21वें राष्ट्रमंडल खेलों में युवा एथलीट चमके, लेकिन हॉकी ने देशवासियों की उम्मीदों पर पानी फेरा

गोल्डकोस्ट (आस्ट्रेलिया) में 4 से 15 अप्रैल तक करवाए गए 21वें राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के खिलाड़ियों का शानदार प्रदर्शन रहा और भारतीय खिलाड़ियों ने 26 स्वर्ण, 20 रजत और 20 कांस्य पदकों सहित कुल 66 पदक जीतकर पदक सूची में तीसरा स्थान हासिल किया। आस्ट्रेलिया ने 80 स्वर्ण, 59 रजत और 59 कांस्य और कुल 198 पदक जीत कर पहला और इंग्लैंड ने 45 स्वर्ण, 45 रजत, 46 कांस्य और कुल 136  पदक जीतकर दूसरा स्थान हासिल किया। 2014 में ग्लास्गो में करवाए गए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने 15 स्वर्ण पदकों सहित कुल 64 पदक जीते थे और 2010 के नई दिल्ली में करवाए गए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने 38 स्वर्ण, 27 रजत और 36 कांस्य और कुल 101 पदकों और 2002 में मानचेस्टर में करवाए गए खेलों में 30 स्वर्ण, 22 रजत और कुल 69 पदक जीते थे।
भारत ने एथलैटिक्स में 3, बैडमिंटन में 6, मुक्केबाज़ी में 9, पैरा स्पोर्ट्स पावरलिफ्ंिटग में 1, निशानेबाज़ी में 16, स्कवैश में 2, टेबल टैनिस में 8, वेटलिफ्ंिटग में 9, कुश्ती में 12 पदक हासिल किए और भारत ने इन खेलों में 218 खिलाड़ियों (103 महिला और 115 पुरुष खिलाड़ियों को मैदान में उतारा था और यह गौरवशाली उपलब्धि प्राप्त करके देश का झंडा बुलंद किया) राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में भारत ने अब तक 155 स्वर्ण, 155 रजत, 128 कांस्य और कुल 438 पदक जीते थे और इस बार 66 पदक जीत कर अब कुल संख्या 494 पदक हुई थी और इस बार भारत के खिलाड़ियों ने राष्ट्रमंडल खेलों में पदकों का आंकड़ा 504 करके देश की लाज रखी।
चैम्पियनों ने किया निराश और नौजवान निशानेबाज़ चमके : इस बार भारतीय निशानेबाज़ों ने 7 स्वर्ण, 4 रजत, 5 कांस्य सहित कुल 16 पदक जीते कर लाज रखी और इन खेलों में 16 वर्ष की मनू भाकर का 10 मीटर एयर पिस्टल का स्वर्ण पदक अहम था और यह उनका पहला राष्ट्रमंडल खेल था। नौजवान निशानेबाज़ 15 वर्षीय अनीस भानावाला ने 25 मीटर रैपिड फायर के स्वर्ण पदक जीतकर कमाल कर दिया, लेकिन अधिक तजुर्बेकार गगन नारंग और विश्व चैम्पियन मानवजीत संधू किसी भी पदक पर निशाना लगाने में असफल रहे।
भारतीय पहलवानों ने दिखाया दम-खम : कुश्ती में भारतीय पहलवानों के दमखम पर कोई शक नहीं था और पहलवानों ने 5 स्वर्ण, 3 रजत, 4 कांस्य और कुल 12 पदक जीते और पहलवान सुशील कुमार ने लगातार तीसरी बार और महिला पहलवान विनेश फोगाट ने लगातार दूसरी बार स्वर्ण पदक पर कब्ज़ा किया, लेकिन रियो ओलम्पिक में कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक को कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा।
वेटलिफ्टरों ने पहले दिन ही की भारत के लिए स्वर्ण पदकों की बरसात : वेटलिफ्टिंग में भारतीय भारोत्तोलक भी देश की उम्मीदों पर खरे उतरे। महिला वर्ग में संजीता चानू, सतीश शिवलिंगम ने स्वर्ण पदक और मीराबाई चानू और पूनम यादव पहली बार स्वर्ण परियां बनीं।
