भाजपा की सत्ता वाले राज्यों में कैसी है दलितों की स्थिति ?


14 अप्रैल, 2018 को डा. बी. आर. अम्बेडकर के जन्म दिवस पर अम्बेडकर महासभा द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ को लखनऊ में ‘दलित मित्र’ का सम्मान दिया गया।
यह वही सरकार है, जिसने सहारनपुर में दलित बच्चों के लिए 300 से भी अधिक शिक्षा केन्द्र चलाने वाली भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद रावण को गिरफ्तार किया था। रावण और उनके सहयोगी कमल वालिया के खिलाफ दर्ज चार मामलों को हाईकोर्ट ने 2 नवम्बर, 2017 को राजनीति से प्रेरित करार दिया और दोनों को ज़मानत दे दी। रावण जैसे ही जेल से बाहर आए, उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट लगा कर उनको फिर गिरफ्तार कर लिया गया। इससे यही पता चलता है कि उत्तर प्रदेश सरकार में दलितों के प्रति आम विश्वास की कमी है।
एस.सी.एस.टी. एक्ट संबंधी सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ़फैसले के खिलाफ किए गए 2 अप्रैल, 2018 के बंद के मौके योगी सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों का सख्ती से दमन किया गया। मेरठ में एक दलित नौजवान पुलिस गोली लगने से मारा गया। 9000 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 500 से अधिक को गिरफ्तार भी किया गया। कुछ नौजवानों पर देसी पिस्तौल भी डाले गए ताकि असला एक्ट के अधीन मामले दर्ज किए जा सकें। मुजफ्फर नगर में भी नौजवान पुलिस गोली से मारा गया। 7000 से अधिक लोगों पर केस दर्ज किए गए और 250-300 गिरफ्तारियां की गईं। सहारनपुर में भीम आर्मी के 900 कार्यकर्ताओं पर मामले दर्ज किए गए। इलाहाबाद में इस आन्दोलन में हिस्सा लेने वाले 27 विद्यार्थियों पर मामले दर्ज किए गए। उपरोक्त मामलों में दंगा फैलाने, सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने, सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी में रुकावट डालने, हत्या का प्रयास और असला एक्ट जैसी धाराओं के तहत केस दर्ज किए गए। मेरठ में बहुजन समाज पार्टी से संबंधित पूर्व विधायक योगेश वर्मा, जो मेयर सुनीता वर्मा के पति भी हैं, को पहले अमन-कानून की स्थिति बनाए रखने में सहायता लेने हेतु बुलाया गया और फिर उनको मौके पर ही अपमानित किया गया और गिरफ्तार कर लिया गया। क्या ऐसी सरकार को दलित मित्र सरकार माना जा सकता है? उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व इंस्पैक्टर जनरल एस.आर. दारापुरी के अनुसार भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा राज्यों में एस.सी./एस.टी. वर्ग के लोगों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या तुलनात्मक तौर पर बढ़ी है।
फरवरी 2018 में एक दलित युवती मोनी साइकिल पर सवार होकर बाज़ार से गुज़र रही थी तो कुछ लोगों ने उस पर पैट्रोल फैंक कर आग लगा दी और उनको ज़िंदा जला दिया। इससे पूर्व पहली जनवरी में बलिया के रसरा में दो दलित नौजवानों को हिन्दू युवा वाहनी के कार्यकर्ताओं द्वारा गऊ चोरी के आरोप में पकड़ा गया। उनके सिर मुंडवा दिए और गले में ‘हम गऊ चोर हैं’ की तख्तियां डाल कर पूरे गांव में घुमाया गया। मार्च में बलिया के सोनू सिंह और सिद्धार्थ सिंह रेशमा देवी नामक एक दलित महिला, जिसने उनसे 20,000 रुपए उधार लेकर वापिस कर दिए थे, से ब्याज वसूलने के लिए दबाव डाल रहे थे। जब रेशमा देवी न मानी तो उस पर पैट्रोल डाल कर जला दिया गया।
