ईश्वर का निवास स्थान

सृष्टि की रचना करने के पश्चात् ईश्वर करोड़ों-अरबों वर्षों तक मजे में रहा। फिर उसकी चिंताओं का समय शुरू हो गया क्योंकि उसने मनुष्य का निर्माण कर उसे पृथ्वी पर भेज डाला। मनुष्य ईश्वर को पाने के चक्कर में ईश्वर के पीछे ही पड़ गया। अपनी छोटी से छोटी समस्या के समाधान के लिए भी मनुष्य ईश्वर के पास पहुंच जाता।अंतत: ईश्वर मनुष्य के बीच से उठा और घने जंगल में कहीं चला गया। मनुष्य ने उसे ढूंढ निकाला। ईश्वर तंग आकर पहाड़ों की अत्यंत दुर्गम चोटी पर जा बैठा। मनुष्य वहां भी पहुंच गया। ईश्वर ने वृहद रेगिस्तान, विशाल सागर, बड़े-बड़े झरनों-झीलों में छुपने का प्रयास किया। मनुष्य हर बार अपनी असंख्य समस्याएं और अभिलाषाएं लेकर ईश्वर के पास पहुंच ही जाता।
अब तो ईश्वर ने पृथ्वी को छोड़कर अन्यत्र भाग जाने में ही अपनी भलाई समझी परन्तु ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति ‘मनुष्य’ ने ईश्वर को ग्रह, नक्षत्र, इहलोक, परलोक, आकाश, पाताल हर स्थान पर ढूंढ ही निकाला। ईश्वर का जीवन अत्यंत दुष्कर और दूभर हो गया। उसे पूरे ब्रह्माण्ड में ऐसा कोई स्थान नहीं दिखाई दे रहा था जहां मनुष्य की पहुंच से बचा जा सके!ईश्वर गहरी सोच में पड़ गया। बहुत दिनों तक उसने इस गंभीर समस्या पर गहन चिंतन-मनन किया और अंतत: उसके मुख पर एक सुमधुर मुस्कान आ गई। वह हर्ष और उल्लास से पुलकित हो उठा। ईश्वर ने अपने रहने के लिए एक ऐसा स्थान ढूंढ निकाला, जहां मनुष्य का पहुंच पाना लगभग असंभव ही था। ईश्वर की यह युक्ति सचमुच पूर्णत: सफल सिद्ध हुई। मनुष्य आज तक उसको ढूंढने में असफल रहा है। ईश्वर ने मनुष्य के हृदय में ही अपना निवास स्थान बना लिया। मनुष्य पूरी पृथ्वी और समस्त ब्रह्मांड में तो ईश्वर को ढूंढता फिरता है, पर कभी अपने हृदय में झांकने का प्रयास नहीं करता। 

- शैव कमलेश निखिल