बंटवारे के समय बिछुड़े 250 परिवारों को मिला चुके फैसलाबाद के नासिर ढिल्लों

अमृतसर, 26 अप्रैल (सुरिन्द्र कोछड़) : पाकिस्तान की फैसलाबाद-सरगोदा रोड पर आबाद गांव चक्क नं. 6 मेहरगढ़ पंजवड़ के निवासी नासिर ढिल्लों (33 वर्ष) पुत्र चौधरी बशीर नम्बरदार देश के बंटवारे के समय बिछुड़े पाकिस्तान के विभिन्न शहरों में रहते 250 से अधिक परिवारों को उनके भारत में रहते पारिवारिक सदस्यों, रिश्तेदारों तथा दोस्तों-मित्रों के साथ मिला चुके हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने फैसलाबाद में रहते अपने साथी स. भूपिन्द्र सिंह लवली के साथ मिलकर पाकिस्तान के विभिन्न शहरों के गांवों-कस्बों में मौजूद हिन्दू सिख भाईचारे के 200 से अधिक बे-आबाद हो चुके धार्मिक स्थानों की 3000 से अधिक तस्वीरें भी सार्वजनिक की हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने 30 के लगभग ऐतिहासिक गुरुद्वारों की आधुनिक तकनीकों के साथ दस्तावेजी फिल्म भी तैयार की है। जिनके द्वारा वह पाकिस्तानी इवैकुई ट्रस्ट प्रोपर्टी बोर्ड, टूरिज्म तथा पुरातत्व विभाग सहित भारत तथा अन्य देशों के हिन्दू सिख संगठनों द्वारा इन स्थानों की सेवा संभाल तथा कार सेवा के लिए आगे आने की लगातार मांग करते आ रहे हैं। फैसलाबाद पुलिस में सब इंस्पैक्टर के तौर पर सेवाएं दे रहे नासिर ढिल्लों ने आज फैसलाबाद से फोन पर विशेष बातचीत करते बताया कि पुलिस की नौकरी के अतिरिक्त उसका प्रोपर्टी का अच्छा कारोबार भी चल रहा है। जिसमें स. भूपिन्द्र सिंह लवली भी उनका साझेदार है। उन्होंने बताया कि वह अपने प्रोपर्टी के साझेदार कारोबार में हर महीने पूरी ईमानदारी से दसवां हिस्सा निकालते हैं, जिसको गांवों में रहते गरीब विद्यार्थियों की स्कूली वर्दियों तथा पुस्तकों-कापियों पर खर्च करने के अतिरिक्त मंदिरों-गुरुद्वारों तथा अन्य विरासती यादगारों के प्रचार-प्रसार पर खर्च किया जाता है। नासिर ढिल्लों को इस बात पर फख्र है कि सेवा के इस कार्य में वह या उनके साथियों ने कभी किसी हिन्दू, सिख संस्था या व्यक्ति से एक रुपया भी दान के रूप में नहीं लिया तथा यह सब कार्य अपने बलबूते पर कर रहे हैं।
देश की बांट के समय बिछुड़े परिवारों को मिलाने के लिए शुरू की गई मुहिम बारे जानकारी देते उन्होंने बताया कि उनके बुजुर्ग भारतीय पंजाब के मौजूदा ज़िला तरनतारन के गांव पंजवड़ के रहने वाले हैं तथा अंग्रेज़ी शासन के समय 1890 में उनमें से कुछ परिवार फैसलाबाद आकर बस गए। वहां उन्होंने अपनी जद्दी गांव पंजवड़ के नाम पर पांच अन्य गांव आबाद कर लिए। उन्होंने दादा मीयां उम्र हयात नम्बरदार वर्ष 1970 तक कई बार भारत में अपने गांव पंजवड़ मित्रों साथियों को मिलने जाते रहे। नासिर अनुसार उनके दादा के हिन्दू, सिखों के साथ रहे मधुर रिश्तों के किस्से कहानियों ने उनको बहुत प्रभावित किया। जिसके चलते उन्होंने भारत पाकिस्तान में बन रही नफरतों, दूरियों, झगड़े तथा हथियारों की दौड़ को खत्म करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए। जिसके चलते उन्होंने सोशल मीडिया की मार्फत वर्ष 1947 में बंटवारे के समय बिछुड़े परिवारों की आपबीती वीडियो द्वारा दर्शकों के सामने पेश करने का सिलसिला शुरू किया। जिसके परिणामस्वरूप वह अभी तक 250 से अधिक बिछुड़े परिवारों का आपस में मिलाप करवा चुके हैं।