तस्करी के कारण गुम होती तितलियां 

अपने आसपास उड़ती रंग-बिरंगी तितलियों की प्रजाति के अचानक कम हो जाने पर क्या कभी आपकी नजर गई? हमारे आसपास के वातावरण में कई महत्त्वपूर्ण फसलों के बीज यहां से वहां पहुंचाने की जिम्मेदारी निभा रही इन तितलियों के लुप्त होने की चिंता किसी को नहीं सताती, तब भी नहीं जब हम किसी बधाई कार्ड पर, किसी किताब के कवर पर या साज-सजावट के किसी अन्य सामान पर सूखी तितलियां देखते हैं लेकिन स्थिति यह है कि दुनिया भर में हर रोज लाखों तितलियां अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में खरीद-फरोख्त के लिए सुखा कर मारी जा रही हैं।  सौंदर्य सज्जा और कारोबार के नाम पर इनके पंखों की तस्करी ने 400 प्रजातियों को लुप्तप्राय: श्रेणी में ला खड़ा किया है। थाईलैंड  इस कारोबार का केंद्र है। केरल के अंदरूनी, दूरदराज इलाकों तथा पूर्वोत्तर राज्यों के कई क्षेत्रों में एक समय तितलियों की करीब दो हज़ार प्रजातियां थीं और आज इनमें से लगभग कई सौ प्रजातियां साज-सज्जा के अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में खत्म हो चुकी हैं जबकि भारत तथा थाईलैंड दोनों देशों में तितलियों का कारोबार अवैध घोषित है। अवैध शिकार के अलावा पौधों और वनस्पतियों पर कीटनाशकों के छिड़काव भी इन प्रजातियों के विलोप के खतरे के लिए जिम्मेदार हैं। एक सुंदर तितली का अंतर्राष्ट्रीय मूल्य 500 रुपए है। हिमाचल और जम्मू-कश्मीर की टाइगर हिल्स में पाई जाने वाली विशेष बर्डविंग बटरफ्लाई के एक जोड़े की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तकरीबन 25000 डॉलर से लेकर 35000 डॉलर तक होती है क्योंकि इसके पंख में मौजूद पीले रंग के कणों को कुछ देशों में सोने के गहनों पर सुनहरी पॉलिश करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह लूजान पीकॉक स्वैलोटेल तितली, ओरिंथापटेरा हिलीयास, पैलीलियो हास्पीटान और अलैक्जैंडरी तितली का जोड़ा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तस्कर हज़ार से दस हज़ार डॉलर की कीमत पर बेचते हैं। साधारणतया तितलियों को पकड़ने वाले तस्कर पेट्रोल जेनरेटर, अल्ट्रावॉयलेट बल्ब, बटरफ्लाई कलेक्शन जार, विभिन्न रसायन और जाल का इस्तेमाल करते हैं। पंजाब में बहुरंगी मोनार्क और लेमन बटरफ्लाई को बच्चाें द्वारा 150 रुपए दिहाड़ी देकर पकड़वाया जाता है। इन मरी हुई तितलियों को हांगकांग, ताईवान, जापान, इंग्लैंड, कनाडा, और अमरीका में ऊंची कीमत पर बेचा जाता है। तितलियों के तस्कर आमतौर पर अल्ट्रावॉयलेट लाइट और रसायन युक्त चोगे का इस्तेमाल तितलियों को आकर्षित करके पकड़ने के लिए करते हैं। ये बटरफ्लाई पोचर्स स्थानीय लोगों से सांठ-गांठ कर यह गैर कानूनी धंधा चलाते हैं। भारत में उत्तर-पूर्वी राज्य मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, असम के अलावा पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में तितलियों को पकड़कर विभिन्न राज्यों के साथ-साथ विदेशों में तस्करी करके भारी दामाें पर बेचा जाता है। गहनों और सजावटी सामान के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए पकड़कर मारी गई तितलियों को फोटो फ्रेम में बंदकर दीवारों पर सजाने और कानों में गहनों की तरह पहनने के काम में