मिसाइल के क्षेत्र में भारत की बड़ी उपलब्धि

भारत ने गत दिनों पहली बार देश में बनाए सीकर  (Seekears) जो मिसाइल को निर्धारित लक्ष्य पर मार करने के लिए मागदर्शक का काम करता है, का प्रयोग करते हुए विमान के द्वारा सुपर सोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया है। इस तरह देश मिसाइल तकनीक विकसित करने में पूर्ण तौर पर आत्मनिर्भरता के निकट पहुंच गया है। देश की मुख्य खोज एजेंसी डी.आर.डी.ओ. लगभग वर्ष 2020 तक महत्वपूर्ण मिसाइल तकनीक से मिसाइल निर्माण शुरू कर लेगी। यहां विशेष बात यह है कि यह संस्था अपने निर्धारित लक्ष्य के दो वर्ष पहले ही निकट पहुंच गई है और आशा है कि यह अपना निर्धारित लक्ष्य प्राप्त कर लेगी। इससे देश का गौरव तो बढ़ेगा ही, बल्कि आर्थिक तौर पर भी देश का बहुत फायदा होगा। इस खोज से देश का कम से कम 15 हज़ार से 20 हज़ार करोड़ रुपए का फायदा होगा। यह फायदा साजो-सामान पर होते खर्चों से बचेगा और यह मिसाइल पर आने वाले कुल खर्च का 35 से 40 फीसदी बनता है। वर्ष 2014 में सत्ता में आते ही एन.डी.ए. सरकार ने डी.आर.डी.ओ. को सीकर जैसी और महत्वपूर्ण तकनीक से 2022 तक विकसित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी ताकि देश इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सके और सीकर का आयात खत्म किया जा सके। स्वदेशी विकसित सीकर तकनीक द्वारा ब्रह्मोस मिसाइल के सफल परीक्षण ने साबित कर दिया है कि देश में तैयार किए सीकर द्वारा किए गए परीक्षण से देशी तकनीकी विकास प्रोग्राम संस्था की कार्य नीति संबंधी महारत का ठीक प्रदर्शन हुआ है। डी.आर.डी.ओ. अब इससे अपने प्रोग्राम को और आगे बढ़ा सकेगा और खुद 2020 तक सामरिक मिसाइल प्रणाली में आत्मनिर्भरता हासिल कर सकेगा, ऐसा सरकारी सूत्रों का मानना है। यह पहली बार हुआ है कि ब्रह्मोस मिसाइल 3.0 मैक की गति या विमान से तीन गुणा अधिक रफ्तार से चलने के समर्थ हुई है। यह सब देशी विकसित सीकर टैक्नालॉजी से सम्भव ही हुआ है। इस तरह इससे मिसाइल की बिल्कुल सही निशाने पर मार करने की समर्था अधिक बढ़ेगी। वैसे भारत पहले ही लम्बी दूरी की मार करने वाले मिसाइल सिस्टम के क्षेत्र में आगे है। जैसे अग्नि मिसाइल शृंखला जोकि अपने निशाने पर यानि 700 किलोमीटर से लेकर 5500 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम है, विकसित कर चुका है। इससे पहले मिसाइल पिन प्वाइंट पर निशाना लगाने में सफल नहीं थी और यह सफलता हासिल करने के लिए यह टैक्नालॉजी (सीकर) बाहर से दूसरे देशों से मंगवानी पड़ती थी। भारत पहले धरती से हवा में मार करने वाली कम दूरी की मिसाइलों के लिए साजो-सामान मंगवाने पर 30 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक खर्च करता था और सीकर टैक्नालॉजी विदेशी ठेकेदारों से खरीदता था। अब भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जायेगा। वर्ष 2017-18 डी.आर.डी.ओ. के मिसाइल कम्पलैक्स और दूसरी लैबोटरियों के आंगन खुशियां लेकर आया है। अब यह सीकर टैक्नालॉजी के क्षेत्र में के.यू.बैंड, एक्स बैंड पर एक और महान प्राप्ति और सफलता की कहानी इसकी साक्षी हैं। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भिन्न-भिन्न तरह के स्वदेशी सीकर की परख पहले ही सफलतापूर्वक की जा सकती है। जैसे एैस्टरा, नाग, एंटी टैंक गाइडिड मिसाइल, तुरंत ज़मीन से हवा में मार करने वाली और आकाश से जो नई आने वाली तकनीक की मिसाइल है, विकसित हो चुकी हैं। सीकर के देश में हुए विकास ने मिसाइल के सही निशाना लगाने से बड़ी सहायता की है और यह कम से कम 30 से 40 फीसदी मिसाइल प्रोजैक्ट की लागत बचाने में सहायक है। डी.आर.डी.ओ. की योजनाओं के अनुसार भविष्य की सारी मिसाइलें जो देश के हथियार घरों में मौजूद है, जिनमें आकाश मार्क-1 निर्भय (लम्बी दूरी की ज़मीन से हमला करने वाली क्रूज़ मिसाइल एंटी रेडिएशन मिसाइलें और हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, अब देशी सीकर सिस्टम से लैस होंगी और इसी तरह देश का अरबों डॉलर का विदेश में जाने वाला धन बचेगा। सीकर और नैवीगेशन (मार्गदर्शक) जैसे प्रोग्राम के क्षेत्र में सफलता की डी.आर.डी.ओ. के लिए भविष्य के नए प्रोजैक्ट तैयार करने के लिए सहायक होंगे और यह विदेश पर निर्भरता को कम करेंगे।

—अजीत समाचार ब्यूरो