आग से ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को पहुंच रहा है नुक्सान

वरसोला, 18 मई (वरिन्दर सहोता)-किसानों की तरफ से हर वर्ष नाड़ और पराली को लगाई जाती आग सिर्फ़ वातावरण के लिए ही घातक सिद्ध नही हो रही है। बल्कि इस आग से ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को भी बड़ा नुक्सान पहुँच रहा है। परन्तु सरकार की तरफ से आग लगाने पर लगाई पाबंदी का भी किसानों पर कोई बहुत प्रभाव नहीं हो रहा। जानकारी अनुसार ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को बनाई रखने के लिए इसमें कम से कम 0.45 प्रतिशत जैविक मादा होना चाहिए। परन्तु पंजाब में बहुत से स्थान पर जैविक मादे की मात्रा 0.02 प्रतिशत रह गई है। इस लिए जहाँ खादों / दवाईओं की अंधाधुंध प्रयोग ज़िम्मेदार है, वहीं किसानों की तरफ से हर वर्ष खेतों में नाड़ और पराली को लगाई जाती आग भी जिम्मेदार है। यहाँ बता दें कि पंजाब में लगभग 36 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में गेहूँ और करीब 26 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की लगवाई होती है। इससे करीब मिलियन टन प्रा.लि./ नाड़ पैदा होती है। हर साल किसानों की तरफ से इसको आग लगा दी जाती है जिससे हर साल लगभग 0.48 लाख टन फास्फोरस, 0.94 लाख टन नाईट्रोजन, और 2.6 लाख टन पोटाश सहित कई और लघु तत्व नष्ट हो जाते हैं। कृषि विशेषज्ञ डा. अमरीक सिंह ने इस सम्बंधी बातचीत करते कहा कि इस आग के साथ जहां ज़मीन की ऊपरी सतय सख्त हो जाती है, वहीं बहुत से कीड़े भी जल कर मर जाते हैं। जिसका सीधा प्रभाव ज़मीन की उपजाऊ शक्ति पर पड़ता है और साथ ही ऐसे खेतों में बीजी गई फसलें कई बीमारियों का शिकार हो भी होती हैं। दूसरे ओर इस आग के साथ सब से बड़ा नुक्सान खेतों को और सड़कों किनारे लगे वृक्षों को पहुँचता है। विशेष कर छोटे पौधे तो पूरी तरह ही जल कर ख़त्म हो जाते हैं और बड़े स्तर पर बड़े वृक्ष भी इस आग के साथ प्रभावित होते हैं। इस सम्बंधी एक जंगलात अधिकारी ने बताया कि नाड़ और पराली की आग के साथ पंजाब में हर वर्ष करीब 5 लाख से और ज्यादा वृक्ष 50 प्रतिशत तक प्रभावित होते हैं। बेशक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अवशेषों को आग लगाने पर पूर्ण तौर पर पाबंदी लगाई हुई है। परन्तु इस के बावजूद बड़े स्तर पर पंजाब के किसानों को इस बार नाड़ को आग लगाई है।