लिएंडर पेस अनंत आश्चर्यों के महानायक

 पिछले कुछ वर्षों के दौरान मुझे स्थितियों के अनुसार अपने को ढालते हुए फोकस में रहना पड़ा। जिस तरह से मेरे 1996 अटलांटा ओलंपिक के पदक ने अन्य एथलीटों को प्रेरित किया, मैं उम्मीद करता हूं कि मेरा डेविस कप का रिकॉर्ड भारत के टेनिस खिलाड़ियों की अनेक पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।’ लिएंडर पेस ने ओलंपिक में 1992 में खेलना शुरू किया था और वह लगातार सात ओलंपिक में हिस्सा ले चुके हैं, जो कि भारत के लिए रिकॉर्ड है। वह स्वयं इस बात को स्वीकार करते हैं कि देश के लिए खेलते समय उनके खेल का स्तर खुद ब खुद बढ़ जाता है। ‘यही वजह है कि मैं अपनी एटीपी रैंकिंग से मिल रहे संकेत की तुलना में कहीं बेहतर खेल का प्रदर्शन कर पाता हूं,’ उन्होंने कहा लगभग तीन दशक तक अपने खेल के चरम पर बने रहना कोई आसान काम नहीं है। लिएंडर पेस का यह जबरदस्त कारनामा है और दिलचस्प यह है कि वह आज भी उसी जोश से खेलते हैं जैसा 25 साल पहले खेलते थे। यह जोश सिखाया नहीं जा सकता, यह तो जन्मजात ही होता है। इस जोश के साथ आगे बढ़ने की चाहत व भूख भी होनी चाहिए, जो लिएंडर पेस में भरपूर है। वह अपने 45 वें वर्ष में अपने लक्ष्यों का सटीक मूल्यांकन करते हैं, जो अविश्वसनीय क्षमता है। वह हमेशा अपने से कहते हैं ‘आगे क्या’? यही उनको आगे बढ़ाता रहता है। जिस दिन आप आगे की सोचना बंद कर देते हैं तो आपके करियर पर विराम लग जाता है। तीन दशक में खिलाड़ी बहुत बदल जाता है, अधिक नियंत्रित हो जाता है और अपनी भावनाओं को छुपा लेता है। लेकिन लिएंडर पेस के साथ उल्टा है। वह बहुत भावुक हैं, अपनी भावनाओं को बहने देते हैं, जो अन्य खिलाड़ियों को भी प्रभावित करती है।  पिछले तीन दशक में टेनिस बहुत बदल गया है। लिएंडर पेस में अब पहली सी फुर्र्ती नहीं है। लेकिन वह अब भी अच्छी टेनिस खेल रहे हैं। वह कोर्ट में सिर्फ गेंद को हिट नहीं कर रहे हैं बल्कि सोचते हैं कि विपक्षी खिलाड़ी की कमजोरी को कैसे भुनाया जा सकता है। यह सब आयु व अनुभव के साथ आता है, लेकिन लिएंडर पेस के लिए इसमें से अधिकतर जल्दी व स्वाभाविक रूप से आया। 43 युगल जीत आसान नहीं है। यह आश्चर्यजनक उपलब्धि है। यह अच्छी बात है कि अब यह रिकॉर्ड केवल लिएंडर पेस का है और वह किसी (निकोला पिएत्रंगेली, इटली) के साथ इसे शेयर नहीं कर रहे हैं।लिएंडर पेस की महानता का एक बड़ा कारण यह है कि वह कठिन स्थितियों से भी आसानी से बाहर आ जाते हैं। मसलन इस रिकॉर्ड मैच को ही लें- दो बार ऐसा हुआ कि भारत पराजय से मात्र दो प्वाइंट दूर था और एक बार सारा बोझ लिएंडर पेस पर था जब वह 5-6 पर 0-30 से सर्व कर रहे थे, लेकिन वह स्थिति को अपने पक्ष में करने में सफल रहे और इस तरह वह आश्चर्यों के महानायक के रूप में हमेशा-हमेशा के लिए स्थापित हो गये।