रोकी जाए जल की बर्बादी

प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग हमने किस हद तक कर दिया है, उसका परिणाम अब सामने आने लगा है। प्रकृति ने हमें बहुत से जीवनोपयोगी संसाधनों से धनी किया है। उनमें से जल एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जो प्राणी मात्र के लिए बहुमूल्य है। परन्तु इस अमूल्य संसाधन का दोहन हमनें इस पैमाने पर कर दिया है कि वर्तमान में भूमिगत जल का स्तर खतरे के निशान से काफी नीचे जा चुका है। वैश्विक स्तर पर पानी के लिए बहस छिड़ चुकी है। विश्व पटल पर पानी को संचित करने को लेकर काफी प्रयास किए जा रहे हैं। पानी की हो रही कमी के लिए ज़िम्मेदार हमारी जीवनशैली भी है जहां हम बेवजह पानी को बहा देते हैं। इसी का नतीजा है कि देश के कई इलाके आज पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं और एक बाल्टी पानी के लिए मीलों दूर जाने को मजबूर हैं। यही नहीं कभी-कभी तो पानी मिलने की ये जद्दोजहद आपसी लड़ाई का कारण भी बन जाती है। सम्पूर्ण विश्व के पानी का 4 प्रतिशत हिस्सा भारत में है, जबकि दुनिया की कुल आबादी का लगभग 16 प्रतिशत हिस्सा यहां रहता है। इतना बड़ा अंतर होते हुए भी हम समझ नहीं पा रहे हैं और जबरदस्त तरीके से इसका दुरुपयोग जारी है। सुबह से सायं तक जितने पानी की ज़रूरत हमें होती है, हम उससे कहीं अधिक पानी तो बेवजह बर्बाद कर देते हैं। पानी का प्रयोग अगर बैंक में रखी पूंजी की तरह किया जाए तो निश्चित रूप से पानी की बचत होगी, क्योंकि हम ज़रूरत पड़ने पर ही इसका इस्तेमाल करेंगे। कृषि प्रधान देश होने के कारण जाहिर है खेती के लिए पानी तो हमें प्रयोग करना पड़ता है। एक आंकड़े के अनुसार देश में सिंचाई के लिए लगभग 89 प्रतिशत पानी का प्रयोग भूमिगत स्रोतों से हो रहा है, जो नहरों व नदियों के मुकाबले कहीं ज्यादा है। 50 प्रतिशत पानी की खपत अकेले शहरों में है, जोकि ग्रामीण इलाकों से कम है। धान जो हमारे देश की मुख्य फसल है, में सबसे ज्यादा पानी की खपत होती है। गौरतलब है कि एक टन धान उगाने के लिए लगभग 28 हज़ार लीटर पानी की खपत होती है, जोकि चीन और अमरीका जैसे देशों से दोगुना है। इसी तरह गेहूं, मक्का, गन्ना, कपास आदि फसलों के लिए भी पानी की खपत खासी मात्रा में होती है। पौराणिक काल के ऋषियों-मुनियों व विद्वानों ने शायद जल के महत्व को समझ लिया था। तभी तो उन्होंने नदियों को मां की तरह पूजनीय बनाकर इसका धार्मिक और सामाजिक महत्व बढ़ा दिया था। हमारे भारत देश में गंगा-यमुना, ब्रह्मपुत्र, सरस्वती जैसी कई जीवनदायिनी पवित्र नदियां हैं, जो हमारे लिए धार्मिक सरोकार भी रखती हैं, परन्तु वर्तमान में इन नदियों की बदतर हालत हमसे छिपी नहीं है। मानव के निहित स्वार्थों के चलते न केवल ये नदियां अत्यंत दूषित हो गई हैं, बल्कि इनका जल स्तर भी कम होता जा रहा है। शहरों की तमाम गंदगी, सीवर का गंदा पानी, उद्योगों का रासायनयुक्त पानी बिना शुद्ध किए धड़ल्ले से इन नदियों के हवाले कर दिया जाता है। नदियों पर हो रहा अत्याचार यहीं खत्म नहीं हो जाता है। हम जानवरों को नहलाने के लिए व मृत जानवरों को भी नदी में डाल देते हैं। ज्ञातव्य है कि कई दशकों से गंगा जैसी कई नदियों को निर्मल करने के लिए कई सरकारी योजनाएं बन चुकी हैं परन्तु इन नदियों की स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है। मानवीय जिद व जागरूकता के अभाव के चलते तमाम योजनाएं बौनी साबित हो रही हैं। जल ही जीवन है, हम सब जानते हैं। फिर अपने जीवन की भांति इसकी देखभाल हम क्यों नहीं करते हैं? बरसाती पानी को संचय कर रखने के लिए पारम्परिक व गैर-पारम्परिक तरीकों के जानकार हमारे समाज में मौजूद हैं, फिर इनके ज्ञान का लाभ हम क्यों नहीं उठा पाते? बरसाती पानी को छोटे-छोटे तालाब, पोखर व नाले बना कर संचित किया जा सकता है, जिससे हमारे स्थानीय निवासियों व पशुओं को पानी की कमी न हो। हमारे पर्यावरण-विद् लगातार इस पर शोध करते रहते हैं। पानी के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। फिर भी हम स्वीमिंग पूल, गाड़ी धोने व हमारे माननीयों के स्वागत के लिए इस कीमती पानी को यूं ही बर्बाद कर देते हैं और ज़रूरत पड़ने पर पानी पर राजनीति भी करने से पीछे नहीं हटते हैं। मानव शरीर की तरह पृथ्वी का 70 प्रतिशत हिस्सा पानी है। हमारे शरीर में डायरिया या डिहाइड्रेशन के चलते जब पानी की कमी हो जाती है तो हम अस्पताल का रुख करते हैं और कभी तो स्थिति बेकाबू हो जाती है और मृत्यु तक हो जाती है। तो इस पृथ्वी का तो हमने बहुत पानी खत्म कर दिया है। पानी के लगातार कम होते स्तर के बावजूद भी यह हमें जीवन दे रही है परन्तु कब तक पृथ्वी इस कमी को झेल पाएगी? हमारे पास पानी बचाने के लिए व जल शुद्धिकरण के लिए कई सरकारी, गैर-सरकारी, पारम्परिक योजनाएं हैं। ज़रूरत है तो सिर्फ इच्छा शक्ति व जागरूकता की, क्योंकि सरकार का कोई भी कदम तभी सफल होता है जब उसमें नागरिकों की भी हिस्सेदारी हो। प्रत्येक नागरिक को इसमें सहयोग देना होगा वरना वह दिन दूर नहीं जब हम पानी की कमी के कारण जी नहीं पाएंगे। प्रकृति ने जो यह वरदान हमें पानी के रूप में दिया है, उसे संजो कर रखना हमारा पहला कर्त्तव्य है। क्योंकि पानी के बिना जीवन कैसा होगा? इसकी कल्पना मात्र से ही भय लगने लगता है। जब हम सोचने से डरते हैं, तो अगर सच में एक दिन पानी खत्म हो गया तो पृथ्वी पर जीवन कैसे मुमकिन होगा?