मावल्यान्नांग एशिया का सबसे स्वच्छ और सबसे सुंदर गांव

    हिन्दुस्तान के शहर हों या गांव, ये आमतौर पर दुनिया में अपनी गंदगी के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इसी हिन्दुस्तान में एक ऐसा गांव भी है जो न केवल देश में बल्कि समूचे एशिया में सबसे ज्यादा स्वच्छ है। जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा है। यह गांव स्वच्छता के पर्याय के रूप में जाना जाता है। यह गांव है मावल्यान्नांग। इस गांव का उच्चारण करना भले ज्यादातर भारतीयों को थोड़ा कठिन लगे लेकिन इस गांव से पूरा हिंदुस्तान ही नहीं दुनिया के तमाम देश प्रेरणा ले सकते हैं।  आज यह गांव अनगिनत कहानियों का हिस्सा है। आज यह गांव स्वच्छता का प्रतीक है। साल 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में स्वच्छता अभियान का नारा दिया था और इस संबंध में कार्यक्रम शुरु किया था, तब यही गांव स्वच्छता के मॉडल के रूप में सामने था। प्रधानमंत्री ने इस गांव का जिक्त्र किया था। हमारे देश में जहां साल 2011 की जनगणना के मुताबिक 5,97,608 गांव हैं। इन गांवों में देश की 83,37,48,852 लोग रहते हैं। इन ज्यादातर गांवों में गंदगी एक बड़ी समस्या है। लेकिन जब हम मावल्यान्नांग का ज़िक्र करते हैं तो गांवों के संबंध में पूरी की पूरी तस्वीर ही बदल जाती है। मावल्यान्नांग मेघालय के पूर्वी खासी हिल्स जिले का एक साधारण सा गांव है, जहां 4 साल पहले कुल 95 परिवार रहते थे, जिनकी कुल आबादी 500 लोगों के आसपास थी। यह गांव वैसे तो उत्तर पूर्व के तमाम दूसरे गांवों जैसा ही है। यहां भी दूसरे गांवों की ही तरह मातृ सत्ता है यानी घरों में महिलाएं मुखिया हैं। 
लेकिन अपने संस्कारों और सफाईर् को लेकर स्वगत सजगता के चलते यह गांव साफ-सफाईर् का मुहावरा बन चुका है। अपने इसी गुण के चलते आज यह पूरी दुनिया से अपना गुणगान करा रहा है। पूरी दुनिया में हर दिन कहीं न कहीं इस गांव के बारे में अखबारों में, पत्रिकाओं में, ब्लॉगों में या सोशल मीडिया में, कुछ न कुछ छपता है। अपने इसी स्वच्छता के आचरण के कारण इसे एशिया के सबसे साफ  गांव का तमंगा मिला है। मावल्यान्नांग इसलिए शायद देश और एशिया का सबसे साफ  गांव है; क्योंकि यहां लोग घर से निकलने वाले कूड़े-कचरे को बांस से बने डस्टबिन में जमा करते हैं और फिर उसे एक जगह इकट्ठा कर खेती के लिए खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं। पूरे गांव में हर जगह कचरा डालने के लिए बांस की डस्टबिन लगी हुई हैं। यह गांव पहली बार साल 2003 में एशिया का सबसे साफ  और 2005 में भारत का सबसे साफ  गांव बना। इस गांव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां की सारी सफाईर् ग्रामवासी स्वयं ही करते हैं। सफाईर् व्यवस्था के लिए वे किसी भी तरह से प्रशासन पर आश्रित नहीं हैं। यहां का कोई भी गांववासी वो चाहे महिला हो या पुरुष अथवा बच्चा, जहां भी गंदगी देखते हैं, सफाईर् पर लग जाते हैं। चाहे कोई भी और कैसा भी मौका क्यों न हो। सफाईर् के प्रति यहां किस कदर जागरूकता है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यदि सड़क पर चलते हुए किसी ग्रामवासी को कोई कचरा नजर आता है तो वो रूककर पहले उसे उठाकर डस्टबिन में डालेगा, फिर आगे जाएगा। सच्चाई यही है न कि कोई जादू जो इस गांव को देश ही नहीं, पूरे एशिया का सबसे स्वच्छ गांव बनाता है।

-विवेक कुमार