बड़ी उपलब्धियों के मालिक हैं उत्तराखंड के नेत्रहीन खिलाड़ी आशीष नेगी


यदि सदैव तौर पर खेल जगत के इतिहास में हमारे देश के राष्ट्रीय खिलाड़ियों की बात चलेगी या इतिहास को दोहराया जाएगा, तो देश के नेत्रहीन खिलाड़ी भी सुनहरी पृष्ठों पर होंगे, जिन्होंने नेत्रहीन होते हुए भी अन्य खिलाड़ियों की तरह खेल जगत में ऐसी लोकप्रियता हासिल की जिससे पूरे भारत देश का नाम रोशन हुआ। हिमालय की कोख में 1 दिसम्बर, 1980 को पिता जगमोहन सिंह नेगी के घर माता किरण नेगी की कोख से पैदा हुए आशीष नेगी चाहे नेत्रहीन हैं परन्तु खेल जगत में उनकी उपलब्धियों पर पूरा उत्तराखंड ही गर्व नहीं करता बल्कि देश का गौरव हैं। आशीष नेगी अभी 8 वर्ष के थे कि उनको बुखार हो गया। बुखार में ली दवाई ने बुखार तो क्या ठीक करना था उनको हमेशा के लिए नेत्रहीन कर दिया। उनकी बाईं आंख की रोशनी उसी समय ही चली गई और धीरे-धीरे दाईर्ं आंख से भी कम दिखाई देने लगा और अब आशीष नेगी को सिर्फ चार मीटर तक ही दिखाई देता है और उनके लिए आगे की दुनिया अंधेरे में डूब जाती है।
आशीष को बचपन से ही खेलों का शौक था और वह खेल कला में सितारे की तरह चमकना चाहते थे, परन्तु उनकी आंखों का सितारा हमेशा के लिए गर्दिश में हो गया। पिता वायु सेना में नौकरी करते थे और वह अपने इस बच्चे को भी किसी गहरे सदमे की तरह साथ लेकर घूमते और उसके भविष्य की चिंता भी साथ-साथ सताती रही। अंतत: गहरी निराशा से एक आशा ने जन्म लिया और पिता ने हौसले से बेटे को कहा कि बच्चे अंधेर नहीं, देर है, बेशक पलट कर देखो वो बीता हुआ कल है, लेकिन बढ़ना तो इधर ही है, जहां आने वाला कल है। आशीष नेगी को पिता ने ड्यूटी के दौरान कानपुर से प्राथमिक शिक्षा दिलाई और देहरादून से स्पैशल स्कूल से कम्प्यूटर की शिक्षा और आज आशीष नेगी देहरादून में ही बैंक में नौकरी करके अपना गुज़ारा स्वयं करते हैं। आशीष ने कुछ नया करने के उद्देश्य से क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया और यह उनकी मेहनत का ही फल था कि वह शीघ्र ही उत्तराखंड की नेत्रहीन क्रिकेट टीम में खेलने लगे और कप्तान के पदक तक पहुंचे। यहीं बस नहीं उनकी खेल कला ने इतने लोगों के दिलों को छू लिया कि उनका चयन भारत की नेत्रहीन क्रिकेट टीम में हो गया और वर्ष 2003 से लेकर 2015 तक भारत की टीम ने अलग-अलग देशों में खेलते हुए दर्शकों की तालियां सुनते रहे।
आशीष नेगी ने क्रिकेट के साथ-साथ एथलैटिक्स में शॉटपुट खेलना शुरू किया औरउन्होंने अपने नाम नैशनल रिकार्ड भी बनाया और वह एथलैटिक में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में भी सफल हुए हैं। आशीष नेगी ने अब जकार्ता में होने वाले एशिया खेलों और वर्ष 2020 में टोक्यो में होने जा रहे ओलम्पिक खेलों की तैयारी अपने प्रिय कोच नरेश सिंह नियाल के साथ कर रहे हैं और उनको स्वयं पर इतना विश्वास है कि जीत  कर भारत माता की झोली में स्वर्ण पदक डाल कर जय हिन्द बोलेंगे। आशीष नेगी पर उत्तराखंड सरकार गर्व करते हुए उनको विश्व विकलांग दिवस पर दक्ष विकलांग खिलाड़ी के सम्मान से नवाज़ चुकी है।
-गुरतेज सिंह बब्बी