तो क्या ऐसे बचेंगी बेटियां ? 

हमारे देश में नवरात्र के दौरान व्रत तथा पूजा-पाठ का पूरे देश में धर्म एवं भक्ति का ऐसा पावन दृश्य देखने को मिलता है गोया हमारे देश से बड़े धर्मपरायण, सदाचारी तथा चरित्रवान लोग दुनिया के किसी दूसरे देश में रहते ही न हों। नेता, अभिनेता, अदालतें, सेना, पुलिस, मीडिया तथा धर्मगुरु आदि सभी महिलाओं के पक्ष में अपनी टिप्पणियां करते तथा महिलाओं के हितों व उनकी रक्षा की दुहाई देते सुनाई देते हैं। कन्या पूजन जैसी व्यवस्था तो हमारे देश ़खासतौर पर हिंदू धर्म के अतिरिक्त और कहीं है ही नहीं। परंतु यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि जिस प्रकार की घटनाएं हमारे ही देश में आए दिन होती रहती हैं और महिला अथवा कन्या को लेकर धरातल पर जो आचरण होता नज़र आता है उसे देखकर तो यही प्रतीत होता है कि भारतीय पुरुष समाज का एक बड़ा वर्ग कन्या पूजन अथवा देवी आराधना जैसी बातों की तो शायद ़फज़र् अदायगी ही करता है जबकि वास्तव में यह द्रोपदी के चीर हरण की घटना से कहीं ज़्यादा प्रेरित व प्रभावित है। अन्यथा क्या कारण है कि  नेता, अभिनेता, अदालतें, सेना, पुलिस, मीडिया, धर्मगुरु तथा खेल-कूद आदि लगभग सभी क्षेत्रों से महिलाओं के शोषण ़खासतौर पर उनके शारीरिक शोषण की ़खबरें आती रहती हैं। सबसे अधिक चिंतनीय विषय तो यह है कि वह वर्ग जो बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे लोकलुभावन नारे लगाते नहीं थकता उसी वर्ग के सदस्य महिला के साथ दुष्कर्म करने के आरोपी पाए जाते हैं? 
उदाहरण के तौर पर ताज़ातरीन मामला उत्तर प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी के बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर से जुड़ा हुआ है। पिछले दिनों इस विधायक तथा इसके कुछ साथियों पर एक युवती ने सामूहिक दुष्कर्म करने का आरोप लगाया। युवती इस विधायक की शिकायत लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लखनऊ स्थित निवास पर भी पहुंची। इस युवती ने वहां अपनी ़फरियाद सुनानी चाही तथा विधायक व उसके कथित दुष्कर्मी सहयोगियों की गिऱफ्तारी की मांग की। यहां तक कि युवती ने अपनी बेबसी दर्शाते हुए आत्मदाह करने तक का प्रयास किया। इस घटना के अगले ही दिन इसी युवती के पिता की जेल में रहस्यमयी ढंग से मौत हो गई। अपने पिता की हिरासत में मौत के मामले में भी पीड़िता ने विधायक को ही आरोपी बताया है। उत्तर प्रदेश प्रशासन ने पीड़िता के पिता की कथित हत्या की साज़िश के आरोप में विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के भाई अतुल सिंह व चार अन्य आरोपियों को गिऱफ्तार भी कर लिया है। केवल भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर ही नहीं बल्कि अन्य राजनीतिक दलों के भी कई नेताओं पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं। गोया ़कानून के निर्माता तथा ़कानून के रखवाले तथा महिलाओं के हितों की बातें करने जैसा ढोंग रचने वाले लोग ही प्राय: महिलाओं के शारीरिक शोषण में शामिल पाए जाते हैं? याद कीजिए 2011 की वह घटना जब एक स्वयंभू संत, आश्रम संचालक तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद पर उन्हीं की एक सहयोगी शिष्या ने उन पर कई वर्षों तक दुष्कर्म व शारीरिक शोषण का आरोप लगाया था। इतना ही नहीं बल्कि इस साध्वी ने अपने ‘गुरु’ चिन्मयानंद पर दुष्कर्म के अलावा उसकी हत्या किए जाने के प्रयास  का आरोप भी लगाया था। इस घटना के पश्चात् वह साध्वी इनके आश्रम को छोड़कर भी चली गई थी।  ताज़ा समाचारों के अनुसार उत्तर प्रदेश की वर्तमान योगी सरकार ने चिन्मयानंद पर चल रहे दुष्कर्म व हत्या के प्रयास जैसे इस गंभीर म़ुकद्दमे को वापस ले लिया है। क्या बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार के सरबराहों द्वारा इसी तऱीके से महिलाओं के अधिकारों तथा उनके स्वाभिमान की रक्षा के प्रयास किए जा रहे हैं? ज़रा सोचिए जब दुष्कर्म के आरोपियों को सरकार के मुखिया का ही संरक्षण प्राप्त हो तो पीड़ित महिलाएं आ़िखर किसका दरवाज़ा खटखटाएंगी? आत्महत्या,आत्मदाह करने या स्वयं को नग्न कर देने के सिवा उनके पास चारा ही क्या बचेगा? 
