तीसरे विश्व-युद्ध की ओर दुनिया


अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा के मुताबिक अमरीका ने अपने मित्र देश ब्रिटेन और फ्रांस के साथ मिलकर सीरिया पर मिसाइल हमला बोल दिया। सीरीया में मौजूद रासायनिक हथियारों के भंडारों को नष्ट करने के मकसद से 105 मिसाइलें दागी गईं। अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस की ये मिसाइलें राजधानी दमिष्क और होम्स शहरों पर बरसाई गईं। इसमें रासायनिक हथियारों के भंडार और वैज्ञानिक शोध केंद्रों को निशाना बनाया गया है। इन हमलों के परिणाम- स्वरूप कई इमारतों में आग लग गई और दमिष्क धुएं के गुबार से ढंक गया। इस हमले में कितनी जन-हानि हुई है, यह तो फि लहाल साफ  नहीं है, लेकिन अमरीका ने ज़रूर यह ऐलान कर हमले की मुहिम खत्म कर दी है कि उसने अपने मकसद में कामयाबी प्राप्त कर ली है। 
सीरीया ने इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून और अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताया, वहीं रूस, चीन और ईरान ने कड़ा विरोध जताया है। इनका कहना है कि पहले रासायनिक हथियार रखने और उनका इस्तेमाल किए जाने तथा किसके द्वारा इस्तेमाल किए गए, इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए थी। रूस के सरकारी टीवी चैनल ‘रोसिया-24’ की मानें तो रूस तीसरे विश्व युद्ध के पहले की तैयारी में जुट गया है। चैनल ने युद्ध की आशंका के चलते देश की जनता को बंकरों में ले जाने और खाने-पीने का सामान जुटाने की सलाह दी है। यदि रूस जवाबी कार्यवाही करता है तो तीसरा विश्व युद्ध छिड़ना तय है। हालांकि मित्र देशों की इस कार्यवाही का सऊदी अरब, इजराइल  और तुर्की सहित दुनिया के अनेक देशों ने समर्थन किया है।
मित्र देशों के इस हमले ने सीरीया को लेकर दुनिया में नए सिरे से तनाव बढ़ा दिया है। हमले के बाद सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद को हटाने के लिए युद्ध की आशंकाएं तेज हो गई हैं। साढ़े सात साल से जारी इस युद्ध में अब तक पांच लाख से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। एक करोड़ लोग शरणार्थी के रूप में विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। ये शरणार्थी जिन देशों में रह रहे हैं, उनमें भी अपनी इस्लामिक कट्टरता के चलते संकट का सबब बने हुए हैं। जर्मनी ने सबसे ज्यादा विस्थापितों को शरण दी थी। अब यही जर्मनी इनके धार्मिक कट्टर उन्माद के चलते रोजाना नई-नई परेशानियों से रूबरू हो रहा है। दरअसल 7 अप्रैल, 2018 को सत्तर नागरिकों की रासायनिक हमले से मौत के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने जबावी कार्यवाही करने का बीड़ा उठाया था। 
अपनी सनक के चलते इसे उन्होंने अंजाम तक भी पहुंचा दिया। शायद इसीलिए रूस के उप-प्रधानमंत्री आर्केडी वोरकोविच ने ट्रंप को जबाव देते हुए कहा है कि ‘अंतर्राष्ट्रीय संबंध एक शख्स के मिजाज पर निर्भर नहीं होने चाहिए।’ दरअसल रासायनिक हमले में सरीन और क्लोरीन गैस का प्रयोग किया जाता है। इसके असर से मृतक व्यक्ति की मौत का कारण आसानी से पता चल जाता है। इसलिए हमले से पूर्व निष्पक्ष जांच करा ली जाती तो रासायनिक हमला हुआ अथवा नहीं इसकी हकीकत आसानी से सामने आ सकती थी।
रूस ने जिस तरह से इस हमले को लेकर अमरीका के खिलाफ  आंखें तरेरी हैं, उससे यह आशंका भी उठती है कि रूस आतंकी संगठनों को उकसाने के साथ उन्हें घातक हथियारों के रूप में मदद भी दे सकता है। ईरान और चीन भी रूस के साथ खड़े हो सकते हैं। उत्तरी कोरिया तो अमरीका के विरुद्ध पहले से ही परमाणु युद्ध की धमकी देने में लगा है। इराक ने इस हमले को गंभीरता से लेते हुए अरब नेताओं से आग्रह किया है कि इस समस्या पर विचार-विमर्श कर निराकरण की पहल करें। 
भारत ने इस हमले पर संतुलित रुख अपनाते हुए सभी पक्षों से शांति बनाए रखने का आह्वान किया है। रूस ने जवाबी हमले का दंभ जरूर दिखाने की हिमाकत की, किंतु वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में सीरीया पर हमले की निंदा संबंधी विचार-प्रक्रिया को भी पूरा कराने में नाकाम रहा है। जबकि उसके पास परिषद् में वीटो का अधिकार है। इस प्रस्ताव को रूस के अलावा महज चीन और बोलीविया का ही समर्थन मिल पाया है। आठ देशों ने प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि चार अन्य सदस्य देश अनुपस्थित रहे। जबकि इस प्रक्रिया के दौरान ही अमरीका ने फि र घोषणा कर दी है कि सीरीया दोबारा हमले के लिए तैयार रहे। 
बहरहाल हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि सीरिया में सुलगाई गई यह चिंगारी कभी भी विस्फोट में बदल सकती है और यदि यह विस्फ ोट हुआ तो तीसरा विश्व युद्ध दुनिया के लिए बड़ी बर्बादी लेकर पेश आएगा। क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमरीका ने जापान के शहर हिरोशिमा पर 6 अगस्त और नागासाकी पर 9 अगस्त, 1945 को जो परमाणु बम गिराए थे, उनसे बड़ी तबाही हुई थी। इन बमों से हुए विस्फोट से फूटने वाली रेडियोधर्मी विकिरण के कारण दो लाख लोग तो मरे ही थे, हजारों लोग अनेक वर्षों तक लाइलाज बीमारियों की भी गिरफ्त में रहे थे। विकिरण प्रभावित क्षेत्र में दशकों तक अपंग बच्चों के पैदा होने का सिलसिला जारी रहा।  
जापान के आणविक विध्वंस से विचलित होकर ही 9 जुलाई 1955 को महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन और प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक बर्ट्रेंड रसेल ने संयुक्त विज्ञप्ति जारी करके आणविक युद्ध से फैलने वाली तबाही की ओर इशारा करते हुए शांति के उपाय अपनाने का संदेश देते हुए कहा था, ‘यह तय है कि तीसरे विश्व युद्ध में परमाणु हथियारों का प्रयोग निश्चित किया जाएगा।
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