हम कहां से कहां आ गये?

देश की राजनीति में जब एक गरीब का बेटा प्रधानमंत्री बना तब उसने देश के किसानों व जवानों की सुध लेते हुए नारा बुलन्द किया था कि ‘जय जवान, जय किसान’। उस उद्घोष के पीछे स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की यह सार्थक सोच रही कि जवान की जय इसलिए हो कि हम देश की सीमाओं के प्रहरी जवानों की मुस्तैदी के कारण देश में सुख-चैन से रहकर रात को घरों में सुरक्षित आराम की नींद सोते हैं। ऐसा ही एक और नारा जो कभी देश में गूंजा ‘आराम है हराम’ अर्थात् कर्म ही पूजा है। वर्तमान से पहले भी राजनीति में एक विद्वान पंडित चाणक्य हुए जिन्होंने अपनी अर्थ नीति, विदेश नीति और राजनीति से देश की दशा व दिशा दोनों ही बदल दी। अब सवाल आज की राजनीति का आता है। आज की राजनीति का चाणक्य कौन है? यह जग-जाहिर हो चुका है और कयास लगाने रह जाते हैं, या लगाते रहते हैं। एक ऐसा इन्सान जो बचपन में चाय-चाय पुकारता हुआ रेलवे स्टेशन पर हाथ में चाय की केतली उठा कर आवाज़ लगाता रहा और आज उस शख्स की आवाज़ राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर गूंजती है। चाहे भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राईक का मसला हो कि दुश्मन को उसके घर में जाकर सबक सिखाया और सुरक्षित भारत की धरती पर लौट आये। जब माननीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी रहे उस समय पड़ोसी से संबंध सुधारने की नीयत से पहल करते हुए दोनों देशों के मध्य व्यापार बढ़ाने व अमन-शांति बनाये रखने के लिए ‘समझौता एक्सप्रैस’ व ‘लाहौर बस सेवा’ आरम्भ की गई। व्यापार बढ़ा या नहीं, इसकी तो जानकारी नहीं है, परन्तु ‘मुंबई बम ब्लास्ट’ 26/11 हमला, पठानकोट एयर बेस हमला की परिणिति सामने आई। ये ही नहीं जब स्वर्गीय जसवंत सिंह जी भारत के विदेश मंत्री थे तब ‘कंधार’ कांड के दो दोषियों को सुरक्षित पैकेज देकर उन्हें उनके घर तक सुरक्षित पहुंचाया गया का रहस्य आज तक भी बना हुआ है कि क्या यह निर्णय अकेले विदेश मंत्री का था या समूची कैबिनेट का।