देश के विकास हाशिये से बाहर है आम आदमी

अपने चार साल के शासनकाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तिरेपन देशों की यात्रा की है। हर देश में प्रवासी भारतीयों को सम्बोधन करना उन्हें बहुत प्रिय है। हर देश में वह यही बातें दोहराते हैं कि जैसे उन्होंने अभी अपने इंग्लैंड दौरे में रायल हाल में लंदन में कहीं। भारत लौटने के बाद भी वह टेलीफोन अथवा एप्प के माध्यम से अपने विधायकों और सांसदों को संदेश देते रहते हैं कि उन्होंने अपनी इस शासनावधि में देश में सामाजिक और आर्थिक क्रांति का आगाज़ कर दिया है और उनके दल के इन जन-प्रतिनिधियों को अपने-अपने इलाके में जाकर इस प्रगति का प्रचार करना चाहिए। यह भी स्पष्ट कर दें कि अगले आम चुनाव के लिए भी अगर भारत का कायाकल्प चाहते हैं, तो इसके नेतृत्व के लिए मोदी से बेहतर कोई विकल्प देश के पास नहीं है। मोदी देश की राजनीतिक साख बढ़ाने के लिए उड़ी हमले के बाद भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक का हवाला देते हैं, और देश के आर्थिक संस्करण के लिए किये गए अपनी सरकार के नोटबंदी और जी.एस.टी. लागू करने के साहसपूर्ण फैसलों को आर्थिक प्रहार की संज्ञा देते हैं। चाहे विरोधी नेता उनके इन प्रहारों को निष्फल मानते हैं। उनका कहना है कि उड़ी के बाद की सर्जिकल स्ट्राइक ने अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं की। क्योंकि उसके बाद पाकिस्तानी  आतंकियों ने कम से कम दो सौ बार भारतीय सीमा का अतिक्रमण करके भारत के सैन्य और नागरिक ठिकानों पर हमले किए हैं। 
सन् 2016 में बुरहान बानी की मौत के बाद पाकिस्तान और हाफिज़ सईद प्रेरित पत्थरबाज़ों ने हिंसक ऊधम पैदा कर रखा है। भारतीय वार्ताकार दिनेशवर मिश्रा भी कश्मीर के साथ सरकार का कोई नया संवाद पैदा कर सकने में समर्थ नहीं हो सके। इसे मोदी की कूटनीतिक असफलता माना जा रहा है कि चार वर्ष के सख्त तेवरों के बाद अब भारत-पाक के सेनाध्यक्ष और कश्मीर की मुख्यमंत्री भी आपसी संवाद से जटिल समस्या को हल करने की बात कह रहे हैं। इस उखाड़-पछाड़ में कश्मीर के आम आदमी की ज़िंदगी यूं मटियामेट हो रही है कि एक तो वे आतंकवादी और सेना दोनों तरफ की गोलीबारी का शिकार बन रहा है, दूसरी ओर कश्मीर की जीवन रेखा उसका पर्यटन व्यवसाय और उस पर आधारित दस्तकारी व्यवसाय बर्बाद होकर रह गया है, इसके बाद इस असामान्य माहौल के कारण कश्मीरी नौजवानों के लिए बेकारी की भीषण समस्या पैदा हो गई है। यहां तक कि अगर सैकड़ों पुलिस वालों की भर्ती का नोटिस आता है, तो हज़ारों पढ़े-लिखे नौजवान जम्मू और श्रीनगर के भर्ती मैदान में इकट्ठे हो जाते हैं। जहां तक नोटबंदी और जी.एस.टी. लागू करने के साहसपूर्ण फैसलों के साथ देश के कायाकल्प के मोदी के दावे का संबंध है तो समय, काल और आम जन की परेशानी की वास्तविकता ने इस दावे को झुठला दिया है। आजकल मोदी सरकार का प्रचारतंत्र अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के इस दावे को उद्धृत कर रहा है कि भारत में नोटबंदी और जी.एस.टी. से पैदा होने वाली देश के आम आदमी की सब परेशानियां खत्म हो गई हैं। यह भी कहा जा रहा है कि देश की आर्थिक विकास दर अब गति पकड़ेगी, और सन 1918-19 में यह विकास दर 7.3 प्रतिशत से 7.7 प्रतिशत तक रह सकती है। सबसे पहले इस बढ़ती हुई आर्थिक विकास दर की मीमांसा कर लें। आई.एम.एफ. ने भी स्वीकार किया कि भारत की इस विकास दर की सबसे विषम बात यह है कि इस आर्थिक प्रगति के साथ देश में रोज़गार अवसरों की वृद्धि नहीं हो रही। बल्कि नौजवानों की बेकारी का प्रतिशत बढ़ गया है। असल में यह व्यावसायिक घरानों द्वारा प्रेरित पूंजी गहन विकास है। इसने देश में अमीर और गरीब की खाई को और बढ़ा दिया है। भारत के एक प्रतिशत अरबपति 73 प्रतिशत धन सम्पदा पर काबिज़ हो गये हैं और गरीबी रेखा से नीचे जीती हुई देश की एक तिहाई जनता को विकास की यह बयार स्पर्श भी नहीं कर पाई।  आंकड़ाशास्त्रियों का मत है कि देश के इस बेरोज़गारी संकट को दूर करने के लिए आर्थिक विकास दर को 7-8 प्रतिशत नहीं, बल्कि 18 प्रतिशत विकास दर से बढ़ना पड़ेगा, जो वर्तमान परिस्थितियों में असंभव लगता है। दूसरा तरीका आर्थिक नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन करके उसे समाजवादी बना पूंजीवादी ताकतों को धत्ता बता देने का है। लेकिन मनमोहन सिंह की उदारवादी नीतियों को विस्तृत करके पूंजीपति घरानों की कृपा से आर्थिक विकास के आंकड़ों के इन्द्रधनुष सजाने वाली भाजपा सरकार शायद यह कभी न कर पायेगी। इसलिए चाहे वह अपनी छवि को कितना ही निर्धन हितैषी या किसान केन्द्रित कह ले, आम आदमी तो उसकी विकास यात्रा के हाशिये से बाहर ही रहेगा।