उत्तर और दक्षिण कोरिया की दोस्ती के मायने 

दशकों पुरानी दुश्मनी को नजरअंदाज़ कर उत्तर और दक्षिण कोरिया के शासकों का सौहार्दपूर्ण मिलन एक ऐतिहासिक घटना है। दोनों देशों के संधि-स्थल, यानी असैन्य क्षेत्र में उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेई इन के बीच यह मुलाकात 65 साल बाद हुई है। 1950 से 1953 के बीच चले भीषण कोरियाई युद्ध के बाद उन ने दक्षिण कोरियाई धरती पर पहली बार कदम रखा है। इस युद्ध का ही परिणाम था कि ये दोनों देश विभाजित होकर भारत-पाकिस्तान की तरह दो अलग-अलग देशों में बंट गए थे। हालांकि 11 साल पहले भी इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात हो चुकी है। इस मुलाकात पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई थीं। दरअसल इनके बीच शांति समझौता होता है तो इस क्षेत्र में शांति की स्थापना की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण पहल है। इस मिलन को परमाणु निरस्त्रीकरण और कोरियाई प्रायद्वीप में स्थाई रूप से शांति बहाली के नजरिए से भी देखा जा रहा है। मून के प्रवक्ता ने कहा भी है कि दोनों नेताओं के बीच परमाणु निरस्त्रीकरण पर बात भी हुई है। उन ने अगले कुछ दिनों में मौका मिलने पर सिओल जाने की जो मंशा भी जताई है, इसमें शायद परमाणु निरस्त्रीकरण का कोई हल निकले। पिछले दिनों अमरीका और उसके मित्र देश ब्रिटेन व फ्रांस ने  कथित रूप से मौजूद रासायनिक हथियारों के बहाने सीरिया पर मिसाइल हमले किए थे, इस हमले की प्रतिक्रिया स्वरूप रूस के सरकारी टीवी समाचार चैनल ने अमरीका पर हमला बोलने की धमकी दी थी। चीन और ईरान ने भी इस हमले की कठोर निंदा करते हुए रूस के पक्ष का समर्थन किया था। उत्तर कोरिया पिछले कुछ सालों से लगातार अमरीका पर परमाणु हमला करने की हुंकार भरने में लगा है। इस नाते उसने अमरीका और जापान तक मार करने वाली मिसाइलों के साथ हाइड्रोजन बम भी तैयार किए हुए हैं। अलबत्ता यह अच्छी खबर है कि अब किम जोंग दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति से मिलने के बाद जल्द ही अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी मिलने वाले हैं। जून में यह मुलाकात प्रस्तावित है। यदि इस द्विपक्षीय वार्ता में उत्तर व दक्षिण कोरिया और अमरीका के बीच कोई स्थाई समझौते होते हैं और विवादित मसलों का हल परस्पर सहमति से निकलता है तो यह दुनिया के लिए राहत की बात होगी। इस शांति बहाली का सबसे ज्यादा फायदा कोरियाई प्रायद्वीप की अवाम को होगा। उत्तर कोरिया पर अमरीकी दबाव के चलते जो आर्थिक प्रतिबंध लगे हुए हैं, उनकी बहाली हो जाएगी और उत्तर कोरिया विकास की मुख्यधारा से जुड़ जाएगा। यहां प्रतिबंधों के चलते आम आदमी बेहद खस्ता हालात के दौर से गुजर रहा है। हालांकि यह सब इतना आसान नहीं है, जितना अनुभव किया जा रहा है। किम जोंग ने भले ही अपने सभी परमाणु कार्यक्रम एक झटके में बंद करने का दावा कर दिया है, परंतु वह अपने इस वादे पर एकाएक अमल शुरू कर देगा ऐसा मुमकिन नहीं है। दरअसल अमरीका उत्तर कोरिया से संपूर्ण निशस्त्रीकरण चाहता है। इसका अर्थ है कि किम जोंग अपने अब तक बनाए हुए सभी हथियार समुद्र में अमरीकी प्रतिनिधियों को दिखाकर नष्ट कर दे। साथ ही, देश में जितने भी परमाणु संयंत्र हैं, उनमें रेत भरवा दे। इसी नाते