भीम सेन सच्च्र और रजिन्द्र सच्च्र का ऐतिहासिक योगदान

रजिन्द्र सच्चर के निधन पर देश भर के समाचार-पत्रों ने खासतौर पर पंजाबी मीडिया ने उनकी बहुत स्तुति की है। रजिन्द्र सच्चर दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी रहे हैं। वह मानवीय मूल्यों और अधिकारों के लिए जाने जाते थे। श्री सच्चर जज बनने से पहले और सेवानिवृत्त होने के बाद देश तथा समाज की सेवा में लगे रहे थे। दिल्ली में 1984 की घटनाओं के बाद वह पीड़ित परिवारों की सेवा में बेहद सक्रिय रहे। स. एच.एस. फूलका एडवोकेट ने उनके द्वारा इस विषय पर की गई बेमिसाल सेवा का वर्णन किया है। श्री सच्चर के पिता श्री भीम सेन सच्चर पंजाब के मुख्यमंत्री थे। पंजाब के इतिहास में उन्होंने बहुत बड़ा योगदान डाला। लाहौर में उनकी हिम्मत से यूनियनिस्ट पार्टी, कांग्रेस पार्टी तथा अकाली दल की गठबंधन सरकार 1945 में बनी थी। स. बलदेव सिंह उनके साथ अकाली मंत्री थे और जब वह रक्षा मंत्री बनकर दिल्ली गये तो स. स्वर्ण सिंह अकाली मंत्री बने थे। मार्च, 1947 में जब खिज़र हेयात खान मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया तो उस समय मुस्लिम लीग का पंजाब में मंत्रिमंडल बनने वाला था। यदि उस समय यह बन जाता तो पंजाब के विभाजन के समय उनकी बात मानी जानी थी। दूसरा विभाजन के समय पंजाब की सरकार मुस्लिम लीग के पास होने से हिन्दू-सिखों का अधिक नुक्सान होना था। उस समय मास्टर तारा सिंह तथा भीम सेन सच्चर ने एकजुट होकर मंत्रिमंडल नहीं बनने दिया और राज्यपाल शासन लगवा दिया। भीम सेन सच्चर स्वतंत्रता आंदोलन के समय जेल में रहे थे। स्वतंत्रता के बाद पहले गोपी चंद भार्गव पंजाब के मुख्यमंत्री बने और फिर भीम सेन सच्चर। सच्चर श्री जपुजी साहिब का पाठ करते थे। वर्ष 1953 में जब अकाली मोर्चे के समय पंजाब पुलिस श्री हरिमंदिर साहिब अमृतसर की परिक्रमा में पहुंच गई तो इसके बारे में बहुत शोर मचा। परन्तु सच्चर साहिब ने कमाल कर दिया। वह स्वयं श्री हरिमंदर साहिब में पहुंचे और वहां इस घटना के बारे में माफी मांगी। कांग्रेस में एक गुट ने पंडित नेहरू के पास शिकायत की कि सच्चर कमज़ोर मुख्यमंत्री हैं और वह अकालियों के विरुद्ध लड़ाई नहीं लड़ सकते। सच्चर ने इस्तीफा दे दिया और इसके बाद उनको आंध्र प्रदेश के राज्यपाल लगाया गया। पंजाबी सूबे के आंदोलन के समय सच्चर ने पहली बार पंजाबी के हिन्दी और पंजाबी दो अलग-अलग क्षेत्र करने के सिद्धांत को मान्यता दी। लोग इसको पंजाबी सूबे की शुरुआत कहते हैं। उस बात को अब भी सच्चर फार्मूले के नाम से जाना जाता है। उन्होंने पंजाबी भाषी क्षेत्र में पंजाबी आवश्यक की और हिन्दी क्षेत्रों में भी पाचवीं और दसवीं कक्षा तक पंजाबी आवश्यक रखी। जब सच्चर मुख्यमंत्री थे, तो उनका बेटा रजिन्द्र सच्चर लोहियां ग्रुप में शामिल हो गया, सच्चर ने अपने बेटे को सरकारी निवास छोड़ने के लिए कह दिया ताकि उनका बेटा सरकारी निवास का प्रयोग न कर सके। रजिन्द्र सच्चर अलग घर में रहकर वकालते करते थे। वर्ष 1975 में जब आपात्काल लगा तो भीम सेन सच्चर और उनके दामाद कुलदीप नैय्यर जो उच्चकोटि के पत्रकार हैं, को दिल्ली जेल में भेज दिया गया। श्री रजिन्द्र सच्चर को डा. मनमोहन सिंह की ओर से 2003 में मुसलमानों संबंधी बने आयोग का चेयरमैन बनाया गया और जो ऐतिहासिक रिपोर्ट इन्होंने दी, उसका नाम सच्चर रिपोर्ट के तौर पर प्रसिद्ध है। श्री सच्चर की हिम्मत से दिल्ली में ‘सर्वेंट्स ऑफ पीपल सोसायटी’ की संस्था द्वारा बहुत बड़े संस्थान अमर कालोनी में चल रहे हैं। करनाल के निकट एक गांव में एक बहुत बड़ा खादी उद्योग चल रहा है। करनाल शहर में भीम सेन सच्चर अस्पताल है, जब दिल्ली में अन्ना हज़ारे की भूख हड़ताल चल रही थी तो रजिन्द्र सच्चर को पुलिस पकड़ कर ले गई थी।रजिन्द्र सच्चर के भोग पर सैकड़ों लोग आए, जिनमें जज, वकील तथा अन्य अधिकारी शामिल थे। गुरुवाणी का कीर्तन करवाया गया। सच्चर परिवार अपनी यादें और पदचिन्ह छोड़  गया है और लोग उनको हमेशा याद करेंगे।

—पूर्व सांसद