भाईचारक साझ के लिए आगे आएं

गत कुछ सप्ताहों से फगवाड़ा में जिस तरह का माहौल बना हुआ है, वह बेहद अफसोसनाक है। इससे भी बड़ी बात है कि आज जातिवाद के नाम पर इस तरह के बंटवारे किए जा रहे हैं, जो अलग-अलग समुदायों में घृणा पैदा कर रहे हैं। देश को आज़ाद हुए लगभग 70 वर्ष बीत चुके हैं। हमारे संविधान के निर्माताओं ने समानता वाला तथा सभी के लिए एक जैसे अवसर पैदा करने वाला संविधान दिया था। सदियों की ऐतिहासिक चाल में जो समुदाय पीछे रह गए थे, उनको आगे बढ़ाने की व्यवस्था भी संविधान में की गई थी। समय की अन्य बड़ी शख्सीयतों के साथ-साथ डा. बी.आर. अम्बेदकर ने भी ऐसे संविधान के संकल्प में अपना योगदान डाला था। इसलिए उनका समाज के सभी वर्गों द्वारा सम्मान किया जाता है। पंजाब में भी डा. अम्बेदकर के बहुत सारे शहरों में बुत्त लगे हुए हैं और उनके नाम पर कई चौक भी बने हुए हैं। नि:संदेह डा. अम्बेदकर उस समय की प्रसिद्ध शख्सीयतों में से एक थे परन्तु बात बेहद अफसोसनाक है कि आज ऐसी शख्सीयत के नाम पर जातिवाद की राजनीति शुरू हो चुकी है। अलग-अलग सम्प्रदायों द्वारा कई बार इसको एक मुद्दा बना लिया जाता है। डा. अम्बेदकर दलित समुदाय से संबंध रखते थे। उन्होंने दलितों की बेहतरी के लिए अपने जीवनकाल में काफी कार्य किया। परन्तु इसके साथ-साथ उनके मन में सभी वर्गों के लिए सम्मान भी था। उनका विश्वास जाति रहित समाज का निर्माण था, इसीलिए उन्होंने अपने जीवन के अंत में बुद्ध धर्म धारण किया था, क्योंकि महात्मा बुद्ध ने भी अपनी शिक्षाओं में मनुष्य के चरित्र की बेहतरी पर जोर दिया है।  इसके साथ ही उन्होंने हर किस्म के जाति-समुदाय को मानव समाज का एक हिस्सा तसव्वुर किया है, परन्तु यदि आज ऐसी शख्सीयतों के नाम पर लड़ाई-झगड़े शुरू हो जाते हैं तो इससे इस बात का अनुमान लगाना बेहद आसान है कि हम कितनी संकीर्ण मानसिकता का शिकार हो रहे हैं। नि:संदेह जातिवाद हमारे समाज को आज दीमक की तरह लगा हुआ है, जिसने समूचे देश को खोखला करके रख दिया है। यह बात भी बेहद अफसोसनाक  है कि आज भी बहुत सारे राजनीतिज्ञ इस भावना को इस कारण प्रोत्साहन दे रहे हैं कि क्योंकि हम वोट की राजनीति का शिकार हो रहे हैं। आज मीडिया में हर तरह के चुनावों के दौरान समाज का जातियों के वोटों के आधार पर विश्लेषण किया जाता है। इस तरह से दिन-प्रतिदिन जातिवाद को प्रोत्साहन मिलता है। फगवाड़ा में जो कुछ हुआ, उसमें किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं है, अपितु यह अलग-अलग समुदायों के बीच मौजूद मौकापरस्त लोगों द्वारा उनकी भावनाओं को उभार कर अपनी चौधर चमकाने की कोशिश कही जा सकती है। इसलिए सरकार और प्रशासन को भी बेहद सचेत होने की ज़रूरत है। प्रशासन का यह प्राथमिक दायित्व बनता है कि वह पैदा हुए हालात को शान्त करने के लिए मामले की मैरिट को प्राथमिकता दें, जो बात सही है उस पर पहरा दें। यदि सरकार किसी भी दबाव में आकर कोई कदम उठाती है तो उससे बड़ा नुक्सान हो सकता है, जिसकी ज़िम्मेदारी सरकार और प्रशासन की होगी। राजनीतिक नेताओं को भी जाति समुदाय की सोच से ऊपर उठकर समाज के अलग-अलग वर्गों को विश्वास में लेना चाहिए। हम फगवाड़ा वासियों को यह अपील करते हैं कि वह बिना किसी दबाव और बहकावे में आने की बजाय भाईचारक साझ की भावना से आगे आएं, ताकि पहले ही पड़े बंटवारे और न बढ़ें, जो अंत में समूचे समाज के लिए बेहद नुक्सानदायक साबित होंगे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द