शंख-नाद, मन की आवाज़

हर ध्वनि दिल तक दस्तक देने में सक्षम होती है। हर आवाज कानों से होकर दिल तक पहुंच ही जाती है। गीत-गुंजन या वाद्य यंत्र, सभी की ध्वनियों में कुछ न कुछ विशेषताएं होती हैं। कोई तेज होती है, कोई करकश तो किसी की ध्वनि इतनी मधुर होती है कि दिलो-दिमाग पर आसानी से असर कर जाती है या कहो कि एक बार सुनने के बाद उसका गहरा असर पड़ता है। इन्हीं में से एक वाद्य यंत्र है ‘शंख’ जिसका उपयोग अब या तो पंडितों तक सीमित रह गया है या फिर कुछ ऐसे परिवार हैं जिनके बुजुर्ग उसका प्रयोग करते हैं। इसका प्रयोग पूजा अर्चना या ईश्वर वंदना के लिए ही किया जाता है। जहां भी शंखनाद होता है तो मन में एक ही विचार आता है कि अवश्य ही उस स्थान पर ईश्वर की वंदना हो रही है और हाथ स्वत: ही नमस्कार मुद्रा में आकर ईश्वर को याद करके नतमस्तक हो जाते हैं। शंख समुद्र में पाई जाने वाली सीपियाें का ही एक प्रकार है अर्थात उसके वायु प्रवाह के मार्ग को देखें तो वह बिलकुल बीच से होकर गुजरता है। जब इसमें वायु प्रवाहित की जाती है तो वह उस मृत सीपी के उस भाग से गुजर कर निकलती है जहां कभी दिल रहता था। फिर प्रवाहित करने वाला भी पूरे दिल तक का जोर लगाता है, तब जाकर वह ध्वनि रूप में बाहर आती है। यह आवाज दिलों की आवाज है इसलिए शायद जहां भी सुनने को मिलती है, सीधे दिलों तक असर करती है। दूसरा इसका असर और भी गहरा इसलिए हो जाता है क्योंकि यह ईश्वर की स्तुति के लिए निकली हुई ध्वनि होती है। फिर जो आवाज दिलों से निकलती है, उसका दिल तक पहुंचना तो निश्चित ही होता है।  वाद्य यंत्र कोई भी हो, यदि उसे पूरे जतन से सीखा जाए और उसके सुरों को दिल से जोड़ दिया जाए तो उससे निकलने वाली आवाज दिलों पर गहरा असर करती है। शंख तो ऐसा वाद्य यंत्र है जिसके दिलों पर असर करने के कई पहलू हैं। (उर्वशी)

-नरेश सिंह नयाल