मैरीकॉम बनी बाक्ंिसग की दुनिया की आरयन लेडी : मुक्केबाज़ी में भारत ने 3 स्वर्ण, 3 रजत, 3 कांस्य और कुल 9 पदक जीते। 35 वर्ष की उम्र के करीब पहुंची एम.सी. मैरीकॉम ने कमाल करते हुए अपने विरोधियों को हरा कर राष्ट्रमंडल खेलों में आयरन लेडी बनने का गौरव हासिल किया। और उभरते मुक्केबाज़ सौरव सोलंकी और विकास कृष्णा ने भी भारत की लाज रखी लेकिन सरिता देवी ने निराश ज़रूर किया।  
दीपिका और जोशाना भारत की स्कवैश सुपरगल्ज़र् और टेबल टैनिस में मनिका बत्तरा स्टार बनकर उभरीं : इन खेलों में टेबल टैनिस खिलाड़ी मनिका बत्तरा स्टार खिलाड़ी बन कर उभरी और महिला सिंगल और टीम वर्ग में स्वर्ण पदक देश के नाम करने में अहम भूमिका निभाई और ऐंटनी एम्पलराज़ और तजुर्बेकार शर्त कमल ने अपने दम पर भारत की झोली में स्वर्ण पदक डाला।
जब फाइनल में भिड़ी साइना और सिंधू : राष्ट्रमंडल खेलों में साइना नेहवाल को उनके तजुर्बे ने बचाया और इस फाइनल में ओलम्पिक खेलों की रजत पदक विजेता पी.वी. सिंधू को हरा कर स्वर्ण पदक पर  कब्ज़ा किया। इन खेलों में सिंधू पूरी तरह से फिट नहीं थी और श्रीकांत के खेल में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन फिर भी 2 स्वर्ण, 3 रजत और 1 कांस्य पदक जीत कर भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों ने अहम उपलब्धि हासिल की।
एथलैटिक में नीरज चोपड़ा ने भारत की लाज रखी : जैवलिन थ्रो के मुकाबले में स्वर्ण पदक जीत कर नीरज चोपड़ा ने भारत की लाज रखी और महिलाओं के डिस्कस थ्रो के मुकाबले में सीमा पूनिया ने रजत और पंजाब की बेटी नवजीत कौर ढिल्लों ने कांस्य पदक जीत कर भारत की खुशी दोगुनी की।
स्कवैश में दीपिका और सौरव घोष ने किया निराश : स्कवैश में दीपिका पल्लीकर और सौरव घोष का शुरुआती दौर में बाहर होना बेहद निराशाजनक रहा, लेकिन दोनों रजत पदक महिला डबल्ज़ और मिक्स डब्लज़ में ज़रूर आए।
हॉकी ने भारत की नाव डुबोई : भारतीय महिला और पुरुषों की हॉकी टीम ने देश प्रेमियों के हिस्से निराशा डाली और दोनों टीमें बिना किसी पदक से देश लौट आईं। दोनों टीमों को अधिक आत्मविश्वास ले डूबा, गोल्ड कोस्ट जाने से पहले किए सारे वायदे खोखले साबित हुए और पैनलटी कार्नर को गोल में बदलने की रणनीति इस बार कमज़ोर सिद्ध हुई। सरदार सिंह को टीम से बाहर की नीति देश वासियों की समझ में नहीं आई। लेकिन फिर भी अगर देखा जाए तो 21वें राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय एथलीटों ने यह साबित कर दिया कि वेटलिफ्ंिटग कुश्ती, निशानेबाज़ी, बैडमिंटन, टेबल टैनिस और मुक्केबाज़ी में तैयारी अच्छी थी, लेकिन एथलैटिक और हॉकी में अभी भी हमें ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है, तो ही आने वाले एशियन खेलों में जकार्ता और टोक्यो ओलम्पिक खेलों में भारत के खिलाड़ियों की कारगुज़ारी और अच्छी बन सकेगी और अधिक पदक जीतकर भारत अपना अस्तित्व विश्व के खेल नक्शे पर कायम कर सकेगा।