पेड़ रहेंगे तो हम रहेंगे

हरियाली खुदा की सबसे बड़ी नेमतों में से एक है। इसी से जीवन में आशा, उल्लास, उमंग और ताजगी जैसे भाव जागते हैं। हरे-भरे पेड़ों की एक-एक पत्ती, फल-फूल जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण देते हैं। फल-फूल पर न जाने कितने गीत लिखे गए तथा ढेर सारा साहित्य प्रकाश में आया । हमारे शास्त्रों में भी लिखा गया है कि एक पेड़ लगाना सौ गायों का दान देने के समान है। पद्म-पुराण में जिक्र है कि जलाशय के निकट पीपल का पेड़ लगाने से व्यक्ति को सैकड़ों यज्ञों के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।  जब से मानव सभ्यता की शुरूआत हुई तब से मौजूद पेडों की संख्या में अब तक 46 फीसदी की कमी आ चुकी है । दुनिया भर में हर साल 10 अरब पेड़ काटे जा रहे हैं जबकि हर साल सिर्फ  पाँच अरब पेड़ ही लगाए जा रहे हैं। चिंता की बात यह भी है कि हर 2 सैकेंड में एक फुटबाल के मैदान जितना जंगल काटा जा रहा है । एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में हर साल 1 करोड़ हैक्टेयर इलाके के वन काटे जा रहे हैं । अकेले भारत में 10 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में फैले जंगल कट रहे हैं। यदि दुनिया में जंगलों के खात्मे की गति यही रही तो 2100 तक समूची दुनिया से जंगलों का पूरी तरह सफाया हो जाएगा ।
प्रदूषण की मार झेलते शहरो के लिए भी पेड़ों की कमी जिम्मेदार है । शहरों के लोग कई बीमारियों से पीड़ित हैं । विशेषकर अस्थमा जैसी बीमारी से लोग ज्यादा पीड़ित हैं । नेचर जर्नल की रिपोर्ट की मानें तो दुनियाभर में एक व्यक्ति के लिए 422 पेड़ मौजूद हैं । पेड़ों की संख्या के मामले में रूस सबसे आगे है । रूस में करीब 641 अरब पेड़ हैं। कनाडा दूसरे स्थान पर है जहाँ पेड़ों की संख्या 318 अरब है । तीसरे स्थान पर ब्राजील है जहाँ 301 अरब पेड़ हैं तथा अमरीका में 228 अरब पेड़ हैं । हैरानी की बात यह है कि भारत में सिर्फ  35 अरब पेड़ हैं यानी एक व्यक्ति के लिए सिर्फ  28 पेड़ । कहा जाता है कि पेड़ों की कतार धूल मिट्टी को 75 फीसदी तक कम कर देती है और 50 फीसदी तक शोर को कम करती है । जो इलाका पेड़ों से घिरा होता है वह दूसरे इलाकों की तुलना में 9 डिग्री ठंडा रहता है तथा वहाँ का एक पेड़ इतनी ठंडक पैदा करता है जितना एक ए.सी. 10 कमरों में 20 घंटों तक चलने पर करता है ।कम होते पेड़ों की वजह से कई दुष्प्रभाव होते हैं जिसमें प्राकृतिक बाधाएँ भी शामिल हैं । वनों की कटाई की वजह से भूमि का क्षरण होता है क्योंकि वृक्ष पहाड़ियों की सतह को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । वनों के विनाश के कारण वन्यजीव खत्म हो रहे हैं । पेड़ों की कई प्रजातियाँ लुप्त होने की कगार पर हैं तथा कुछ तो लुप्त हो गई हैं । वनों की कटाई का प्राकृतिक जलवायु पर सीधा प्रभाव पड़ता है जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है । बारिश भी अनियमित हो जाती है । इन सबके कारण ‘ग्लोबल वार्मिंग’’ में इजाफा होता है । रेगिस्तान फैल रहा है । नदियों का पानी उथला कम, गहरा तथा प्रदूषित हो रहा है क्योंकि उनके किनारों और पहाड़ों पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है । जंगल के लिए आदिवासियों का अस्तित्व आवश्यक है । जंगल का उपयोग कैसे करना है आदिवासियों को इसकी पूरी माहिती रहती है क्योंकि वन संरक्षण के प्रति उनके मन में गहरा सम्मान होता है । वृक्षारोपण की कमी के कारण इस अनमोल प्राकृतिक संपत्ति का तेजी से क्षरण हो रहा है जो जीवन और पर्यावरण के संतुलन को खराब कर रहा है । जंगल की कटाई के कारण भारत में जानवर गाँवों में शरण ले रहे हैं। जंगली जानवरों का रहवासी इलाकों में घुसना आम बात हो गई है जो मानव जीवन के लिए खतरा है ।चीन में पर्यावरण को बढ़ावा देने के लिए एक विशाल क्यूआर कोड बनाया गया है जिसमें करीब एक लाख हरे पेड़ों को शामिल किया गया है । शंघाई एक्सपैट की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें जिन जूनियर पेड़ों का उपयोग किया गया है वे चीनी पेड़ हैं । हेबई नाम के जिस गाँव में इसे बनाया गया है उसे सर्वाधिक सुंदर गाँव का दर्जा मिल चुका है । यह कोड 227 मीटर लंबे मैदान में फैला है । इसी तरह जापान में लोग जंगलों में ‘फारेस्ट बाथिंग’ करते हैं । पेड़-पौधों के बीच मेडिटेशन करने की परम्परा को अमल में लाकर जापानी लोग अधिक खुश और लंबी आयु को जीने वाले होते हैं । इसी तरह फ्रांस के शोधकर्ता मिंग क्यों का कहना है कि प्रकृति के सानिध्य में व्यक्ति अधिक उदार और सामाजिक हो जाता है । इसके अलावा जो लोग बगीचों में हरे-भरे पेड़ों के बीच सैर करते हैं वे दूसरों की तुलना में ज्यादा दयालु तथा मिलनसार होते हैं । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जोधपुर के खेजडली गाँव में 230 वर्ष पूर्व 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान तक दे दी थी । तब से लेकर आज तक उस गाँव में बलिदान दिवस मनाया जाता है । इसके तहत वहाँ मेला लगता है जिसमें विश्नोई समाज के हजारों श्रद्धालु शिरकत करते हैं तथा बलिदानियों को श्रद्धाँजलि देते हैं।वैसे भारत में कुछ साल पहले ‘चिपको आंदोलन’ काफी चर्चित हुआ था जिसके अगुवा सुंदरलाल बहुगुणा थे । दरअसल, यह आंदोलन इसलिए प्रारम्भ किया गया था कि भारत के उत्तरी क्षेत्र में सरकार ने पेड़ों की अंधाधुंध कटाई प्रारम्भ कर दी थी। सुंदरलाल बहुगुणा ने सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों को एकत्र किया और इनमें से एक ग्रामीण एक पेड़ से चिपक गया ताकि उसे काटा न जा सके । इस आंदोलन को काफी सफलता मिली थी। एक पेड़ ऐसा भी है जिसके आस-पास 24 घंटे चार गार्ड तैनात रहते हैं । इस पेड़ के लिए एक टेंकर पानी का इंतजाम किया जाता है। पेड़ की रक्षा के लिए चारों ओर 15 फीट ऊँची जाली लगी हुई है। भोपाल और विदिशा के बीच सलामतपुर नाम की पहाड़ी पर इस वीवीआईपी पेड़ के रख-रखाव पर साल में 15 लाख रुपए खर्च होते हैं ।