबसे बड़ी बात ये तंत्र राजनीति से बिल्कुल भी प्रेरित न हो, क्योंकि हर रिश्ते हर संस्था, हर समुदाय में राजनीति इस तरह घुल गयी है कि सिस्टम से भरोसा खत्म होता जा रहा है। जरूरत है फि र से भरोसा कायम करने की। जरूरत है शिक्षा को मूल्यपरक और पारदर्शी बनाये जाने की जहां शिक्षा में किसी तरह की मिलावट न हो, और एक बेहतर  मज़बूत राष्ट्र का निर्माण हो सके।