चिन्ता की बात है छात्रों की बढ़ती आत्महत्याएं

हर वर्ष जब दसवीं, बारहवीं या कालेजों और यूनिवर्सिटियों के स्तर पर उच्च शिक्षा हासिल कर रहे छात्रों के परिणाम आते हैं, तो एक तरफ जहां सफल छात्रों और उनके अभिभावकों द्वारा खुशियों का प्रगटावा करने और मिठाईयां आदि बांटने के समाचार अखबारों में देखने को मिलते हैं, वहीं दूसरी तरफ अलग-अलग कारणों से असफल रहे छात्रों की आत्महत्याओं के दुखद समाचार भी आने लगते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार 2014 से लेकर भारत में अब तक 26,000 के लगभग छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। प्रत्येक 55 मिनट में एक छात्र द्वारा आत्महत्या की जा रही है। यदि 2016 के आंकड़े ही लिये जाएं तो इस वर्ष लगभग 9474 छात्रों ने आत्महत्या की थी। महाराष्ट्र में आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या सबसे अधिक है। उसके बाद पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु का नम्बर आता है। पंजाब में भी आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मौजूदा समय में शिक्षा हासिल करना छात्रों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। छात्रों को ज़िंदगी में कुछ बनने और कुछ करने के लिए शिक्षा के अपने चुने हुए क्षेत्रों में बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। अपने देश में करियर की अधिकतर सम्भावनाएं न देखते हुए भारत, खासतौर पर पंजाब के युवक विदेशों को जाने के लिए चाहवान रहते हैं। ऐसे समय में उनका मुकाबला अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बन जाता है। उनको अपनी बारहवीं की परीक्षाओं में भी अच्छे अंक लेने पड़ते हैं और आगे आइलेट्स की परीक्षा भी अच्छे बैंड लेकर पास करनी पड़ती है। देश के भीतर भी बारहवीं के बाद अधिकतर रोज़गारोन्मुखी कोर्सों में दाखिला राष्ट्रीय स्तर के दाखिला टैस्टों के बाद मिलते हैं। सरकारी स्कूलों में पर्याप्त सुविधाओं की कमी होने के कारण गरीब वर्गों से संबंधित छात्रों को ऐसे मुकाबलों में अपना कोई स्थान बनाने के लिए और भी अधिक मुश्किल आती है। इस कारण आज अधिकतर छात्र अपनी शिक्षा और अपने भविष्य को लेकर गहन चिन्ता में फंसे रहते हैं। दूसरी तरफ आजकल अभिभावकों की इच्छाएं भी अपने बच्चों संबंधी बहुत ज्यादा बढ़ी हुई होती हैं। वह अपने बच्चों पर लगातार अधिक से अधिक अंक लेने के लिए दबाव डालते हैं। बहुत सारे अभिभावक अपने चुनाव के अनुसार अपने बच्चों को विषय लेने या अपने चुनाव के अनुसार व्यवसाय चुनने के लिए भी मजबूर करते हैं। चाहे बच्चों की उन क्षेत्रों में कोई दिलचस्पी हो या न हो, अधिकतर गैर-सरकारी स्कूलों, कालेजों तथा विश्वविद्यालयों में भी अधिक से अधिक अंक लेने के लिए दबाव डाले जाते हैं। 
ऐसी घातक परिस्थितियों में बच्चों को लगातार विचरना पड़ता है। इसी कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी और हमारे देश में भी छात्रों की आत्महत्याएं बढ़ती जा रही हैं, जोकि बेहद चिन्ता की बात है। अभिभावकों को अपने बच्चों को तथा उनकी दिलचस्पियों को अच्छी तरह से समझना चाहिए और उसके अनुसार ही उनको शिक्षा के क्षेत्र चुनने की छूट देनी चाहिए। अभिभावकों को यह बात भी समझनी चाहिए कि सभी बच्चों की बुद्धि और क्षमता एक जैसी नहीं होती। कुछ बच्चे किसी क्षेत्र में सक्षम होते हैं और दूसरे किसी अन्य क्षेत्र में निपुण होते हैं। 
बच्चों की शख्सियत की विलक्षणता को समझना चाहिए, इसलिए उन पर दूसरों के बच्चों के साथ तुलना करके अधिक अंक लेने के लिए अनावश्यक तौर पर दबाव नहीं डालना चाहिए। अभिभावकों और अध्यापकों को छात्रों के साथ दोस्तों की तरह विचरना चाहिए। उनकी समस्याओं को निकट से समझना चाहिए और उनको समय-समय पर योग्य नेतृत्व देना चाहिए। इस तरह ही बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर परिणाम ला सकते हैं और अपना मानसिक संतुलन भी बेहतर रख सकते हैं। बच्चों को विशेष तौर पर अपनी दिलचिस्पयों वाले क्षेत्रों में आगे बढ़ने की छूट दी जानी चाहिए। 

-सतनाम सिंह माणक