15 जुलाई 2004 की मणिपुर की उस घटना ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था जब राज्य की 12 महिलाओं ने नग्न होकर सेना के इं़फाल स्थित कांगला ़फोर्ट के समक्ष पूर्ण नग्न अवस्था में प्रदर्शन किया था। उन्होंने अपने हाथों में एक बैनर भी ले रखा था जिस पर लिखा था-‘इंडियन आर्मी रेप अस’। निश्चित रूप से भारतीय सेना देश की सीमाओं की सुरक्षा की ब़खूबी ज़िम्मेदारी निभाती है। यहां तक कि अनेक विकट परिस्थितियों में तथा प्राकृतिक विपदाओं के समय भी सेना देश के नागरिकों की जान व माल की ह़िफाज़त के लिए हर समय तैयार रहती है। परंतु जब इसी समर्पित सेना का कोई सदस्य अथवा कुछ सदस्य महिलाओं के यौन शोषण अथवा दुष्कर्म जैसी घिनौनी हरकतों में संलिप्त पाए जाते हैं उस समय निश्चित रूप से पूरी सेना पर आक्षेप लगता है। ठीक उसी तरह जैसे राजनीति, मीडिया तथा न्यायपालिका जैसे ज़िम्मेदार लोकतांत्रिक स्तंभों को चंद कुकर्मी, दुष्कर्मी तथा भ्रष्टाचारी लोगों ने बदनाम कर रखा है। बावजूद इसके कि हमारे देश की न्यायपालिका पर अभी तक महिलाओं के शारीरिक शोषण या दुष्कर्म जैसे विषय को लेकर कम से कम आरोप लगे हैं। परंतु यह भी कहना सच है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस ए.के. गांगुली पर उन्हीं की एक सहयोगी महिला द्वारा उन पर लगाए गए शारीरिक शोषण के आरोपों ने न्यायपालिका की साख पर भी धब्बा लगा दिया।  पिछले दिनों हैदराबाद की एक घटना ने तो रोंगटे ही खड़े कर दिए। तेलगू ़िफल्म अभिनेत्री श्री रेड्डी मगिडी ने तो हैदराबाद के ़िफल्म सिटी में मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन के समक्ष अपने पूरे कपड़े उतार कर स्वयं को पूर्ण नग्न खड़ा कर दिया। इस अभिनेत्री ने स़ाफतौर पर यह आरोप लगाया कि ़िफल्मी दुनिया के लोग ही मुझसे मेरी नंगी तस्वीरें व नंगी वीडियो बनाकर भेजने के लिए कहते हैं। ऐसे में मैं सार्वजनिक तौर पर ही अपने कपड़े क्यों न उतार फेंकूं।  इस अभिनेत्री ने ़िफल्म उद्योग में पुरुष समाज के यौन शोषण तथा इस व्यवस्था को संरक्षण दिए जाने से दु:खी होकर कहा कि अपनी लड़ाई में मैं बेसहारा हूं क्योंकि मेरा दर्द किसी को दिखाई नहीं दे रहा है जिसकी वजह से मुझे इतना बड़ा ़कदम उठाना पड़ा और मैंने सार्वजनिक तौर पर कपड़े उतारे। उसने कहा कि अपनी बात सुनाने व सरकार से अपनी मांगों पर जवाब लेने हेतु उसके पास यही एक रास्ता शेष बचा था।  ज़ाहिर है जब हमारे देश के धर्मगुरु, राजनेता, ़िफल्म जगत, न्यायपालिका, मीडिया जैसे ज़िम्मेदार व्यवस्था के लोग ही महिलाओं के सम्मान व रक्षा के लिए प्रतिबद्ध नहीं फिर आ़िखर हमारे देश में कैसे बचेंगी बेटियां?