हरियाणा में कर्मचारियों की हड़ताल- सरकारी कार्यों पर पड़ रहा है विपरीत प्रभाव


हरियाणा में स्थानीय निकाय कर्मचारियों की पिछले दो हफ्तों से हड़ताल चल रही है। इस हड़ताल से प्रदेश की सभी नगर पालिकाओं, नगर परिषदों व नगर निगमों का कामकाज प्रभावित हो रहा है। सबसे ज्यादा असर सफाई के कामकाज पर पड़ रहा है। सफाई कर्मचारियों की हड़ताल के चलते पूरे प्रदेश में जगह-जगह गंदगी के ढेर लग गए हैं। सरकार की ओर से मुख्यमंत्री ने मामला सुलझाने के लिए कर्मचारी संगठनों से बातचीत भी की थी, लेकिन मसले का कोई समाधान न निकलने से हड़ताल लंबी खिंच गई। कर्मचारियों की मांगों में भाजपा द्वारा चुनाव से पहले अपने चुनाव घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा करने की मांग मुख्य तौर पर शामिल है। 
भाजपा ने ठेका प्रथा बंद करने, कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने, सफाई कर्मचारियों को न्यूनतम 15 हज़ार रुपये महीना वेतन देने व समान काम-समान वेतन की नीति लागू करने की मांग की थी। भाजपा सरकार बने करीब साढ़े तीन साल से ज्यादा समय गुजर जाने के बावजूद ये वादे अभी तक पूरे नहीं हुए। कर्मचारियों का यह भी आरोप है कि कच्चे कर्मचारियों के वेतन में से ठेकेदाराें द्वारा काटे गए पीएफ व ईएसआई के पैसे को उनके खातों में अभी तक जमा नहीं करवाया गया।  शुरू में कर्मचारियों के सबसे बड़े संगठन सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा से जुड़ी हुई नगर पालिका कर्मचारी संघ ने तीन दिन की हड़ताल का ऐलान किया था।  मुख्यमंत्री उन दिनों विदेश गए हुए थे। उन्होंने विदेश से वापस आकर मसला सुलझाने के लिए कर्मचारी संगठनों को बातचीत के लिए बुलाया लेकिन बातचीत के वक्त आंदोलन चला रहे नगर पालिका कर्मचारी संघ के अलावा भाजपा के मजदूर संगठन बीएमएस से जुड़ी हुई यूनियन को भी बुला लिया गया। 
कर्मचारी नेताओं का आरोप था कि सरकार जानबूझ कर आंदोलन का श्रेय बीएमएस को दिलाने और उसे प्रदेश में स्थापित करने के लिए ऐसा कर रही है। उनका यह भी आरोप था कि प्रदेश में सर्व कर्मचारी संघ से जुड़े हुए आंगनवाड़ी वर्करों के संगठन ने प्रदेश में आंदोलन किया था और उस आंदोलन के वक्त भी सरकार ने बीएमएस को स्थापित करने के लिए ऐसे ही प्रयास किए थे जिसके चलते आंदोलन लंबा खिंच गया था। अब भाजपा के चुनावी वादे पूरे करवाने की मांग को लेकर चल रहा आंदोलन क्या रुख अख्तियार करेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
निलंबित हो गये भारती
हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के चेयरमैन भारत भूषण भारती आखिरकार निलंबित कर दिए गए। उनकी जगह 1993 बैच की आईएएस अधिकारी श्रीमती दीप्ति उमाशंकर को आयोग के चेयरपर्सन का कार्यभार सौंपा गया है। ताजा विवाद जेई की परीक्षा में प्रश्न संख्या 75 पर पूछे गए एक सवाल को लेकर उठा और इस सवाल से पूरे प्रदेश में हंगामा खड़ा हो गया। इस प्रश्न में पूछा गया कि हरियाणा में कौन सा अपशगुन नहीं माना जाता? जवाब में चार विकल्प दिए गए थे जिसमें पहला खाली घड़ा, दूसरा फ्यूल भरा कास्केट, तीसरा काले ब्राह्मण से मिलना और चौथा ब्राह्मण कन्या को देखना। इस सवाल पर विवाद खड़ा होते ही पूरे प्रदेश में ब्राह्मण समाज ने न सिर्फ नाराजगी जताई बल्कि आयोग के खिलाफ प्रदर्शन भी किए। उनकी मांग थी कि पूरे आयोग को भंग करके दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाए। 
उन्होंने कहा कि ऐसा करके न सिर्फ ब्राह्मण समाज का अपमान किया गया है बल्कि पूरे महिला वर्ग व प्रदेश की बेटियों का भी अपमान किया गया है। मुख्यमंत्री के विदेश दौरे से वापस आने के बाद ब्राह्मण समाज के प्रमुख लोग शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा के नेतृत्व में मुख्यमंत्री से मिले। सीएम से मिलने वालों में भाजपा के राज्यसभा सांसद डीपी वत्स, ब्राह्मण समाज के विधायक व अन्य प्रमुख लोग भी शामिल थे। सीएम से बातचीत के बाद रामबिलास शर्मा ने ऐलान किया कि आयोग की इस गुस्ताखी के लिए मुख्यमंत्री ने आयोग के चेयरमैन भारती को निलंबित करने और मामले की उच्च स्तरीय जांच करवाए जाने के आदेश दिए हैं। अब इस विवाद व प्रश्न को लेकर मामले की जांच पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश दर्शन सिंह को सरकार देने जा रही है। महिला आईएएस अधिकारी रूपन देओल बजाज मामले में दर्शन सिंह की अदालत ने ही पंजाब के पूर्व डीजीपी के.पी.एस. गिल को दोषी ठहराया था।
भारती का विवादों से संबंध
पिछले कुछ समय के दौरान हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग व चेयरमैन भारत भूषण भारती को लेकर सरकार की काफी किरकिरी हुई है। पहला विवाद पिहोवा नगर पालिका के अध्यक्ष से पैसे लेकर उसे अध्यक्ष बनाने को लेकर एक ऑडियो वायरल होने को लेकर हुआ। 
तब यह मामला विधानसभा में गूंजा और विधानसभा की कार्यवाही भी ठप्प रही। उसके बाद पैसे देकर कर्मचारी चयन आयोग में नौकरियां दिलाने वाले एक गिरोह के 8 सदस्यों को गिरफ्तार किया गया। विपक्ष को एक बार फिर सरकार को घेरने का मौका मिल गया और उन्होंने आरोप लगाया कि आयोग में उच्च पदों पर बैठे लोगों की मिलीभगत के बिना यह गोरखधंधा नहीं चल सकता था। विपक्ष का यह भी आरोप था कि इस घटना से साफ हो गया है कि कर्मचारी चयन आयोग में नौकरियां खुलेआम बिकती हैं। 
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