समुद्र-हवा

बात बहुत पुरानी है। एक दिन हवा, धरती और समुद्र बातें कर रहे थे। तीनों बढ़-चढ़ कर अपने बारे में बता रहे थे। हवा ने कहा, ‘मैं बहुत ताकतवर हूं। मेरे तूफान झंझावात हैं। इससे मैं कुछ भी कर सकता हूं।’  समुद्र ने भी शेखी बघारी, ‘मेरे पास ज्वारभाटा है, ऊंची-ऊंची लहरें हैं, इनको देखकर कोई भी डर लाता है।’  धरती भी कहां पीछे रहने वाली थी, ‘मेरे पास ऊंचे पेड़ हैं, पहाड़ हैं, नदियां हैं और इन सबके साथ एक ताकत है, भूकंप की ताकत।’  बातें चल रही थीं कि हवा ने बड़े-बड़े उन पक्षियों के नाम गिनाएं, जो हवा में ऊंचे-ऊंचे उड़ते हैं। समुद्र ने भी पानी में रहने वाले जीव-जंतुओं के नाम लिए। धरती के पास भी बहुत से नाम थे। इन तीनों की सूची में एक नाम था, वह था पेंग्विन का। पेंग्विन धरती पर रहता है, समुद्र में मछलियां पकड़ता है और हवा में भी उड़ता है(उस समय पेंग्विन उड़ता भी था)।  धरती ने कहा, ‘वाह, यह क्या बात हुई, रहता तो वह धरती पर है, यहीं घर बनाता है, बच्चों को बड़ा करता है, इसलिए वह सिर्फ मेरे दल में ही गिना जाएगा।’  धरती की बात सुन हवा को गुस्सा आ गया, ‘रात भर धरती पर रहने से कोई तुम्हारे दल का नहीं हो जाएगा। सुबह होते ही वह हवा में पंख फैलाकर उड़ने लगता है।’ इसी तरह समुद्र ने भी अपनी बात सामने रखी पर हवा और धरती में तेज बहस छिड़ गई। हवा गुर्राने लगी। धरती गुस्से से कांपने लगी।  समुद्र चालाक था। वह वहां से खिसक लिया और सीधा जा पहुंचा पेंग्विन के पास। बोला, ‘हम तीनों में बहस हो रही है, अब तुम्हीं बताओ कि तुम किसके साथ हो?’  पेंग्विन सोच में पड़ गया। कुछ देर इधर-उधर टहलता रहा। फिर बोला, ‘मैं हवा में उड़ता हूं ताकि मेरे पांवों में फुर्ती भर जाए। धरती पर घर बनाता हूं और समुद्र में तैर कर मछलियां पकड़ कर अपना और अपने बच्चों का पेट भरता हूं, इसलिए मैं कैसे एक को चुन लूं।’  पेंग्विन की बात सुनकर समुद्र और ज्यादा उलझ गया। सोच-विचार कर बोला, ‘देखो, हवा में उड़कर फुर्ती-वुर्ती भरने की बात तो बेकार है। और बहुत से तरीके हैं। घर बनाना और खाना सबसे जरूरी है। खाना समुद्र से ही मिलता है। इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है।’  अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि पेंग्विन ने कहा, ‘खाना लेकर लौटना तो धरती पर ही होगा?’  ‘अगर मैं तुम्हें पानी पर ही रहने की जगह बना दूं?’ समुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।  पेंग्विन सोच में पड़ गया। समुद्र ने कहा, ‘आओ, मेरे साथ आओ।’ आगे-आगे समुद्र और पीछे-पीछे पेंग्विन चला। पेंग्विन ज्यों ही पांव बढ़ाता वहां पानी की जगह ठोस सतह मिलती। समुद्र आगे जा रहा था, पीछे उसकी ऊपरी सतह बर्फ बनकर जमती जा रही थी। पेंग्विन को उस पर चलने में बड़ा मजा आ रहा था। यह धरती की तरह ऊबड़-खाबड़ नहीं, चिकनी और मुलायम थी, जिस पर उसके पांव मजे से फिसल रहे थे। समुद्र उसे कई मील तक ले गया। फिर कहा, ‘अब तुम सिर्फ मेरे, मेरे दल के हो, क्योंकि तुम्हारे पांव के नीचे धरती नहीं है, बर्फ है और बर्फ के नीचे पानी है, जिसमें ताजा मछलियां भी हैं।’  उधर समुद्र को न देख, हवा और धरती उसे ढूंढ़ने निकले। यह देखकर आश्चर्य से उनके मुंह खुले के खुले रह गए। पेंग्विन पानी की सतह पर चल रहा था और खुश था। उसके पीछे-पीछे उसके बच्चे और संगी-साथी चले आ रहे थे। अंटार्कटिका में हजारों मीलों तक फैले ठोस समुद्र पर आज भी लाखों पेंग्विन दौड़ते- भागते दिखाई देते हैं।

 (उर्वशी)