लिएंडर पेस अनंत आश्चर्यों के महानायक

अपने 45वें जन्मदिन से मात्र 2 माह पहले भारत के टेनिस प्लेयर लिएंडर पेस ने अपनी 43 वीं जीत दर्ज की और डेविस कप इतिहास के सबसे सफल युगल खिलाड़ी बने। गत 7 अप्रैल 2018 को 1996 ओलंपिक खेलों के कांस्य पदक विजेता पेस ने रोहन बोपन्ना के साथ मिलकर, करो या मरो गेम में, चीन की जोड़ी माओ झिन गोंग व जे झंग को पराजित किया और इस तरह भारत वर्ल्ड ग्रुप प्लेऑफ  में पहुंच गया। यह उपलब्धि लिएंडर पेस की दृढ़ता व फिटनेस को सलाम है, विशेषकर इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उन्होंने अपना पहला डेविस कप मैच अब से 28 वर्ष पहले 1990 में खेला था। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि ग्रैंडस्लैम व कुछ एटीपी प्रतियोगिताओं के कारण पिछले एक दशक के दौरान डेविस कप ने अपनी पहली सी चमक खो दी है, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अपने अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए सभी टॉप रैंक खिलाड़ी डेविस कप में हिस्सा लेते हैं। इस संदर्भ में लिएंडर पेस का कभी न हार मानने वाला जोश अधिक प्रेरणादायक है। वह जब भी भारतीय जर्सी में होते हैं तो अपने खेल का स्तर अधिक ऊंचा कर देते हैं। लेकिन अफसोस यह है कि भारतीय टेनिस अब लिएंडर पेस व महेश भूपति जैसे खिलाड़ी पैदा नहीं कर रहा है। इन दोनों के अतिरिक्त सानिया मिर्जा व बोपन्ना ने ही ग्रैंडस्लैम युगल खिताब जीते हैं। आज तक कोई भारतीय एकल ग्रैंडस्लेम नहीं जीत पाया है।
इसलिए भारत की सबसे बड़ी चिंता यह है कि जूनियर स्तर पर अनेक संभावनाओं को जागृत करने के बावजूद कोई स्तरीय एकल खिलाड़ी सामने क्यों नहीं आ सका है? वर्तमान में भारत की उम्मीदें गिनती के युवा खिलाड़ियों पर टिकी हैं जैसे पूर्व जूनियर विश्व नंबर वन यूकी भाम्बरी, रामकुमार रामनाथन और 2015 में जूनियर विंबलडन युगल विजेता सुमित नागल। अखिल भारतीय टेनिस संघ के लिए जरूरी है कि वह मात्र शहरी क्षेत्रों में प्रतियोगिताएं आयोजित करने से आगे की सोचें और टैलेंट की तलाश में छोटे शहरों और कस्बों आदि पर भी फोकस करें। लेकिन टैलेंट को स्पॉट करना सिर्फ आधा काम करना ही होता है। संघ टॉप दस खिलाड़ियों को निरंतर आर्थिक सहयोग प्रदान करे और साथ ही कुछ विश्व स्तरीय कोचों की सेवाएं भी ले जो सुनहरे भविष्य के लिए इस प्रतिभा की नोक पलक दुरुस्त करें। बहरहाल, लिएंडर पेस ने अपनी रिकॉर्ड जीत को अपने परिवार, अपने सभी डेविस कप कप्तानों, अपने सभी युगल पार्टनरों, अपनी टीम के सदस्यों और प्रत्येक भारतीय को समर्पित करते हुए कहा, ‘यह रिकॉर्ड भारत के लिए है। मुझे गर्व है कि कठिन चुनौतियों के बावजूद मैं अपनी फिटनेस व गेम पर कार्य करता रहा, छोटे व बड़े टूर्नामेंट खेलता रहा। इस रिकॉर्ड तक पहुंचने के लिए बहुत प्रयास करना पड़ा। यह रिकॉर्ड यूं ही रातोंरात नहीं हो गया।