भारतीय मार्क्सवादी पार्टी का महत्वपूर्ण फैसला

मार्क्सवादी पार्टी के महासचिव सीता राम येचुरी पार्टी के बहुसंख्यक दृष्टिकोण से अलग राय रखने के कारण समाचारों में रहे हैं। उनका विचार है कि भारत की एकता, अखण्डता और संविधान की रक्षा करने के लिए विरोधी राजनीतिक पार्टियों को एकजुट होकर लड़ने की ज़रूरत है। देश की वर्तमान सरकार ने बहुसंख्यक सम्प्रदाय की भावनाओं को इतना झुका दिया है कि देश का सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक ढांचा डांवाडोल हो चुका है। इसको सही पटरी पर लाने के लिए कांग्रेस पार्टी के साथ किसी किस्म का सकारात्मक समझौता किए बिना महत्वपूर्ण समझदारी बनाई रखनी सम्भव नहीं। पार्टी के लिए यह दृष्टिकोण अपनाना बहुत कठिन था, परन्तु येचुरी की दलीलबाज़ी को रद्द करना भी आसान नहीं। परिणामस्वरूप हैदराबाद में हुई पार्टी की 22वीं कांग्रेस में येचुरी का दृष्टिकोण भी स्वीकार किया गया है। उनको दूसरी बार पार्टी का महासचिव चुन लिया गया है। उनके पास यह ज़िम्मेदारी तीन वर्ष रहनी है। यह बात देखने वाली है कि कांग्रेस पार्टी के नये अध्यक्ष राहुल गांधी कैसा समर्थन भरते हैं। यह बात स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी अपने बलबूते पर मौजूदा राजनीति का मुकाबला नहीं कर सकती, इसको सोनिया गांधी वाला वही दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा, जो कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष होते हुए सोनिया गांधी ने उस समय के नेता हरकिशन सिंह सुरजीत के साथ मिलकर अपनाया था। यदि येचुरी सुरजीत के पदचिन्हों पर चल रहे हैं, तो राहुल गांधी को भी सोनिया गांधी वाला पैंतरा अपनाकर ही सफलता मिल सकेगी। जो न बलख न बुखारे खाओ छज्जू के चौबारे मैंने कसौली हिल्स के घेरे में धर्मपुर सबाठू मार्ग से डेढ़ किलोमीटर एक तरफ चील के पेड़ों में एक कुटिया बनाई है, जहां 29 अप्रैल (आज) के दिन सुबह से सायं तक पछेती बैसाखी मनाने का प्रबंध हो चुका है। संधू कॉटेज नाम की यह कुटिया जाने-पहचाने पाइनलैंड रिज़ोर्ट के मुख्य द्वार पर स्थित है, जहां दिन भर के खाने-पीने का योग्य प्रबंध है। कुटिया में बुद्धिजीवियों के लिए चुनिंदा पुस्तकें तथा मिज़र्ा-गालिब का दीवान पहुंच चुका है। यदि बारिश न हो तो ठण्डी हवा में धूप सेंक लें। दर्शन दें और खुशियां प्रदान करें। रिजोर्ट का किनारा है, छज्जू का चौबारा है। बाबा बुद्ध सिंह ढाहां के अंग-संग 1986 की बात है। मेरे पंजाबी ट्रिब्यून वाले कार्यालय में एक छोटे कद का केसधारी सिंह अपना नाम बताकर मेरे पास आ बैठा। दाढ़ी खुली, जिस्म फुर्तीला। उन्होंने अपनी जान-पहचान कनाडा निवासी ज्ञानी केसर सिंह का हवाला देकर करवाई। वह ढाहां कलेरां में जन्में थे, बुद्ध सिंह। वह अपने गांव में गुरुनानक मिशन अस्पताल की स्थापना कर चुके थे और मेरी सेवानिवृत्त पत्नी सुरजीत कौर को अस्पताल की निर्देशक बनाना चाहते थे। दोआबा के एक गांव में मैडीकल अस्पताल का सपना बड़ा था, परन्तु उन्होंने साहित्य के प्रिंसीपल हरभजन सिंह का प्रमाण देकर मुझे कायम कर लिया। उन्होंने यह भी बताया कि वह अपने सपने को साकार करने के लिए कनाडा छोड़ आए हैं। मैंने सुरजीत से टेलीफोन पर सहमति लेकर हां कर दी। वह हाज़िर होने के लिए एक सप्ताह का समय देकर चले गए। सुरजीत बताती हैं कि वह निकटतम गांवों के खुशी-गमी के भोगों में शामिल होकर हर जगह से बनती राशि अस्पताल के निर्माण के लिए दान के तौर पर ले आते। वह इमारतों के निर्माण, नर्सिंग कालेज की स्थापना तथा ट्रामा सैंटर की योजनाबंदी करते समय देरी नहीं लगाते। चार वर्षों में लोकप्रिय अस्पताल ग्रामीण मरीज़ों से भर गया और फिर एक दिन किसी कारण उनको अपनी इतनी बड़ी उपलब्धि को छोड़ना पड़ा, परन्तु उन्होंने हौसला नहीं हारा। बुद्ध सिंह ने चार-छ: महीने में गढ़शंकर से आनंदपुर साहिब वाली सड़क पर पड़ते कुकड़माजरा गांव के निवासियों के साथ बातचीत करके पहले की तरह ही सड़क के किनारे ज़मीन लेकर गुरु नानक इंटरनैशनल चैरीटेबल ट्रस्ट अधीन नया अस्पताल स्थापित करने की योजना बना ली और इसके निर्माण में जुट गए। यह अस्पताल भी पहले की तरह ही चल रहा है। बड़ी बात यह कि कण्डी के पिछड़े हुए क्षेत्र में इसकी स्थापना और भी बड़े अर्थ रखती है। कण्डी और दोआबा निवासियों के लिए उनका चले जाना ऐसा घाटा है, जिसको पूरा करना असम्भव है। यह अच्छी बात है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में दिन-रात एक करके इस सफलता के रास्ते पर चलाया और उपयुक्त उत्तराधिकारी तैयार किए। 93 वर्ष का भरपूर जीवन जीकर दो बड़ी संस्थाएं समाज को देने वाली इस हस्ती को ज़िंदाबाद कहने को मन करता है। मैं और सुरजीत पिछले 30 वर्षों से उस बड़े आदमी के उधम का गुणगान करके थोड़ी-बहुत सेवा का दान भी करते रहे हैं। हम खुश हैं कि नये अस्पताल में उनके सहयोगी ने उनको उनके अंतिम दम तक संभाला और सेवा की। मेरा निश्चय है कि यह लोग उनके जाने से भी मन लगाकर अस्पताल के स्तम्भ बने रहेंगे और बाबा बुद्ध सिंह की आत्मा को चढ़ती कला प्रदान करेंगे।

अंतिका
(मौलाना हाली)
फरिश्ते से बेहतर है, इन्सान बनना
मगर इसमें पड़ती है मेहनत ज्यादा
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