शेर-ए-पंजाब की बारांदरी के अस्तित्व और इतिहास से पर्यटक बेखबर

अमृतसर, 23 अप्रैल (सुरिन्द्र कोछड़) : अमृतसर-अटारी सड़क पर गांव धनोए कलां में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनाई आलीशान बारांदरी खंडहर में तबदील हो चुकी है और पंजाब विरासती विभाग की लापरवाही के चलते यह विरासती स्मारक कभी भी गिर सकती है। वर्णनीय है कि भारत-पाक सीमा के साथ लगते उक्त गांव के जिस भाग को ‘पुल कंजरी’ नाम के साथ सम्बोधित किया जाता है, के स्थान पर महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनवाई गई बारांदरी में वह लाहौर से अमृतसर आने-जाने के समय ठहरते थे और आराम करते थे। इस बारांदरी के उत्तर की ओर एक छोटी नदी गुज़रती थी, जो बादशाह शाहजहां के ने शालीमार बाग की सिंचाई के लिए माधोपुर से निकलवाई थी। इस नहर पर शेर-ए-पंजाब ने गांव धनोए कलां से 4-5 किलोमीटर आगे लाहौर की ओर बसे गांव मक्खनपुर की रहने वाली कश्मीरी मुसलमान नर्तकी मोरां, जो बाद में रानी मोरां बनी, के निवेदन पर पुल बनवा दिया, जो ‘पुल मोरां’ के नाम से सम्बोधित होने लगा।वर्णनीय है कि सन् 1947 में हुए साम्प्रदायक दंगों और उसके बाद 22 अगस्त 1947 को पाकिस्तान की ओर से हुए कबाइली हमले में यह पुल गिर गया। सन् 1965 की हिंद-पाक जंग के बाद भारतीय फौज द्वारा नहर में मिट्टी डाल दी गई। आज उस नहर का बचा हुआ हिस्सा एक छोटी नाली का रूप ले चुका है। बताया जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह के शासन के समय उनके द्वारा बनवाई इस बारांदरी के इर्द-गिर्द पूंजीवादी हिंदुओं ने पूजा-पाठ के लिए शिवालय बना लिया, मुसलमानों ने मस्जिद और बाद में सिखों द्वारा गुरुद्वारा बना लिया गया। सरकार द्वारा समय रहते नव-निर्माण करवा कर उक्त शिवालय और शिवालय के तालाब, जिनका महाराजा या उनकी रानी मोरां के साथ सीधे तौर पर सम्बन्ध नहीं है, को करोड़ों रुपए खर्च करके बचा लिया गया, परन्तु महाराजा द्वारा स्वयं बनवाई गई बारांदरी की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। उक्त स्थान पर रोज़ाना सैकड़ों पर्यटक व स्थानीय नागरिक पहुंच रहे हैं, परन्तु जानकारी की कमी और बारांदरी के अस्तित्व का इतिहास से अज्ञात होने के कारण वह वहां स्थापित शिवालय से लगभग 30 कदम की दूरी पर बी.एस.एफ. की सुरक्षा चौकी के साथ लगते खेतों में मौजूद बारांदरी तक नहीं पहुंच पा रहे। यह बारांदरी खंडहर का रूप ले चुकी है और कभी भी गिर सकती है।