मामला धान की फसल की बिजाई से पहले पानी के दुरुपयोग का- धान की बिजाई संबंधी जारी निर्देशों को दिखाया अंगूठा 


गढ़शंकर, 23 मई (बस्सी): एक तरफ जहां पानी के भविष्य में पैदा होने वाले संकट संबंधी हालातों को सोशल मीडिया द्वारा बयान किया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ का सच प्रदेश भर में पानी के दुरुपयोग के रुझान को पेश कर रहा है। पानी के दुरुपयोग का यह मामला खेती क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। प्रदेश सरकार द्वारा इस बार पिछली बार की तय तिथि में 5 दिनों का बढ़ावा करते हुए इस बार धान की बिजाई 20 जून से शुरू करने का एैलान किया गया है। यह फैसला धरती के नीचे पानी के कम हो रहे स्तर प्रति सरकार की कागज़ी चिंता का सबूत ज़रूर पेश कर रहा है। किसान जत्थेबंदियों द्वारा धान की बिजाई 20 जून से शुरू करने के सरकारी फैसले का विरोध करते हुए धान 10 जून से ही लगाने का ऐलान किया हुआ है। प्रदेश भर में धान की बिजाई के लिए किसानों द्वारा अब से युद्ध स्तर पर तैयारी शुरू करते हुए खेत तैयार किए जा रहे है। धान की बिजाई से पहले ही पानी का बड़े स्तर पर प्रयोग आम ही देखने को मिल रहा है। इस बार हालात ऐसे देखने को मिले कि पहले तो किसानों द्वारा विभागी तथा प्रशासनिक कमज़ोरी के चलते हुए गेंहू के खेतों को तेज़ी से आग लगाकर वातावरण को प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी व उसके बाद आग से जलाए ऐसे खेतों को ठंडा करने के लिए भी अब किसानों द्वारा लगातार ट्यूबवैलों का प्रयोग करते हुए खेतों को लगातार पानी से भरा जा रहा है। खेतीबाड़ी माहिर व सफल किसानों की नज़र में पानी का ऐसा प्रयोग दुरुपयोग ही नहीं बल्कि इसका खेतों की सेहत पर कोई असर भी पड़ने वाला नहीं।
 20 जून से धान की बिजाई के मायने : सरकार द्वारा 20 जून से धान लगाने के निर्देशों की अधिक्तर स्थानों पर किसानों द्वारा पहले ही पानी के दुरुपयोग कारण धज्जियां उड़ाई जा रही है। पूर्व खेतीबाड़ी अधिकारी डा. हरविंदर सिंह बाठ ने कहा कि अब से खेतों में बार बार बड़े स्तर पर पानी छोड़ने के रुझान सामने 20 जून से धान की बिजाई के जारी निर्देश का कोई मायना नहीं रह जाता क्योंकि उद्देश्य तो सिर्फ धरती नीचले पानी को बचाने का है। धान की बिजाई से पहले ही कई कई हफ्ते पानी के बड़े स्तर पर हो रहे दुरुपयोग को कंट्रोल करने की यदि कोई नीयत नहीं तो फिर 20 जून जैसे फैसले लेने का शायद ही कोई असर नज़र आए।
मुफ्त बिजली सेवा का दुरुपयोग : किसानों द्वारा धान की बिजाई से पहले बिजली के किए जा रहे प्रयोग को दुरुपयोग माना जा रहा है। प्रदेश में सिंचाई ट्यूबवैलों की गिनती 13 लाख से अधिक है। चाहे कि सुलझे हुए व पढ़े लिखे किसानों द्वारा ट्यूबवैलों का प्रयोग ज़रूरत अनुसार किया जा रहा है पर अधिक्तर किसानों द्वारा मुफ्त बिजली के चते हुए खेतों की सिंचाई आदि करते समय बरती जा रही लापरवाही आम देखने को मिलती है। ट्यूबवैलों पर आटोमैटिक सिस्टम लगाने का कारन भी पानी के दुरुपयोग में बढ़ावा कर रहा है। पानी की ज़रूरत अनुसार प्रयोग केवल किसी किसी किसान द्वारा ही की जा रही है। 
अच्छे व बुरे की पहचान करें किसान: चाहे नाड़ को आग लगाने का मामला हो या फिर खेतों में खुला पानी छोड़ने का रुझान, इस मामले में किसानों को अच्छे व बुरे की पहचान करनी चाहिए है। विश्व भर में पानी की संभाल प्रति चल रहे यत्नें के मुकाबले शायद ही पंजाब का खेतीबाड़ी विभाग गांव गांव जाकर किसानों को पानी की संभाल तथा वातावरण प्रति जागरूक कर सका हो। 
राजनीतिक व प्रशासनिक कमज़ोरी से वातावरण व कुदरती स्रोत हो रहे है प्रभावित : राजनीतिक तथा प्रशासनिक दखलअंदाजी व कमज़ोर से नाड़ को आग न लगाने जैसे जारी आदेश पूर्ण तौर पर लागू नहीं हो सके। चाहे नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सख्ती कारण पिछले वर्ष किसी हद तक गेंहू व पराली के नाड़ को आग लगाने का रुझान धीमा नज़र आया था पर इस बार गेंहू के नाड़ को आग लगाने की एक तरह से खुल ही सामने आई है। इस मामले में अधिकारी भी राजनीतिक दवाब कारण कार्रवाई करने से पीछे ही रहे। 
किसानों का साथ दे सरकार : प्रदेश का किसान आर्थिक मंदहाली का शिकार है। कड़ी मेहनत करने के बावजूद भी किसान कज़र्े के बोझ नीचे दब रहा है। ऐसे हालातों में सुधार लाने के लिए समय समय की सरकारों को किसानों की प्रमुखता से खबर लेनी चाहिए है। किसानों को फसली चक्कर से निकालने, समय के साथी बनाने के लिए बड़े स्तर पर सबसिडी व मशीनरी मुहैया करने जैसे अनेकों फैसले किसान हित्तों में लेने की ज़रूरत है।