लाया जाता है। तितलीयुक्त क्रि स्टल पेपरवेट, तितलियों के चाबियों के छल्ले और इयर रिंग्स आदि प्रति पीस पांच से दस हज़ार रुपए तक में बेचे जाते हैं। विश्व में तकरीबन तितलियों की 2400 प्रजातियां हैं जिनमें से तकरीबन 1500 प्रजातियां अकेले भारत में पायी जाती हैं। भारत में ही करीब सौ तितलियों की प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। एक ओर तितलियों का जीवनकाल बहुत छोटा होता है और दूसरी ओर तितलियों का लारवा प्रकृति के अनेक जीवों विशेषकर पक्षियाें का भोजन होने के कारण आहार श्रृंखला का अहम हिस्सा है। लारवा के भोजन श्रृंखला का हिस्सा होने के कारण मात्र पांच फीसदी तितलियां ही जीवित रह पाती हैं। ऐसे में तस्करी के कारण इनकी प्रजातियां तेजी से विलुप्त हो रही हैं। वाइड लाइफ एक्ट 1972 के अंतर्गत संरक्षित होने के कारण तितलियों को पकड़ना, मारना और उनकी तस्करी करना दंडनीय अपराध है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1994 में दो जर्मन लोगों को 45000 तितलियों की खेप, वर्ष 1996 में दार्जीलिंग में एक जापानी पर्यटक को 1200, वर्ष 2001 में दो रूसी पर्यटकों को 2000, वर्ष 2008 में चेकोस्लोवाकिया के दो पर्यटकों को पश्चिम बंगाल में 1300 और वर्ष 2010 में रूस के एक बटरफ्लाई पोचर को तकरीबन 16 किलो विशिष्ट विलुप्त होने वाली तितलियों की खेप के साथ पकड़ा गया था लेकिन लगभग सभी मामलों में ढुलमुल नीति के कारण वे ज़मानत पर छूट गए। तस्करी के अलावा पर्यावरण प्रदूषण का असर भी तितलियों की प्रजातियों पर पड़ रहा है। तितली के खत्म होने की एक बड़ी वजह मोबाइल टेलीफोन टावर भी हैं। इनसे निकलने वाले रेडिएशन तितली की मौत का कारण बन रहे हैं। जिन फूलों और पत्तियों को खाकर तितलियां जीवित रहती थीं, उन वनस्पतियों में ज़हर शामिल हो गया है। तितलियों की खूबसूरत दुनिया का इस तरह छोटा होते जाना सिर्फ सौंदर्य के लिए ही नहीं, इंसान के अस्तित्व के लिए भी खतरे का संकेत है। कीट सिर्फ जैव विविधता का हिस्सा नहीं हैं बल्कि इनकी मेहनत और इनका बने रहना इंसान के वजूद के लिए भी बेहद जरूरी है। अपने भोजन की जुगत में ये जब एक फूल से दूसरे फूल तक दौड़ लगाती हैं तो परागण की क्रि या को अंजाम(पॉलीनेशन) देती हैं जो फल में बदलने के लिए जरूरी होती है। परागण की यह प्रक्रि या दुनिया को हर साल करीब 225 से 230 अरब डॉलर कीमत के प्राकृतिक उत्पाद तोहफे में देती हैं।  ऐसा नहीं है कि इनके संरक्षण के लिए प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। पहले ठाणे का तितली बाग काफी मशहूर हुआ करता था। इसी तर्ज पर मध्य प्रदेश के पन्ना, कर्नाटक के बंगलुरू के पास बन्नेरघट्टा और जमशेदपुर में टाटा स्टील जूलॉजिकल सोसायटी ने तितलियों के लिए पार्क बनाया है लेकिन तितलियों की विभिन्न प्रजातियों की तेजी से घटती संख्या के सामने यह प्रयास काफी नहीं हैं। पर्यावरणविद् मानते हैं कि इस दिशा में तेजी से प्रयास किए जाने की जरूरत है। मनुष्य मृत्यु के उपरांत तितली बन जाता है, ऐसा सोलोमन द्वीप वासियों का विश्वास है लेकिन दुनिया के बाकी देशों के लोग भी तितलियों के बारे में ऐसा ही कुछ सकारात्मक सोचें, तभी आगामी पीढ़ी तितलियों के रंगीन संसार का लुत्फ ले सकेगी।

युवराज)
-नरेन्द्र देवांगन