किसानों की सुविधा के लिए बनाए फोकल प्वायंटों की उदास दास्तां

ज़ीरकपुर, 18 अप्रैल (हरदीप सिंह हैप्पी पंडवाला): अकाली सरकार द्वारा अपने कार्यकाल दौरान 1978 से लेकर 2001 तक करोड़ों रुपए खर्च कर समूचे राज्य में फोकल प्वाइंट बनाए गए थे। इनमें किसानों को हर प्रकार की सुविधा देने का प्रयास किया गया था, परंतु साढ़े तीन दशक बीतने के बाद भी सरकार द्वारा खंडहर बनती जा रही फोकल प्वाइंटों की इमारतों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया, बल्कि कई इमारताें को लोगाें ने नाजायज़ कब्ज़ा करके बेच भी दिया है। पंजाब की मार्किट कमेटियों के अधीन पड़ते इन फोकल प्वाइंटों में किसानों को पैट्रोल, डीज़ल पम्प, सिविल अस्पताल,  पशु अस्पताल, डाकघर, बैंक, बिजली शिकायत घर, सार्वजनिक टैलीफोन, टै्रक्टर वर्कशाप, सोसायटी आदि के बिना कृषि उत्पादों के बेचने-खरीदने का प्रबंध व खेतों से लेकर घर तक उपयोग में आने वाली प्रत्येक वस्तु सस्ते दाम पर देने की दुकानें खोली जानी थीं। यहां तक कि पटवारखानों की इमारतें भी फोकल प्वाइंटों में बनाई गईं, परंतु सरकार की बेरुखी के कारण पटवारखाने कबूतरखाने बनकर रह गए। पंजाब की 142 के करीब मार्किट कमेटियों के अधीन 268 सब यार्ड व लगभग 1204 खरीद केन्द्र पड़ते हैं, जिनमें से करोड़ों रुपए खर्च कर 254 के करीब फोकल प्वाइंट बनाए गए, परंतु सरकारी बेरुखी के कारण आज इन फोकल प्वाइंटों की दास्तां बहुत उदास है। कई ज़िलों में हालत इतनी बुरी है कि फोकल प्वाइंट की जगह पाथी (उपले) प्वाइंट बन गए हैं, जिसको लोग गोबर के उपले व पशु सम्भाल के लिए उपयोग कर रहे हैं। पटवारखानों की इमारत आवारा पशुओं के लिए उचित ठहराव घर व बैंकाें की इमारतें चूहेखाने बन गई हैं।  बिजली शिकायत घरों को पहाड़ी किकरों ने अपने आगोश में ले लिया है और पशु अस्पतालाें की इमारतें प्रवासी मज़दूरों के लिए रैण बसेरा बन गई हैं। पंजाब मंडी बोर्ड व पंचायत विभाग द्वारा बनाई इन इमारतों के नीचे आई कृषि योग्य ज़मीन भी बेकार हो गई, जिस कारण पंचायताें को होने वाली आय भी बंद हो गई। कई गांवाें में फोकल प्वाइंटों के निर्माण के लिए 20 एकड़ से अधिक ज़मीन बांटी गई है। खस्ताहाल इमारतों में से कुछ के अंदर बैंक, डिस्पैंसरियां व को-आप्रेटिव सोसायटियां चल रही हैं। कई इमारतें पुलिस विभाग के कब्ज़े में हैं, जहां पुलिस कर्मचारियों के रहने का प्रबंध किया गया है। यहां तक कि कई गांवों के फोकल प्वाइंटों को मृतकों की अंतिम रस्मों के लिए उपयोग किया जाता है। इन फोकल प्वाइंटों में सीज़न दौरान ही किसान फसल लेकर आते हैं। सीज़न दौरान भी किसानों को पीने वाले पानी व शौचालय की सुविधा न होने के कारण उन्हें खुद अस्थाई प्रबंध करने पड़ते हैं, परंतु मार्किट कमेटियों की अफसरशाही किसानों के लिए छाया, पानी, लाइट आदि सुविधाओं के नाम पर करोड़ों रुपए का खर्च डालकर धांधलियों को अंजाम दे रही हैं, जबकि खरीद केन्द्रों, सब यार्डों व फोकल प्वाइंटों में सुविधाएं नाममात्र होती हैं। हर वर्ष लाखों रुपए की आय होने के बावजूद अभी भी प्रदेश में 180 के करीब फड़ कच्चे हैं। फोकल प्वाइंटों के अधीन चल रहे पैट्रोल पम्पों की कहानी भी पहेली बनी हुई है, जिनके बारे छोटे से लेकर बड़े विभाग तक नहीं जानते कि फोकल प्वाइंटों अधीन चल रहे पैट्रोल पम्प किसी एक पार्टी की मलकीयत हैं या फिर हर वर्ष ठेके पर दिए जाने चाहिएं। वास्तव में पैट्रोल पम्पों को एक व्यक्ति विशेष ही चला रहा है। पंचायती राज विभाग से लेकर पंजाब मंडी बोर्ड तक इन पम्पों का विवरण नहीं है। यह विभाग सारा रिकार्ड फूड सप्लाई विभाग के पास बता रहे हैं, जिस कारण पैट्रोल पम्पों की ओर से कथित तौर पर बड़ी धांधली होने की सम्भावना है।