भारत-पाकिस्तान संबंध बढ़ रही हैं दूरियां

देश की आज़ादी के बाद भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंध कभी भी सुखद नहीं रहे। विभाजन के समय हुई अथाह पीड़ा का दर्द अभी भी शेष है। एक ही देश के धर्म के आधार पर टुकड़े करने की घटना ने अनेकानेक समस्याओं को जन्म दिया, जिन्हें आज तक सुलझाया नहीं जा सका। दोनों देशों में समय-समय पर हुए युद्धों ने इन दरारों को और भी बढ़ा दिया। कश्मीर को हासिल करने एवं भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने के लिए पाकिस्तान ने जो रक्तिम खेल शुरू किया है, वह अतीव खतरनाक है और आज भी जारी है। दोनों देशों की शत्रुता की यह दास्तान बेहद पीड़ादायक एवं लम्बी है, परन्तु इसके साथ-साथ इस हकीकत से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि दोनों देशों के बड़ी संख्या में लोगों की भावनाएं एक-दूसरे के साथ मैत्री एवं सहयोग बनाने की रही हैं। इसी प्रकार जब भी कभी दोनों देशों के लोगों का एक-दूसरे की धरती पर जाने अथवा आपसी मेल-मिलाप होने का सबब बनता है तो वह दृश्य बहुत भावुक होता है। ऐसी भावनाओं को दोनों सरकारें दर-किनार नहीं कर सकीं, इसीलिए किसी न किसी प्रकार दोनों देशों के संबंध बने आते रहे हैं। पिछले कुछ समय से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक स्तर पर तनाव पैदा हुआ है। एक-दूसरे के सरकारी प्रतिनिधियों के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप दोनों देशों की ओर से लगाए जाते रहे हैं तथा यहां तक कि कई अफसरों पर उन्होंने एक-दूसरे को अपमानित करने की कार्रवाइयां भी की हैं, जिसने दोनों के बीच कटुता को और भी बढ़ाया है। विभाजन से पूर्व चूंकि यह धरती एक ही थी, इसलिए चाहे बड़े स्तर पर आबादी का आदान-प्रदान तो हो गया परन्तु पीछे छूट गए महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थानों को साथ नहीं ले जाया जा सकता था। इसलिए अपने धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थानों से बिछुड़ जाने की तड़प दोनों देशों के लोगों में बनी रही है। ऐतिहासिक एवं अन्य महत्त्वपूर्ण पर्वों पर बढ़ी हुई यह तड़प साफ देखी जा सकती है। इसीलिए दोनों देशों को ये संधियां करनी पड़ीं कि वे समय-समय पर ऐसी यात्राओं की इजाज़त देते रहेंगे। ऐसा कुछ थोड़े-बहुत विघ्नों के बावजूद निरन्तर होता भी रहा है। परन्तु दोनों देशों में जब तनाव अधिक बढ़ता है तो इसका प्रभाव इन यात्राओं पर भी पड़ता है। इस प्रकार के बन चुके माहौल में ऐसा कुछ ही बैसाखी के अवसर पर भी देखने को मिला है।पिछले दिनों में इसीलिए पाकिस्तान की यात्रा पर गए सिख श्रद्धालुओं को भारतीय दूतावास अधिकारियों से मिलने से रोक दिया गया। जब भारतीय राजदूत भारत से आए श्रद्धालुओं को मिलने के लिए गुरुद्वारा पंजा साहिब को जा रहे थे तो उन्हें रास्ते से ही वापिस भेज दिया गया। इसी प्रकार गुरुद्वारा ननकाणा साहिब के भीतर भी पाकिस्तानी सरकार की ओर से अपने ही पाले हुए कुछ व्यक्तियों की कार्रवाइयों का बहाना बनाकर उन्हें गुरुद्वारा साहिब के भीतर दाखिल नहीं होने दिया गया। चाहे पाकिस्तान के वक्फ बोर्ड ने विदेश मंत्रालय की स्वीकृति से भारतीय हाई कमिश्नर को 14 अप्रैल को गुरुद्वारा श्री पंजा साहिब में बैसाखी के समारोह में शामिल होने का निमंत्रण दिया था। इस बात पर भारत सरकार की ओर से जहां तीव्र रोष व्यक्त किया गया, वहीं इसे भारतीय कूटनीतिज्ञों के साथ दुर्व्यवहार भी करार दिया गया। ऐसा करके पाकिस्तान ने 1961 में वियना कनवैन्शन के नियमों का उल्लंघन किया है।समय-समय पर दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक एवं धार्मिक यात्राओं के संबंध में जो संधियां हुई हैं, अब पाकिस्तान की सरकार उनसे किनारा करते हुए प्रतीत होती है। नि:संदेह ऐसा घटनाक्रम जहां दोनों देशों के बीच दूरियों को अधिक बढ़ाएगा, वहीं पहले से बने आ रहे टकराव को भी शिखर पर ले जाने के लिए कारक सिद्ध होगा, जिसके परिणाम पहले ही गड़बड़-ग्रस्त इस क्षेत्र के लिए बुरे सिद्ध हो सकते हैं।

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द