विवशता में होता आव्रजन

देश में वैध अथवा अवैध तरीकों से विदेश और वह भी अरब देशों में जाने वाले लोगों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होते जाना नि:संदेह रूप से सरकार एवं पूरे समाज के लिए एक गहन चिन्ता का विषय है। इस समस्या का एक बड़ा पक्ष सीधे तौर पर पंजाब से जुड़ा है जहां से प्रत्येक वर्ष हज़ारों की तादाद में लोग अरब देशों खासकर ईराक एवं दुबई में रोज़गार हेतु जाते हैं। इनमें से अधिकतर युवा होते हैं और इनमें से भी ज्यादातर अवैध तौर पर इन देशों में प्रवेश करते हैं। अवैध तौर पर आव्रजन करने वाले ऐसे लोगों के कारण ही देश और पंजाब में अवैध एवं गैर-पंजीकृत एजेंटों के वारे-न्यारे होते रहते हैं। इसी कारण ऐसे एजेंटों की संख्या भी निरन्तर बढ़ती जाती है। हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार पंजाब से ईराक एवं दुबई जाने वाले युवाओं की संख्या पिछले कुछ समय से निरन्तर बढ़ी है, और यह वृद्धि इस घटना के बावजूद हुई है कि रोटी-रोज़ी के लिए अवैध रूप से ईराक गये 39 भारतीयों के शव वर्षों की प्रतीक्षा के बाद पिंजरों के रूप में ताबूतों में बंद होकर भारत लौटे थे। इन 39 में से 27 अकेले पंजाब के थे। इस एक तथ्य से भी यह पता चल जाता है कि पंजाब से रोज़गार कमाने हेतु अरब देशों में जाने वाले लोगों में कितनी व्यग्रता होती है। ये लोग इस बात का फैसला करने के साथ ही खतरे वाले ज़ोन में पांव रख देते हैं, अर्थात् पहले एजेंटों की विश्वसनीयता का खतरा, फिर विदेश की किस धरती पर जाना है, उसका खतरा। विदेशों में पहुंच कर भी यह उनका खतरा कम नहीं होता और क्रियात्मक रूप में वे काम देने वाली कम्पनी के गुलाम जैसे हो जाते हैं। उनके पास्पोर्ट/वीज़ा आदि पहले ही उनके एजेंट समझौते के तहत अपने पास रख लेते हैं। रोज़गार पा जाने के बाद भी, कम्पनी के मालिकों और वहां की सरकार का कानूनी खतरा तलवार बनकर उनके सिर पर लटका रहता है। चार वर्ष पूर्व ईराक के मौ सूल शहर में बंधक बना कर मार दिए गए लोगों की नियति भी इसी तहरीर में लिखी गई थी। कोई वैध पता-ठिकाना न होने के कारण आई.एस. के आतंकवादी उनका अपहरण करके ले गये थे, और एक दिन उन सभी को गोलियों से भून कर एक पहाड़ी के नीचे दबा दिया गया था। यह एक बड़ी भयावह घटना थी, परन्तु आश्चर्य है कि इतनी वीभत्स त्रासदी के बावजूद पंजाब के युवाओं में अरब देशों और वह भी युद्ध-रत देशों में जाने का उत्साह कम नहीं हो रहा। इसका एक बड़ा कारण इन देशों में मज़दूरी एवं श्रम की दरें अधिक होना है। खासतौर पर युद्धरत देशों में यह दर आम से बहुत बढ़ जाती है, और अधिक पैसा कमाने की चाह में ये लोग अधिक जोखिम उठाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। इसके लिए यह भी एक तथ्य ज़िम्मेदार हो सकता है कि पंजाब में पिछले कुछ दशकों से गरीबी का प्रसार अधिक हुआ है। ज़मीनें बटने से किसान परिवार टूट रहे हैं। कज़र् ने कृषि और किसान की कमर तोड़ कर रख दी है। शहरों में व्यवसायिक मंदी और शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के अधिकाधिक महंगा होते जाने से बेरोज़गारों की संख्या बढ़ी है। देश और पंजाब की सरकारों के पास न तो रोज़गार है और न बेरोज़गारों को देने के लिए भत्ता राशि है। ऐसे में इन युवाओं के पास अपने बेबस हो गए परिवारों के पालन-पोषण के लिए एकमात्र यही उपाय बच गया दिखता है कि जैसे-कैसे भी हो, विदेश में जा कर वे जितना भी पैसा कमा सकते हैं, उसे लाकर अपने घर-परिवार की दशा को थोड़ा-बहुत अवश्य सुधार लें। इसके लिए वे अपना पूरा जीवन खतरे की तलवार की धार पर रख देने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। इन बेरोज़गारों की नियति में यह सब कुछ लिख देने वालों में गैर-पंजीकृत एजेंटों की भूमिका भी बड़ी अहम होती है। ये लोग दो-चार लाख रुपए के लालच में इन युवाओं को नारकीय जैसी स्थितियों में झोंक देने से कतई संकोच नहीं करते। आये दिन समाचार-पत्रों में ऐसे समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। इसके बावजूद यदि खतरों के पहाड़ों के ऊपर से भी कुछ दीनार ढूंढने के लिए ये युवा जाने को तैयार हो जाते हैं तो इनकी विवशता की इबारत को पढ़ना कोई कठिन कार्य नहीं है। तथापि, हमारी सरकारें इस सम्पूर्ण कवायद को जानते हुए भी यदि कानों में तेल डाले रहती हैं, तो इसे राजनीति की बेदर्द हकीकतें ही कहा जा सकता है। अरबों/खरबों रुपए के घोटाले हो जाते हैं। करोड़ों रुपए की परियोजनाएं धरी की धरी रह जाती हैं। रोज़गार की तमाम घोषणाएं भी युवाओं को थोड़ी-बहुत राहत देने में असफल रहती हैं, तो फिर ये युवक ‘मरता क्या नहीं करता’ की तर्ज पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं। हम समझते हैं कि अपने देश/प्रांत की युवा शक्ति का इस प्रकार क्षरण होने से रोकने के लिए सरकारों की सक्रियता और प्रशासनिक तंत्र की थोड़ी सी ईमानदारी बहुत ज़रूरी है। प्राय: बड़े विकसित देशों में यवाओं को रोज़गार अथवा भत्ता देने की प्रथा होती है। साम्यवादी देश भी इस मायने में अग्र भूमिका निभाते हैं। भारत भी एक विकासशील देश है। पंजाब कृषि प्रधान प्रांत है। लोकतंत्र में सरकारों का इतना-सा कर्त्तव्य तो होना ही चाहिए कि वे अपने नागरिकों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोटी/कपड़ा और मकान एवं अपने युवाओं को समुचित रोज़गार प्रदान कर सकें। पंजाब और देश की सरकारें जितनी जल्दी इस दिशा में अग्रसर होंगी, उतना ही अवैध आव्रजन और विदेशी धरती पर घटने वाली अप्रिय घटनाओं को रोकने में सहायक बन सकेंगी।