जलियांवाला बाग घटनाक्रम से कम नहीं थी 20 अप्रैल की त्रासदी

अमृतसर, 20 अप्रैल : जलियांवाला बाग का घटनाक्रम चाहे 13 अप्रैल 1919 की त्रासदी विश्व की अपने आप में बड़ी त्रासदी थी, परन्तु अमृतसरियों को 13 अप्रैल के बाद भी कई ऐसी त्रासदियां झेलनी पड़ीं, जिनसे आज भी बहुत सारे देशवासी वाकिफ नहीं हैं। वर्णनीय है कि 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर निवासियों के एक शांति पूर्ण जलूस पर अंग्रेज़ी पुलिस द्वारा गोली चलाने के साथ 20 के लगभग लोग मारे गए तथा बहुत सारे घायल हो गए। अंग्रेज़ सिपाहियों की इस कार्रवाई के बाद शहर वासियों की भड़की भीड़ द्वारा उसी दिन बाद दोपहर विभिन्न स्थानों पर पांच अंग्रेज़ों की हत्या कर दी गई तथा दो दर्जन के लगभग सरकारी इमारतों को भारी नुक्सान पहुंचाया गया। भीड़ में शामिल कुछ लोग जब शहर की लोहगढ़ आबादी के कूचा कोड़ियां में पहुंचे तो चर्च आफ इंग्लैंड जनाना मिशनरी सोसायटी के लिए काम करने वाली मिस मारशीला शेरवुड, जोकि अमृतसर सिटी मिशन स्कूल की मैनेजर भी थी, अचानक साइकिल पर अपने घर लौटते भीड़ के काबू आ गई। मारशीला ने आबादी कूचा कोड़ियां की गली कुरेशां के बहुत सारे घरों पर दस्तक देकर मदद की गुहार लगाई, परन्तु भीड़ के गुस्से के डर से किसी ने उसको पनाह नहीं दी। भीड़ में शामिल कुछ मुस्लिम नौजवानों द्वारा उसको उपरोक्त गली में लाठियों के साथ उस वक्त तक मारा जाता रहा, जब तक दंगाकारियों को यह विश्वास नहीं हो गया कि वह मर चुकी है। अंत भीड़ के चले जाने के बाद इसी क्षेत्र के एक भारतीय डाक्टर जिसका पुत्र शेरवुड के स्कूल में पड़ता था, ने मरहम-पट्टी करके उसको बुरका पहनाकर उसके घर पहुंचाया। जलियांवाला बाग घटनाक्रम के बाद 19 अप्रैल की शाम जब हत्यारे जनरल रिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर ने शहर में गश्त की तो उसको दंगाकारियों द्वारा मारशीला शेरवुड के साथ किए व्यवहार की जानकारी दी गई। जिस पर डायर ने कहा कि एक अंग्रेज़ महिला ने जिस गली में अत्याचार सहे हैं, वह हिन्दुस्तानियों के लिए एक ‘यादगारी तथा धार्मिक गली’ साबित होनी चाहिए तथा इसका अहसास हिन्दुस्तानियों को उस वक्त होगा जब वह अपने किसी धार्मिक तीर्थ जैसे इस गली में से नाक तथा घुटनों के भार रेंगकर निकलेंगे। वर्णनीय है कि उन दिनों यह गली भी शहर की अन्य गलियों की तरह कूड़े-कचरे तथा गंदगी के साथ भरी हुई थी। उसने तुरन्त अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वह उक्त लगभग 150 गज लंबी गली के दोनों किनारों पर दो कूड़ेदान निशानी के तौर पर रख दें तथा इस गली में निकलने वाले प्रत्येक शहरी को इस सज़ा को स्वीकार करना होगा। डायर ने जारी किए उक्त ‘क्रालिंग आर्डर’ के बाद गली में से निकलने वाले प्रत्येक शहर निवासी को पेट के भार नाक के साथ रेंगकर निकलना पड़ा। यदि रेंगकर निकलने वाला जरा भी अपने घुटनों को ऊंचा करता या मोड़ता तो उसकी पीठ पर बंदूकों के बट मारे जाते तथा सज़ा मानने से इंकार करने वालों के लिए इस गली के मध्य लगाई टिकटिकी से उनके हाथ-पैर बांधकर कोड़े लगाए जाते। यह सज़ा जिन 100 के लगभग अमृतसरियों को भोगनी पड़ी, उनमें एक गर्भवती महिला, कुछ अपाहिज तथा बहुत सारे बुजुर्ग भी शामिल थे।