एकता का महत्त्व

एक पेड़ पर चिड़ा एवं चिड़ी रहते थे। उनका एक सुंदर सा घोंसला था। उसमें चिड़ी ने एक दिन अंडे दिए। वह बहुत प्यार से रहते थे। उसी पेड़ पर एक दुष्ट गिलहरी भी रहती थी, जो उनसे बहुत जलती थी।
एक दिन गिलहरी की ईर्ष्या जाग उठी। उसने घोंसले सहित अंडे नीचे गिरा देने का विचार किया। वह जल्दी-जल्दी अपने तीखे दांतों से घोंसले के एक-एक तिनके को काटने लगी। तभी अचानक एक कंटीला तिनका गिलहरी की आंख में चुभ गया। उसकी आंख से खून निकलने लगा। वह चीखते-कराहते भाग गई।
थोड़ी देर बाद चिड़ी दाना चुग कर वापस आयी तो उसने देखा कि उसके अंडे नीचे गिरे हुए हैं एवं घोंसला भी उजड़ गया है। वह रोने लगी। उसे पता था कि एक दिन ईर्ष्यालु गिलहरी जरूर परेशान करेगी। वह वहीं बैठकर रोने लगी। थोड़ी देर बाद चिड़ा भी आ गया। चिड़ी ने उससे रोते हुए कहा-हमारे अंडे उस दुष्ट गिलहरी ने नीचे गिरा दिये हैं एवं घोंसला भी काट डाला। उसने हमारे बच्चे भी छीन लिए। आखिर हमने उसका क्या बिगाड़ा था।
चिड़ा-चिड़ी को शांत कराते हुए बोला-संकट के समय हिम्मत एवं धैर्य से काम लिया जाता है। तुम चुप हो जाओ। जो जैसा करता है वैसा फल पाता है जो हुआ सो हुआ। चलो हम तुम नये सिरे से घोंसला बनायें। तभी उन्होंने देखा नीचे वही गिलहरी कराह रही है। उसकी एक आंख में तिनका चुभा हुआ है। चिड़ा गिलहरी के पास पहुंचा और बोला-आखिर हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। तुमने हमारे अंडे नष्ट कर दिए, घोंसला भी तोड़ दिया, अब उसका परिणाम भुगत रही हो। चिड़ी बोली-अच्छा है इसे तड़पने दो। इसने हमारा घर उजाड़ा है। हां, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैं तुम्हारे सुख से जलती थी। मुझे माफ कर दो। मुझको बचा लो और मेरे आंख में फंसा हुआ तिनका निकाल दो, गिलहरी रो रही थी।
चिड़ा बोला-ठीक है वादा करो फिर कभी किसी की खुशी देखकर ईर्ष्या नहीं करोगी।
मैं वादा करती हूं अब मैं किसी से ईर्ष्या नहीं करूंगी, लेकिन जल्दी से तिनका तो निकालो। मेरी आंखों में बहुत दर्द हो रहा है। चिड़ा ने फौरन अपनी चोंच से उसकी आंख में चुभा तिनका निकाल दिया। गिलहरी को बहुत आराम मिला। अब वह चिड़ा-चिड़ी की अच्छी दोस्त बन गई और बोली-कभी कोई मुसीबत आए तो मुझको आवाज देना। मैं अपनी जान पर खेलकर भी तुम्हारी मदद करूंगी।
कुछ दिन बाद चिड़ा-चिड़ी ने फिर एक सुंदर घोंसला बना लिया। उसमें अंडे दिए। एक दिन उन अंडों से सुंदर प्यारे-प्यारे बच्चे निकल आए। चिड़ा-चिड़ी उनके लिए जब दाने लेने दूर चले जाते तो गिलहरी उनकी रक्षा करती।
एक दिन की बात है, चिड़ा-चिड़ी अपने बच्चों के लिए दाना लाने दूर निकल गए। गिलहरी बच्चों के पास थी। अचानक बच्चे चीखने लगे। एक विषैला सांप पेड़ पर चढ़ा जा रहा था। बच्चे डरकर रोने लगे। वे अभी उड़ भी नहीं सकते थे। सांप बच्चों को खाने के लिए उनकी तरफ बढ़ा चला आ रहा है। गिलहरी पलभर के लिए घबरा उठी। उसने सोचा-मेरे कष्ट में चिड़ा-चिड़ी ने साथ दिया था। मुझे उनके इस उपकार का बदला चुकाना चाहिए। वह चीखने लगी-बचाओ, बचाओ, परंतु मदद के लिए कोई नहीं आया। वह किसी भी कीमत पर बच्चों की रक्षा करना चाहती थी। आखिर बहुत विश्वास के साथ चिड़ा-चिड़ी अपने बच्चे की देखभाल एवं रक्षा के लिए उसके पास छोड़ गए थे।
अचानक गिलहरी के दिमाग में एक बात आई। वह पेड़ पर ही रहने वाली लाल चींटियों के पास गई एवं सारी बात बताई। लाल चींटियों का झुण्ड अचानक सांप पर लिपट गया। सांप फुंफकारता हुआ वापस लौट गया। गिलहरी ने राहत की सांस ली। गिलहरी ने बच्चों को देखा। वे डरे-सहमे से अपने घोंसले में दुबके हुए थे। तभी चिड़ा-चिड़ी आ गए। गिलहरी ने सारी बात बताई। उसने कहा-दुश्मन, कमजोर पर हमला करते हैं। हमको एक होना पड़ेगा एवं अपनी शक्ति बढ़ानी होगी।
चिड़ा-चिड़ी एवं गिलहरी ने श्यामा कोयल, हरियल तोता, रजत कबूतर, चतुर मैना, महादेव नीलकंठ को अपना साथी बनाया एवं सभी को उसी पेड़ पर रहने के लिए कहा। सब एक पेड़ पर रहने लगे। रजत कबूतर तो दिन भर बच्चों के साथ खेलता रहता। अब सब एक थे। उनकी एकता को देखकर सांप भी घबरा गया एवं एक दिन उस पेड़ के नीचे अपने बिल से निकलकर कहीं और चला गया।


-सतीश उपाध्याय