योगी सरकार के दौरान दलितों पर इस तरह के अत्याचारों की कई घटनाएं घटित हुई हैं। दो अन्य घटनाएं, जिनमें दलितों को गौतम बुद्ध और डा. बी.आर. अम्बेडकर की प्रतिमा नहीं लगानी दी गई, दलित विरोधी मानसिकता को उभरते रूप में व्यक्त करती हैं। यह दोनों घटनाएं इस वर्ष बाराबंकी और सीतापुर में घटित हुईं।
बाराबंकी ज़िले के पुलिस थाना देवा के गांव सरसौंदी में 0.202 हैक्टेयर ज़मीन जो ग्रामीण सभा के दस्तावेज़ों में 312 नम्बर के तहत दर्ज है, डा. अम्बेडकर की प्रतिमा लगाने हेतु रखी गई थी। गांव निवासी अम्बेडकर जयंती के अवसर पर यहां प्रतिमा स्थापित करना चाहते थे। इस कार्यक्रम के लिए पुलिस और सांसद प्रियंका सिंह रावत से स्वीकृति भी ले ली गई थी। परन्तु कार्यक्रम से बिल्कुल पहले गांव स्तर के राजस्व अधिकारी, लेखाकार, कमलेश शर्मा ने रिपोर्ट दर्ज करवा दी कि उक्त ज़मीन का विवाद चल रहा है और मामला संबंधित अधिकारी के पास सुनवाई अधीन है। शिकायतकर्ता कन्हैया लाल एक नज़दीकी भट्ठे के मालिक हैं परन्तु ग्राम सभा क्षेत्र के निवासी नहीं हैं। गांव के दो निवासियों कबीर अहमद और प्रामिद चौहान को रिपोर्ट में गवाहों के रूप में दर्शाया गया था, यह अब स्वयं द्वारा रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किए जाने संबंधी पछतावा कर रहे थे। जब संबंधित अधिकारी के कार्यालय से पता किया गया तो पता चला कि ज़मीन संबंधी कोई मामला नहीं चल रहा। स्पष्ट रूप में लेखाकार दलित विरोधी मानसिकता से प्रभावित था।
सीतापुर ज़िले के पुलिस थाने थंगाऊं की ग्राम सभा राणीपुर गोदवा में पड़ते गांव गुमाई की कहानी तो और भी दिलचस्प है। गांव के एक निवासी गुलशन पुत्र बनवारी अपनी निजी ज़मीन पर गौत्तम बुद्ध और डा. अम्बेडकर की प्रतिमा लगाना चाहते थे। उसके साथ लगती ज़मीन पर एक अधूरे मंदिर की चार दीवारें खड़ी थीं। इस ढांचे पर न कोई छत्त थी और न ही देवी-देवताओं की कोई मूर्ति रखी हुई थी। यह ज़मीन जगरानी देवी की थी, उनके स्वर्गवासी पति पहले गांव की ग्राम सभा के प्रधान होते थे। जगरानी देवी भी गौत्तम बुद्ध और डा. अम्बेडकर की प्रतिमा गुलशन की ज़मीन पर स्थापित करने के विचार से सहमत थी। बल्कि तैयार हुई दोनों प्रतिमाएं जगरानी देवी के घर पर ही पड़ी थीं, जोकि गांव में एक मात्र स्थाई रिहायशी ढांचा था। परन्तु गांव के कुछ उच्च जाति के लोग प्रतिमा लगाने के विचार के खिलाफ थे। इन लोगों को स्थानीय भाजपा विधायक ज्ञान तिवाड़ी का संरक्षण प्राप्त था। इनमें से कोई भी राणीपुर गोदवा ग्राम सभा का निवासी नहीं है। इसी प्रकार यह लोग बाहरी थे। पुलिस ने इनके प्रभाव में यह रिपोर्ट दी कि अगर देवी के मंदिर के साथ डा. अम्बेडकर की प्रतिमा लगाई गई तो गांव में विवाद उभर सकता है। जबकि मंदिर के ढांचे वाली ज़मीन की मालिक जगरानी और गुलशन, जिनकी ज़मीन पर डा. अम्बेडकर की प्रतिमा लगानी थी, के मध्य कोई आपसी विवाद नहीं है।
उपरोक्त दोनों गांवों में ऐसी स्थिति पैदा कर दी गई है कि प्रतिमा लगाने के समर्थक लोगों को अपने-अपने ज़िला मैजिस्ट्रेटों द्वारा सरकार से स्वीकृति लेनी पड़ रही है। दोनों स्थानों पर मामला बिना ज़रूरत ढंग से दफ्तरी उलझनों में उलझा दिया गया, जिसका शीघ्र ही निकलना सम्भव नहीं है। लोग अदालत की शरण में जा सकते हैं परन्तु यह भी उनके लिए महंगा सौदा है। ‘दलित मित्र’ मुख्यमंत्री की पार्टी, सरकार और प्रशासन के लोगों की दलित विरोधी मानसिकता इन दोनों मामलों द्वारा स्पष्ट रूप में ज़ाहिर होती है। (मंदिरा पब्लिकेशन्ज़)
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और मैगसासे अवार्ड विजेता हैं)