परिपक्व दृष्टिकोण की ज़रूरत


गत कुछ सप्ताहों से देश की सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट इसलिए सुर्खियों में था, क्योंकि उसके चार जजों ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ एक प्रैस कान्फ्रैंस करके दोष लगाया था कि वह अदालत के कार्य के समय पक्षपाती रवैया अपनाया करते हैं और मनमज़र्ी से कुछ महत्वपूर्ण केस कुछ खास जजों को देते हैं। भारत के न्यायिक इतिहास में यह शायद पहली बार हुआ था कि उच्च न्यायालय के जज खुलकर अपने ही मुख्य जज के विरुद्ध लोगों की अदालत में गए थे। इसने जहां मुख्य न्यायाधीश की प्रतिभा को कम किया था, वहीं कई तरह के विवादों को भी जन्म दिया था। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर यह भी दोष लगाए जाते हैं कि वह कुछ गुटों के प्रति नरम रवैया अपनाते हैं और अपने पहले ही सोचे हुए विचारों के अनुसार कार्य करने का ढंग अपनाते हैं। इसके बाद अलग-अलग स्तरों पर इस स्थिति के बारे में विचार-विमर्श भी होते रहे परन्तु भीतर से मुख्य न्यायाधीश की कार्यशैली के विरुद्ध धुआं निकलता रहा और इसका सेंक बाहर भी आता रहा।
इस संदर्भ में ही कांग्रेस के नेतृत्व में कुछ अन्य विपक्षी पार्टियों ने मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग लगाने के लिए मसौदा तैयार किया और राज्यसभा में महाभियोग पेश करने के लिए नोटिस दिया, परन्तु राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने इस नोटिस को खारिज़ कर दिया। इससे उच्च स्तर पर एक और बड़ा विवाद छिड़ गया। कांग्रेस ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में ले जाने की धमकी दी। चाहे वेंकैया नायडू की पृष्ठभूमि भारतीय जनता पार्टी से जुड़ी हुई है, मुख्य न्यायाधीश पर भारतीय जनता पार्टी के समर्थक होने का दोष भी लगता रहा है। कांग्रेस तथा विपक्षी पार्टियों ने उठे इस विवाद के आधार पर महाभियोग का नोटिस दिया था। परन्तु वेंकैया नायडू द्वारा महाभियोग को रद्द करने की बातों में बड़ा वज़न प्रतीत होता है। उन्होंने यह कहा है कि इस नोटिस में लगाये गये दोष कोई ठोस प्रमाणों पर आधारित नहीं हैं। इसलिए पूरी संसदीय प्रक्रिया को भी नहीं अपनाया गया। उन्होंने यह भी कहा कि यह नोटिस देते हुए 20 अप्रैल को प्रैस कान्फ्रैंस बुलाकर इसका मसौदा सार्वजनिक कर दिया गया था, जिससे सर्वोच्च न्यायालय जैसी संस्था की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है। यह नोटिस देने वाले अपनी किसी बात को विश्वास से नहीं कहते, अपितु  वह लिखते हैं कि मुख्य न्यायाधीश की कार्रवाइयों से ऐसा प्रभाव मिलता है या उनकी कार्रवाइयों से यह बात सम्भव हो सकती है। बिना ठोस आधार पर मुख्य न्यायाधीश जैसे पद संबंधी कार्रवाई करना न्यायिक प्रभाव के बिल्कुल अनुकूल नहीं है। इसके बारे में प्रसिद्ध कानून विशेषज्ञों ने भी दिए गए नोटिस को सही नहीं माना। इनमें सोली सोहराव जी और सुभाष कश्यप जैसे संवैधानिक विशेषज्ञ शामिल हैं। यहां तक कि लोकसभा के पूर्व स्पीकर सोमनाथ चैटर्जी ने चाहे वेंकैया नायडू के बारे में जल्दबाज़ी करने की बात तो कही है, परन्तु यह भी कहा है कि ऐसा नोटिस देने के लिए अधिक सतर्कता अपनानी चाहिए, जो नहीं अपनाई गई।
अब चाहे हड़बड़ाई कांग्रेस ने संविधान बचाओ का नारा देकर देश भर में रैलियां करने का ऐलान किया है और राहुल गांधी ने भाजपा नेताओं पर मनमानी करने और तानाशाह होने के दोष भी लगाये हैं, परन्तु कांग्रेस तथा उसकी सहयोगी पार्टियों के दस वर्ष के शासन के बारे में भी अनेक ही उदाहरण दिए जा सकते हैं, जो राहुल द्वारा भाजपा प्रशासन पर लगाये दोषों के साथ मिलते हैं। नि:संदेह अब वह समय आ चुका है, जब राजनीतिज्ञों को बेहद सावधानी और ज़िम्मेदारी से राजनीतिक क्षेत्र में विचरना होगा। दिन-प्रतिदिन गम्भीर चुनौतियों का सामना करने के लिए राजनीतिज्ञों को बेहद परिपक्व दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द