बकरी की समझदारी

एक जंगल में नदी पर एक पुल था। जंगल के जानवर नदी पार करने के लिए प्राय: इसी पुल का प्रयोग करते थे लेकिन इस पुल पर से एक बार में केवल बकरी जैसा एक छोटा जानवर ही गुज़र सकता था, क्योंकि यह पुल बहुत तंग था। एक दिन एक बकरी को नदी के पार जाना था। अभी उसने आधा पुल ही पार किया था कि दूसरी ओर से भी एक बकरी आती हुई दिखाई दी। ‘तुम्हें दिखाई नहीं देता कि मैं आ रही हूं?’, दूसरी ओर से आने वाली बकरी ने चिल्लाकर पहली बकरी से पूछा। पहले वाली बकरी समझ गई कि सामने वाली बकरी बेवकूफ और झगड़ालू है। पहले वाली बकरी समझदार थी पर उसे भी नदी पार जाने की जल्दी थी अत: वह नम्रतापूर्वक बोली, ‘देखो बहन, झगड़ने पर हम दोनों ही नदी में गिर जाएंगी और यदि हम दोनों में से किसी एक को वापस लौटना पड़ेगा तो बहुत समय नष्ट होगा।’ ‘तो फिर क्या किया जाए?’ दूसरी ओर से आने वाली बकरी ने भी कुछ शांत होकर पहली बकरी से पूछा। पहले वाली बकरी ने कहा, ‘बहन मैं पुल पर लेट जाती हूं और तुम धीरे से मेरे शरीर पर से गुज़र कर उस पार चली जाओ।’ दूसरी बकरी को पहले वाली बकरी की बात पसंद आ गई। पहले वाली बकरी पुल पर लेट गई। दूसरी बकरी पहले वाली बकरी के शरीर पर पैर रखकर आसानी से उस पार चली गई। यदि हम भी थोड़ी समझदारी से काम लें तो हम भी न केवल लड़ाई-झगड़े से बच सकते हैं, अपितु अपना और दूसरों का कीमती समय भी बर्बाद होने से बचा सकते हैं। हां, इसके लिए हमें थोड़ी नम्रता और समझदारी दिखलाने की पहल अवश्य करनी होगी जो एक विवेकशील व्यक्ति के लिए कठिन नहीं।

-आशा गुप्ता
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