कर्नाटक के संकेत


पिछले दिनों में घटित हुए लम्बे राजनीतिक नाटक के बाद कर्नाटक में जनता दल (सेकुलर) के नेता एच.डी. कुमारास्वामी ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली है। कांग्रेस के नेता जी. परमेश्वर ने उप-मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण की। कर्नाटक में सम्पन्न हुए चुनावों के बाद बहुत अजीबो-गरीब घटनाक्रम चलता रहा है। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी  222 में से 104 सीटें लेकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी, परन्तु यह गणना बहुमत से कुछ सीटें कम रह गई। 
कांग्रेस ने 78 सीटें लेकर दूसरा एवं जनता दल (एस.) ने 38 सीटें लेकर तीसरा स्थान प्राप्त किया था। कांग्रेस ने एक चुस्त राजनीतिक खेल खेलते हुए जनता दल के कुमारास्वामी को सरकार बनाने के लिए अपना समर्थन पेश कर दिया। यह गठबंधन परिणामों के एकदम बाद अस्तित्व में आया था, परन्तु राज्यपाल वजू भाईवाला ने सबसे बड़े दल के रूप में उभरी भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने का निमंत्रण दे दिया तथा बाद में भाजपा नेता येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ भी दिलवा दी। उन्हें 15 दिनों में उन्हें अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए भी कहा गया। कांग्रेस ने इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय का द्वार खटखटाया, क्योंकि कांग्रेस एवं जनता दल (एस.) गठबंधन की सीटें विधानसभा में स्पष्ट बहुमत बन जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने तुरंत विधानसभा का आयोजन कर भाजपा की येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली सरकार को बहुमत साबित करने के लिए कहा, परन्तु विधानसभा में मतदान के पहले ही उन्होंने त्याग-पत्र दे दिया, जिसके दृष्टिगत जनता दल (एस.) एवं कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में आ गई। 
शपथ ग्रहण समारोह में अनेक विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए, जिनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव, शरद पवार, सीता राम येचुरी, केजरीवाल, चंद्र बाबू नायडू, अजीत सिंह एवं तेजस्वी यादव आदि शामिल थे। इस आयोजन से भाजपा को यह संदेश दिया गया है कि वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में लघु एवं क्षेत्रीय दल अहम भूमिका अदा करेंगे तथा वे सभी मिल कर भाजपा को कड़ी टक्कर देने के समर्थ हो सकते हैं। इस समय चाहे देश के दक्षिणी राज्यों के अतिरिक्त अधिकतर स्थानों पर भाजपा की सरकारें बनी हुई हैं तथा उसका व्यापक प्रभाव भी माना जा रहा है, परन्तु उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं अन्य कई प्रदेशों में जिस प्रकार भिन्न-भिन्न दलों के गठबंधन बनने शुरू हुए हैं, उनसे ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा के लिए आगामी लोकसभा चुनाव काफी कठिन सिद्ध हो सकते हैं। इसके साथ-साथ कर्नाटक की नई बनी सरकार के समक्ष गठबंधन को बनाये रखने तथा मंत्रियों के चयन को लेकर दोनों दलों के बीच संतुलन बनाये रखने की भी बड़ी चुनौती होगी। चुनावों से पूर्व तथा चुनावों के समय जनता दल (एस.) का अधिक झुकाव भाजपा की ओर रहा था तथा इस संबंध में यह भी अनुमान लगाया जा रहा था कि चुनाव परिणामों के बाद इन दोनों दलों के बीच सरकार बनाने के लिए गठबंधन हो सकता है। ऐसा इस कारण भी सोचा जा रहा है क्योंकि फरवरी-2006 से अक्तूबर-2007 तक लगभग 20 मास तक जनता दल (एस.) एवं भाजपा की कर्नाटक में सरकार बनी रही थी, परन्तु अब नई स्थिति में कुमारास्वामी को कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री के पद की पेशकश के साथ सम्पूर्ण परिदृश्य बदल गया है। नई पार्टी के साथ मिलकर चलना इतना सहल कार्य नहीं होगा, क्योंकि चुनावों से पूर्व इन पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था एवं लोगों के साथ वायदे भी अलग-अलग ही किए थे। 
चाहे कुमारास्वामी ने मुख्यमंत्री बनने से पहले ही अपनी इस बात को दोहराया कि चुनावों के दौरान उनकी ओर से लोगों से किए गए वायदे पूरे किए जाएंगे, परन्तु कांग्रेस ने भी चुनावों के दौरान लोगों के साथ भिन्न प्रकार के वायदे किए थे। इन दोनों पार्टियों के नेताओं का सुमेल नई सरकार किस तरह निभा सकेगी, यह बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है। इसके आधार पर ही नई सरकार की कारगुज़ारी को देखा जाएगा। जनता दल (एस.) ने चुनावों के समय यह वायदा किया था कि वह बिना किसी प्रश्न-चिन्ह के किसानों के ऋण माफ करेगा। जहां तक ऋण का संबंध है, सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली पिछली कांग्रेस सरकार ने किसानों के 50 हज़ार रुपए तक के सहकारी बैंकों के ऋणों को माफ कर दिया था। इससे 8 हज़ार करोड़ रुपए से भी अधिक का बोझ राजस्व पर पड़ा था, परन्तु जनता दल (एस.) ने जो वायदा किया है, उससे 53 हज़ार करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ राजस्व पर पड़ेगा। इतनी बड़ी धन-राशि जुटा पाना सरकार के लिए कैसे सम्भव हो सकेगा, यह देखने वाली बात होगी। इसके साथ ही आगामी पांच वर्षों में जनता दल (एस.) ने लटक रही सिंचाई परियोजनाओं पर डेढ़ लाख करोड़ रुपए खर्च करने का वायदा किया है। इतनी बड़ी धन-राशि जुटा पाना उस सरकार के लिए कैसे सम्भव हो सकेगा। कांग्रेस ने भी ऐसे ही वायदे लोगों के साथ कर रखे हैं। कांग्रेस की पिछली सरकार ने जाति आधारित सर्वेक्षण करवाए थे, परन्तु उन्हें जारी नहीं किया गया था क्योंकि इसे चुनावों के वर्ष में इससे नुक्सान होने का भय था। कांग्रेस सरकार यह कहती रही है कि जाति आधारित सर्वेक्षण के इसलिए अच्छे परिणाम निकल सकते हैं क्योंकि इससे रियायतें देने एवं योजनाएं बनाने में मदद मिल सकती है, परन्तु जनता दल (एस.) कांग्रेस की इस बात का सदैव विरोधी रहा है। 
 सिद्धारमैया की पिछली कांग्रेस सरकार ने लोकायुक्त बनाने के स्थान पर भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो गठित किया था, परन्तु कुमारास्वामी हमेशा लोकायुक्त गठित करने के ही समर्थक रहे हैं। भिन्न-भिन्न योजनाओं में कांग्रेस सरकार की प्राथमिकता कुछ एक विशेष मामलों पर बनी रही है जबकि जनता दल (एस.) इन योजनाओं का सदैव विरोधी रहा है। नई सरकार को इन सैद्धांतिक मामलों के प्रति नई नीतियां तैयार करने की आवश्यकता होगी, जिनके आधार पर सरकार की कारगुज़ारी का निर्णय किया जा सकेगा, क्योंकि भाजपा के विधायकों की संख्या सदन में अधिक है। इस कारण भी सरकार को सचेत रूप में कार्य करना पड़ेगा।
-बरजिन्दर सिंह हमदर्द