आत्मिक आनन्द का केन्द्र गुरुद्वारा श्री हेमकुंट साहिब

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित श्री हेमकुंट  साहिब सिखों का एक धार्मिक स्थल है, जिसकी यात्रा जीवन में हर सिख श्रद्धालु करने की चाहत रखता है। सात पहाड़ियों से घिरा हुआ हेमकुंट  साहिब का निर्माण वर्ष 1960 में शुरू किया गया था और मेजर जनरल हरकीरत सिंह ने इस कार्य को संभाला था। वह इंजीनियर-इन-चीफ थे, जिन्हें वास्तुकार शैली को चयनित करके निर्माण की प्रक्रिया का प्रभारी बनाया गया था। यात्री गुरुद्वारा के निकट एक सुंदर झील भी देख सकते हैं। तीर्थस्थान के अंदर जाने से पहले सिख, झील जो पास में स्थित है, पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। श्रद्धालु पास की दुकानों से छोटे स्मृति चिन्ह भी खरीद सकते हैं। गुरुद्वारा के अंदर श्रद्धालुओं को चाय और खिचड़ी के साथ कड़ाह प्रसाद दिया जाता है, जो चीनी, गेहूं के आटे और घी के बराबर भागों का उपयोग कर तैयार किया जाता है। हेमकुंट  साहिब के कपाट भारी बर्फबारी के कारण अक्तूबर और अप्रैल के महीने के बीच  बंद कर दिए जाते हैं। इस वर्ष हेमकुंट साहिब की यात्रा 25 मई से शुरू होगी। उत्तराखंड के चमोली जिले की हसीन वादियों में स्थित हेमकुंट साहिब सिखों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। हेमकुंट संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है  हेम (बर्फ) और कुंट (कटोरा) है। आज हेमकुंट  साहिब सिखों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, लेकिन यह धार्मिक स्थल करीबन दो से अधिक सदियों तक गुमनाम था। गुरु गोबिंद सिंह ने यहां आकर इस स्थान के मौजूद होने के संकेत दिए। बर्फ  लदी पहाड़ियों सात से घिरा हेमकुंट साहिब एक खूबसूरत धार्मिक स्थल है। हिमनद झील के साथ 4632 मीटर (15,197 फीट) की ऊंचाई पर हिमालय में स्थित है। इन सात पर्वत चोटियों की चट्टान पर निशान साहिब सजा हुआ है। श्री हेमकुंट साहिब जाने के लिए सबसे पहले श्रद्धालुओं को हरिद्वार, ऋषिकेश के दर्शन करते हुए पहुंचना होता है। ऋषिकेश में श्रद्धालु रात्रि विश्राम करते हैं तथा सुबह गोबिंद घाट के लिए चलते हैं। गोबिंदघाट पहुंचकर हर श्रद्धालु को अपना नाम आगे की यात्रा के लिए रजिस्टर्ड करवाना अनिवार्य है। यहां पर श्रद्धालु के ठहरने, खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था है। दूसरे दिन यात्री गोबिंद धाम के लिए यात्रा शुरू करते हैं। गोबिन्दघाट से गोबिंदधाम तक का सफर लगभग तेरह किलोमीटर है। पूरे रास्ते गुरुबाणी का उच्चारण तथा संग-संग बहती गुनगुनाती अलकनंदा नदी पर्यटकों को थकान का एहसास नहीं होने देती। इस यात्रा का रास्ता बड़े-बड़े पत्थर रखकर बनाया गया है, जिन पर चलकर थकावट का एहसास प्रकृति के अद्भुत नजारे नहीं होने देते। पर्यटक गोबिन्दधाम पहुंचकर रात्रि विश्राम करते हैं। गुरुबाणी के मधुर स्वर सुन पर्यटक सारी थकान भूल जाते हैं तथा सर्वशक्तिमान ईश्वर द्वारा रचित रचना को अवाक् देखते रह जाते हैं। फूलों की घाटी के नजदीक होने के कारण रास्ते भर में फूल खिले हुए हैं जिनकी सुगंध मन मोह लेती है। श्री हेमकुंट पहुंचते ही पर्यटकों का मन नीले रंग की स्वच्छ झील को देखकर प्रसन्न हो जाता है। यहां की खूबसूरत दृश्यावली और रमणीयता  इस जगह का महत्त्व बढ़ाती है। गुरुद्वारा साहिब के चारों ओर पहाड़ियां हैं तथा सामने नीले रंग की झील। इस झील में यात्री स्नान कर गुरु धाम के दर्शन कर निहाल होते हैं। इस दुर्गम और कठिन रास्ते को कैसे सरलता से पार कर लेते हैं, यह गुरु में विश्वास का ही आधार माना जाता है। इस गुरुद्वारा साहिब के आसपास सात चोटियां हैं जहां पर सात निशान साहिब झूलते हैं। लोगों का मानना है कि हर समय घना कोहरा होने के कारण इन सातों ध्वजों के दर्शन जिस गुरु-सिख को हो जाते हैं, उसकी यात्रा सफल मानी जाती है। उस पर गुरु की कृपा होती है तथा उसे गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यहां हर समय गहरी धुंध छाई रहती है। बर्फ पर तैरते पानी में स्नान करके भक्तजनों को गुरु की बाणी असीम बल प्रदान करती है। यहां पर काले चने का प्रसाद मिलता है। हेमकुंट साहिब की यात्रा इतनी सरल नहीं। यह यात्रा आप मई से सितम्बर तक कर सकते हैं तथा यह सितम्बर से मई तक बर्फ के कारण बंद रहती है। उस वक्त गुरुद्वारा साहिब में सुशोभित ग्रंथ साहिब भी गुरुघाट में लाकर रख दिया जाता है। हेमकुंट साहिब के दर्शन करने वाले श्रद्धालु बार-बार यहां आने को उत्सुक रहते हैं तथा यह सफर पर्यटकों को हमेशा रोमांचित करता रहता है। हेमकुंट साहिब के रास्ते में पड़ते ग्लेशियर से पर्यटकों को सुरक्षित निकालने हेतु सेना के जवान भी हमेशा तैनात रहते हैं। फिर भी अपनी ओर से पर्यटकों को सावधान रहने की हिदायत दी जाती है। हेमकुंट साहिब जी की यात्रा मन में असीम शांति व प्रकृति के अलौकिक दृश्य को लम्बे समय तक बनाये रखती है।

-ट्विंकलदीप कौर सैणी