नोटमंदी के साथ शुरू हुआ नया वित्तीय वर्ष

भारतीय जनता पार्टी के लिए नया वित्तीय वर्ष अशुभ साबित हो रहा है, क्योंकि इसकी शुरुआत नोटमंदी से हो रही है, जिसके कारण देश के अनेक हिस्सों में कैश की किल्ल्त शुरू हो गई है। मई में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं और इस चुनाव को जीतने के लिए भारतीय जनता पार्टी सभी तरीके अपना रही है। कर्नाटक का चुनाव आने वाले चुनावों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाला है और अगले एक साल के अंदर ही लोकसभा का चुनाव भी होना है।पिछले चार वर्षों से केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और अधिकांश मोर्चों पर इसके विफ ल होने के कारण इसके विरोधी लगातार प्रबल होते जा रहे हैं। इस बीच न तो देश में रोजगार पैदा करने वाला आर्थिक विकास हुआ है और न ही सामाजिक मोर्चे पर शांति और सौहार्द का वातावरण अच्छा है। इसके विपरीत सामाजिक माहौल लगातार खराब होता जा रहा है।खराब होते राजनीतिक माहौल के बीच एकाएक कैश की किल्लत ने अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। इससे पता चलता है कि बैंकिंग के मोर्चे पर सबकुछ ठीक नहीं है। डेढ़ साल पहले नरेन्द्र मोदी की सरकार ने नोटबंदी की थी, जिसके तहत 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को चलन से बाहर कर दिया था। उस समय कैश की जबर्दस्त किल्लत हो गई थी और देश की अर्थव्यवस्था को जबरदस्त नुकसान हुआ था। लाखों या करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए थे। लाखों धंधे बंद हो गए थे और बैंकों की कतारों में खड़े दर्जनों लोगों की मौत भी हो गई थी।नया वित्तीय साल शुरू होते ही कैश किल्लत की समस्या एक बार फि र शुरू हो गई है। डेढ़ साल पहले यह नोटबंदी की समस्या को लेकर उत्पन्न हुई थी, तो इस बार नोटमंदी समस्या लेकर सामने आ गई है। इसके कारण देश के अनेक भागों में एटीएम कैश रहित हो गए और हताश व परेशान लोग एक एटीएम केन्द्र से दूसरे एटीएम की ओर चक्कर लगाने को मजबूर हो गए। अनेक लोग तो रतजगा भी करने लग गए। नोटमंदी के इस दौर में नोटबंदी के वे भयानक दिन लोगों को याद आने लगे।सच तो यह है कि 2016 के 8 नवंबर को हुई नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा है, उस झटके से यह अभी तक नहीं उबर पाई है। उस समय एकाएक 86 फीसदी कैश को चलन से बाहर कर दिया गया था और उसकी जगह पर नये कैश को लाने की भरपूर तैयारी तक नहीं की गई थी। उसके कारण भारतीय रिजर्व बैंक की प्रतिष्ठा को भारी झटका लगा है और सबसे गंभीर बात तो यह है कि बंद किए गए पुराने नोटों को अभी तक भारतीय रिज़र्व बैंक गिन भी नहीं पाया है।दावा किया जा रहा था कि जितने कैश को नोटबंदी के कारण चलन से बाहर किया गया था, उसकी भरपाई हो चुकी है। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि जितना कैश 8 नवंबर 2016 को था, उससे ज्यादा कैश इस समय चलन में है। तो फिर सवाल उठता है कि इस समय कैश की किल्लत कहां से हो गई। ताजा कैश किल्लत के पहले देश की बैंकों की विश्वसनीयता को जबरदस्त झटका लगा है। बैंकों के लाखों करोड़ रुपये डूब चुके हैं और लाखों करोड़ों डूबने की कगार पर है। बैंकों से हजारों करोड़ रुपये का कर्ज लेकर लोग देश से बाहर भाग रहे हैं और जो भारत से नहीं भागे हैं, वे रुपये वापस करने में अपने आपको असमर्थ बता रहे हैं। यदि उन लोगों को जेल में भी भेज दिया जाये, तब भी बैंकों के स्वास्थ्य बेहतर नहीं हो सकते। बीमार बैंक और कैश की किल्लत भारतीय जनता पार्टी की सरकार से लोगों का मोह तोड़ रहे हैं और यह चुनाव जीतने में देश की सबसे बड़ी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रही है, जिसका तोड़ निकालना उसके लिए आसान नहीं होगा। (संवाद)