वाइट हाउस ने स्पष्ट कहा है कि जब तक उत्तर कोरिया पूर्ण निशस्त्रीकरण नहीं करता है तब तक प्रतिबंध जारी रहेंगे। किम जोंग ऐसा करेंगे, इस नाते ट्रंप आशंकित हैं। इसीलिए ट्रंप ने कहा भी है कि किम जोंग यदि परमाणु कार्यक्रम समाप्त करने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं करते हैं तो उनसे किम की मुलाकात के कोई खास मायने नहीं रह जाएंगे? दरअसल किम जोंग चाहें भी तो चीन और पाकिस्तान यह कतई नहीं चाहेंगे कि उनका एक भरोसे वाला मित्र निहत्था हो जाए। उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीक देने का काम जहां पाकिस्तान ने किया, वहीं चीन उसका इस्तेमाल दक्षिण चीन सागर में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए कर रहा है। हालांकि वह चीन ही है, जिसने किम जोंग को उत्तर कोरिया से संबंध सुधारने के लिए प्रेरित किया और आगे ट्रंप से वार्तालाप करने का रास्ता निकाला। इससे तय होता है कि किम जोंग चीन द्वारा रचित कूटनीति के तहत ही अपनी आगे की रणनीति को अमल में लाएंगे। अमरीका और उत्तर कोरिया के बीच चर्चा इसलिए होने जा रही है, क्योंकि अमरीका और चीन के बीच व्यापार युद्ध एक तरह से शुरू हो गया है। इसीलिए चीन ने डोकलाम के मुद्दे को पीछे छोड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित करके रिश्तों में जो खटाई बढ़ रही थी, उसे दूर करने का काम किया है। हालांकि चीन की भारत के प्रति यह उदारता कितने दिन बनी रहती है, इसमें अभी कई शंकाएं हैं। चीन ने फि लहाल जो उदारता अमरीका, भारत, उत्तर और दक्षिण कोरिया देशों को लेकर दिखाई है, इसमें भविष्य के क्या कूटनीतिक रहस्य अंतर्निहित हैं, इनका खुलासा आने वाले समय में होगा।     दुनिया में फि लहाल 9 परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। ये हैं, अमरीका, रूस, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, इज़राइल और उत्तर कोरिया। इनमें से अमरीका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन के पास हाइड्रोजन बम भी हैं। इस पांत में हाइड्रोजन बम के परीक्षण के बाद उत्तर कोरिया भी शामिल हो गया है। इन देशों के पास परमाणु बमों का इतना बड़ा भंडार है कि ये दुनिया को कई बार नष्ट कर सकते हैं। हालांकि ये पांचों देश परमाणु अप्रसार संधि में शामिल हैं। इस संधि का मुख्य उद्देश्य परमाणु हथियार व इसके निर्माण की तकनीक को प्रतिबंधित बनाए रखना है। लेकिन ये देश इस मकसद पूर्ति में सफ ल नहीं रहे। पाकिस्तान ने ही तस्करी के जरिए उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार निर्माण तकनीक हस्तांतरित की और वह आज परमाणु एवं हाइड्रोजन शक्ति सम्पन्न नया देश बन गया है। उसने पहला परमाणु परीक्षण 2006, दूसरा 2009, तीसरा 2013, चौथा 2014, पांचवां 2015 और अब छटा हाइड्रोजन बम के रूप में 3 सितंबर 2017 को किया था। उत्तरी कोरिया के इन परीक्षणों से पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में बहुत गहरा असर पड़ा है। कई देश तनाव में थे और अपने बचाव के लिए हथियारों के भंडारण में लगे थे। इस लिहाज से किम जोंग की पहल शांति बहाली का रास्ता खोलने को उतावली दिख रही है, तो दुनिया की महाशक्तियों को इस पहल का स्वागत करने की जरूरत है। 

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